काला-अजार और अन्य उपेक्षित रोगों के लिए राहत ला सकता है ओरल नैनोमेडिसिन



नई दिल्ली,
इंडिया इनसाइड न्यूज़।

काला-अजार से प्रभावित मरीज, जिसका वैज्ञानिक नाम विसेरल लीशमैनियासिस (वीएल) है, जल्द ही भारत के एक ओरल नैनोमेडिसिन से राहत पा सकते हैं। वीएल बीमारी, सबसे उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों में से एक है। ओरल नैनोमेडिसिन, वीएल के नियंत्रण और उन्मूलन में मदद कर सकता है। इस रोग के लगभग 95% मामले बांग्लादेश, ब्राजील, चीन, इथियोपिया, भारत, केन्या, नेपाल, सोमालिया, दक्षिण सूडान और सूडान देशों से रिपोर्ट किए गए हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के स्वायत्त संस्थान नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी), मोहाली के वैज्ञानिकों ने विसेरल लीशमैनियासिस से निपटने के लिए सतह-संशोधित ठोस लिपिड नैनोपार्टिकल्स आधारित कॉम्बिनेशन कार्गो प्रणाली की मदद से एक ओरल नैनोमेडिसिन विकसित किया है। इस अध्ययन को डीएसटी-एसईआरबी अर्ली करियर रिसर्च अवार्ड द्वारा समर्थन दिया गया है और इस अध्ययन के निष्कर्ष हाल ही में 'साइंटिफिक रिपोर्ट' और 'मटेरियल साइंस एंड इंजीनियरिंग सी' पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।

आईएनएसटी टीम के अनुसार, आज तक कोई अध्ययन नहीं किया गया है जहां विसेरल लीशमैनियासिस के खिलाफ संभावित चिकित्सीय रणनीति के रूप में दो एंटी-लीशमैनियल दवाओं के संयोजन को नैनोमोडिफिकेशन के माध्यम से दिया गया हो। यह ओरल एंटी-लीशमैनियल दवाओं के लिए एक आशाजनक दृष्टिकोण के रूप में 2-हाइड्रॉक्सीप्रोपाइल- बी- साइक्लोडेक्सट्रिन (एचपीसीडी) के साथ संशोधित रूप में तैयार एम-डीडीएसएलएन की श्रेष्ठता का सुझाव देता है।

डॉ• श्याम लाल एम के नेतृत्व में आईएनएसटी टीम द्वारा किए गए इस अध्ययन में एंटी-लीशमैनियल ड्रग्स अम्फोटेरीसिन बी (एएमबी) और पारोमोमायसिन (पीएम) को ठोस लिपिड नैनोकणों का आवरण दिया गया और इसे 2-हाइड्रॉक्सीप्रोपाइल- बी- साइक्लोडेक्सट्रिन (एचपीसीडी) के साथ संशोधित किया गया। वैज्ञानिकों ने विसेरल लीशमैनियासिस के उपचार में यौगिक की ओरल चिकित्सीय क्षमता का पता लगाया। उन्होंने एचपीसीडी संशोधित दोहरी दवा-लोड ठोस लिपिड नैनोकणों (एम-डीडीएसएलएन) को तैयार करने के लिए विलायक वाष्पीकरण विधि को नियोजित किया। उनके द्वारा विकसित नैनोपार्टिकल-आधारित कॉम्बीनेटरियल ड्रग डिलीवरी सिस्टम ने एल डोनोवनी-संक्रमित मैक्रोफेज और डोनोवानी-संक्रमित बीएएलबी/सी में इंट्रासेल्युलर अमस्तीगोते परजीवी की वृद्धि को कम किया और इन विट्रो और विवो दोनों मॉडल में सूत्रीकरण की प्रभावकारिता को बढ़ाया। यह प्रयोग चूहों के मॉडल पर किया गया और इसका कोई महत्वपूर्ण विषाक्त दुष्प्रभाव भी नहीं देखा गया।

आईएनएसटी टीम के अनुसार, ठोस लिपिड नैनोपार्टिकल्स (एसएलएन) आंत में दवा के घुलनशील अवस्था को बरकरार रखते हुए चिकित्सीय एजेंट की मात्रा को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं और मिश्रित मिसेल्स (घोल बनाने की एक विशेष स्थिति) के निर्माण को सहायता देते हैं तथा इसके लिए पित्त लवण और फॉस्फोलिपिड के स्राव को प्रेरित करते हैं। इसके अलावा, 2-हाइड्रॉक्सीप्रोपाइल- बी- साइक्लोडेक्सट्रिन (एचपीसीडी) आणविक मेजबान के रूप में जाने जाते हैं जो पानी-अघुलनशील अतिथि अणुओं को शामिल कर सकते हैं।

आईएनएसटी टीम का यह अध्ययन, उत्पाद और प्रक्रिया के पेटेंट के लिए आधार तैयार कर सकता है, जिससे उपेक्षित बीमारियों के खिलाफ नवीन चिकित्सा विकसित करने के लिए हमारे देश की भूमिका को और महत्वपूर्ण बनाने में मदद मिलेगी। नैनोमॉडिफिकेशन के माध्यम से परिशुद्ध दवाओं की कम चिकित्सीय खुराक का उपयोग विषाक्तता को कम करने में एक वरदान होगा, जो मौखिक रूप से दी जाने वाली दवाओं के मौजूदा पारंपरिक उपचार में एक प्रमुख बाधा रही है।

■ प्रकाशन लिंक:

https://doi.org/10.1038/s41598-020-69276-5

https://doi.org/10.1016/j.msec.2020.111279

अधिक जानकारी के लिए डॉ• श्याम लाल एम (shyamll@inst.ac.in) से संपर्क किया जा सकता है।

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