--प्रदीप फुटेला,
ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज़।
प्रशान्त अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक एवं पूर्व सिविल सेवा अधिकारी आचार्य प्रशान्त ने कहा है कि अतीत के बारे में सोचना ही तनाव का मुख्य कारण है क्योंकि वर्तमान समय में लोग स्वयं के भीतर आनंद नही खोज रहे बल्कि बाहर की दुनिया में आनंद को खोजने में लगे है आप में यह देखने की ईमानदारी है, जो मैं जानता हूं, मैं जानता हूं। जो मैं नहीं जानता, मैं नहीं जानता, तुम तो पहले से ही एक साधक हो। यह अध्यात्म का मूल पहलू है। मेरा मन कल्पनाओं में भटकता है। मैं जो जानता हूं और जो नहीं जानता उसे स्वीकार करने के लिए मैं तैयार हूं।
नॉलेज पार्क स्थित केसीसी कॉलेज में आयोजित वेदान्त महोत्सव को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जब आप खुद को जान लेते हैं तो आपकी समस्या का समाधान खुद ही हो जाएगा। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति हर पल अपने प्रति ईमानदार रहता है, वास्तव में वही सच्चा जीवन जीता है। संत कबीरदास ने कहा है कि ईश्वर ने जिस तरह पवित्र आत्मा के साथ आपको पृथ्वी पर भेजा था, ठीक उसी तरह उन्हें दे देना, बिना किसी दाग के। यह तभी संभव है जब व्यक्ति अपने लिए नहीं, बल्कि भगवान के लिए काम करे। जो व्यक्ति ईश्वर को कभी नहीं भूलता और सदैव अपने कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक निभाता है और बदले में जो मिल जाए उसी में संतुष्ट हो जाता है, वही सच्चा और सुखी है।
आचार्य प्रशान्त ने कहा कि गौतम बुद्ध ने कहा कि कामी व्यक्ति अनेक बार मरता है। जितनी कामना, उतनी बार मृत्यु। मनुष्य की हर कामना एक जन्म बन जाती है, साथ ही हर कामना एक मृत्यु भी बन जाती है। यही कारण है कि अनेक राजाओं और महापुरुषों ने अपने वैभव का त्याग करके सुख की तलाश में संन्यास ले लिया। संतोष जीवन है और असंतोष मृत्यु।
संतोष का मतलब है कि अपने कर्म को पूरे उत्साह से करना और उससे जो भी फल मिले उससे संतुष्ट हो जाना है। मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र और सबसे बड़ा दुश्मन उसके विचार ही हैं। मनुष्य को यह जानना-समझना होता है कि कौन-सा विचार उसका मित्र है और कौन-सा शत्रु। सकारात्मक विचार अपने साथ कई दोस्तों को लाता है और नकारात्मक विचारों वाला व्यक्ति दुश्मनों से घिर जाता है। असल में सभी लोग जीवन को अपने-अपने नजरिये से देखते हैं। कोई कहता है कि जीवन एक खेल है, कोई कहता है कि जीवन ईश्वर का दिया हुआ उपहार है, कोई कहता है कि जीवन एक यात्राा है, कोई कहता है कि जीवन एक दौड़ है। कहने का तात्पर्य यही है कि हम जिस नजरिये से जीवन को देखेंगे, हमारा जीवन वैसा ही बन जाएगा। लेकिन सच्चा जीवन वही जी सकता है जो अपने जन्म और मृत्यु के बीच के समय को भरपूर प्रेम से भर दे। अक्सर मनुष्य अपने भविष्य और अतीत के बारे में सोचता रहता है और इस चक्कर में वह वर्तमान की कोई परवाह नहीं करता, जबकि जीवन वर्तमान में ही है। अगर अतीत में मनुष्य से कोई गलती हुई भी है तो उसे उससे सबक लेकर अपने वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य को भविष्य में आने वाले संकटों को देखकर घबराना नहीं चाहिए। वर्तमान को आनंदित बनाने के लिए मनुष्य को कोई भी कार्य शुरू करने से पहले उसके सभी पहलुओं पर गौर कर लेना चाहिए।