आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी: महंगाई की चुनौती अब भी बरकरार



--राजीव रंजन नाग,
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

आम बजट से एक दिन पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में आर्थिक सर्वेक्षण पेश कर दिया। तीन वित्त वर्ष में इस बार सबसे कम विकास दर की संभावना है।

● आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार

हालांकि, सर्वेक्षण में यह चिंता जताई गई है कि चालू खाता घाटा बढ़ सकता है क्योंकि दुनियाभर में कीमतें बढ़ रही हैं। इससे रुपये पर दबाव रह सकता है। यूएस फेडरल रिजर्व अगर ब्याज दरों में इजाफा करता है तो रुपये का अवमूल्यन हो सकता है। कर्ज लंबे वक्त तक महंगा रह सकता है। हालांकि सर्वेक्षण में महंगाई पर चिंता जताते हुए कहा गया है कि महंगाई पर लगाम लगाने की चुनौती अब भी बरकरार है। यूरोप में जारी संघर्ष के कारण यह स्थिति बनी है।

सर्वेक्षण कहता है कि कोरोना के दौर के बाद दूसरे देशों की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी तेज रही है। घरेलू मांग और पूंजीगत निवेश में बढ़ोतरी की वजह से ऐसा संभव हो पाया है। आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि जारी वित्त वर्ष में केंद्र व राज्य सरकारों ने अब तक सामाजिक कार्यों पर संयुक्त रूप से 21.3 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए। इस खर्च में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। कुल सरकारी खर्च का 26.6 फीसदी रहने का अनुमान है। जबकि बीते वित्त वर्ष यह 26.1 फीसदी था।

आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, निजी खपत में वृद्धि से उत्पादन गतिविधियों को बढ़ावा मिला। बेहतर टीकाकरण व्यवस्था के कारण लोग एक बार फिर रेस्तरां, होटल, सिनेमाघरों व शॉपिंग मॉल में आ पाए और आर्थिक चक्र एक बार फिर कुछ हद तक पहले की तरह चलने लगा। सर्वेक्षण के अनुसार, वित्त वर्ष 22 के पहले आठ महीने में केंद्र का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) 63.4 फीसदी बढ़ा। सर्वे में कहा गया है कि रोजगार सृजन को बढ़ावा मिला है जिसका सबूत कर्मचारी भविष्य निधि के पंजीकरण के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि, प्राइवेट कंपनियों द्वारा अब खर्च को बढ़ाकर रोजगार सृजन में अब अपनी भूमिका भी निभानी होगी।

बजट पूर्व आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि चालू खाता घाटा बढ़ना जारी रह सकता है क्योंकि वैश्विक कमोडिटी की कीमतें ऊंची बनी हुई हैं और रुपया दबाव में आ सकता है। “मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 6.8 प्रतिशत मुद्रास्फीति निजी खपत को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है या निवेश को कमजोर करने के लिए कम है। उधार लेने की लागत लंबी अवधि के लिए 'अधिक' रह सकती है और फंसी हुई मुद्रास्फीति कसने वाले चक्र को लंबा कर सकती है। इसमें कहा गया है कि कोविड-19 महामारी से भारत की रिकवरी "अपेक्षाकृत जल्दी" थी और देश ने अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में असाधारण चुनौतियों का सामना किया है।

भारत को सिर्फ महंगाई और महामारी से नहीं कमजोर मुद्रा जैसी स्थिति का भी सामना करना पड़ा। अमेरिका ने अपनी मुद्रा यानी डॉलर को मजबूत रखने के लिए लगातार ब्याज दरें बढ़ाई। नतीजन भारत का आयात महंगा होने लगा और व्यापार घाटा भी बढ़ गया। आयात वाली सभी वस्तुसएं और सेवाएं महंगी हो गईं। हालांकि, भारत इस चुनौती से भी पार पा चुका है और रुपये पर भी दबाव कुछ कम हो रहा है।

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2020 के बाद दुनिया को आर्थिक स्तर पर झटकों का सामना करना पड़ा है। लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी रही।आर्थिक सर्वे में भारत सरकार ने बताया है कि अर्थव्यावस्था अभी कोविड-19 की महामारी से उबर ही रही थी कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से नया संकट सामने आ गया। पहले महामारी और अब महंगाई ने आ घेरा, लेकिन कुशल प्रबंधन और सही रणनीति से हम इससे पार पाने में कामयाब रहे और अब भारतीय अर्थव्यरवस्थाक मंदी से कोसों दूर दिख रही है। दुनिया में क्रय क्षमता यानी परचेसिंग पावर पैरिटी के मामले में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी और विनिमय दर के मामले में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

भारत के पास पर्यात विदेशी मुद्रा भंडार है जिससे कि चालू खाते के घाटे तो वित्त पोषित किया जा सकता है। रुपये के उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के उद्देश्य से भी यह पर्याप्त है।

सर्वेक्षण में सरकार ने दावा किया है कि वर्ष 2030 तक गरीबी को आधी करने के लक्ष्य के तहत 2005 से 2019-21 के दौरान 41 करोड़ से अधिक लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। संयुक्त राष्ट्र के मल्टी डायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स ने इसकी पुष्टि की है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) से पता चलता है कि 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए शहरी बेरोजगारी दर सितंबर 2021 के 9.8 से घटकर एक साल बाद 7.2 प्रतिशत पर आ गई है। इसके साथ श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) में भी सुधार हुआ है, जो वित्त वर्ष 23 की शुरुआत में महामारी प्रेरित मंदी से अर्थव्यवस्था के उभरने की पुष्टि करता है। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार इस दौरान शहरी बेरोगारी दर पिछले चार वर्षों के निचले स्तर पर पहुंच गई है।

इस बीच सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने मंगलवार को कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था इस दशक के बाकी हिस्सों में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए तैयार है। “आईएमएफ ने अपने विश्व आर्थिक आउटलुक अपडेट में, चालू वित्त वर्ष के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद के पूर्वानुमान को 6.8%, अगले वित्त वर्ष में 6.1% और 2024-25 के लिए 6.8% पर बनाए रखा है। गैर-बैंकिंग और कॉर्पोरेट क्षेत्रों में अब अच्छी बैलेंस शीट हैं।

राष्ट्रपति के रूप में संसद में अपने पहले संबोधन में मंगलवार को द्रौपदी मुर्मू ने लगातार दो बार स्थिर सरकार चुनने के लिए नागरिकों का आभार व्यक्त किया और कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की पहचान एक निर्णायक सरकार के रूप में रही है। संसद का बजट सत्र मंगलवार को राष्ट्रपति के पहले अभिभाषण के साथ शुरू हुआ।

इस बीच, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल के बीच, भारत का बजट आम नागरिकों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने और दुनिया के लिए आशा की किरण बनने का प्रयास करेगा। संसद के बजट सत्र से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि अर्थव्यवस्था की दुनिया में मान्यता प्राप्त आवाजें सभी पक्षों से सकारात्मक संदेश ला रही हैं।

संसद में पेश 2022-23 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि पर्याप्त और किफायती वित्त की उपलब्धता भारत की जलवायु गतिविधियों में बाधा बनी हुई है। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि कोविड-19 के कारण दो साल की खामोशी के बाद भारत के आवासीय बाजार में आवास ऋण पर बढ़ती ब्याज दरों और संपत्ति की कीमतों में वृद्धि जैसी बाधाओं के बावजूद आवास की बिक्री में वृद्धि के साथ दबी हुई मांग पर इस वित्त वर्ष में सुधार देखा गया है।

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