अध्यात्म की दृष्टि में रक्षाबंधन



--आचार्य प्रशान्त,
संस्थापक, प्रशान्त अद्वैत फाउंडेशन।

● रक्षाबंधन पर किसकी रक्षा होनी चाहिए?

रक्षाबंधन अर्थात् रक्षा का बंधन। रक्षाबंधन एक बहुत पुरातन और पावन पर्व है। इसमें बहनें अपने भाईयों को रक्षा का धागा बांधती हैं।

वास्तव में इतिहास में रक्षाबंधन भाई और बहन के बीच का पर्व ही रहा ही नही। भविष्यपुराण, स्कंदपुराण, पद्मपुराण, भागवत पुराण में ऐसे कई उल्लेख मिलते हैं जहाँ पर एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति को रक्षा बांधी। वहाँ यह ज़रूरी नहीं कि इन दो व्यक्तियों में एक पुरुष और एक स्त्री हो।

भविष्यपुराण में उल्लेख है कि जब देव-दानव युद्ध में इंद्र हार रहे होते हैं तो देवगुरु बृहस्पति इंद्र को रक्षा बांधते हैं और स्वस्तिवाचन करते हैं:

येन बद्धो बलिराजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वमपि बधनामी, रक्षे मा चल मा चल।

भावार्थ - जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली दानवेंद्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बांधता हूं। हे रक्षा (राखी) तुम अडिग रहना।

गुरुकुल परंपरा में शिक्षा पूर्ण होने पर गुरु और शिष्य परस्पर रक्षा बांधते थे।

रानी कर्णावती ने हुमायूं को रक्षा भेजी। यह परंपरा में आ गया कि बहन भाई को रक्षा बांधती है। इसमें अभिप्राय केवल यही है कि जो दुर्बल है उसकी रक्षा की जानी चाहिए।

परंतु आज बहनों को रक्षा की ज़रूरत नहीं है। आज महिला हर प्रकार से सशक्त है। आज कुछ और है जो अच्छा है, परंतु मर रहा है, उसको रक्षा की ज़रूरत है। आज कमजोर है पर्यावरण, पृथ्वी, पशु-पक्षी। मौसम चक्र बदलने के कारण आज सबसे ज़्यादा रक्षा की ज़रूरत पृथ्वी को है। आज पशु पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियाँ प्रतिदिन विलुप्त हो रही हैं, उन्हें सुरक्षा की जरूरत है।

हमारी मातृ भाषा विलुप्त रही है, उसे सुरक्षा की आवश्यकता है। आज हिंदी लिखने वाले बहुत कम लोग बचे हैं। लिपि विलुप्त हो गई तो भाषा को कौन बचा पाएगा। भाषा गई तो संस्कृति और संस्कृति गई तो अध्यात्म चला जाएगा। और अध्यात्म चला गया तो मानव ही समाप्त हो जाएगा। ये दुर्बल हैं, आज इन्हें रक्षा की ज़रूरत है आज हमें सत्य को, अच्छाई को बचाने कि ज़रूरत है।

रक्षाबंधन के इस पावन पर्व पर हमें चाहे बहनें हों कि भाई, सबको अपने जीवन की इन अनमोल धरोहर को बचाने की जरूरत है। इस रक्षा बंधन पर हम सभी को इन्हें बचाने का, सुरक्षा देने का हर संभव प्रयास करने का प्राण लेना चाहिए।

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