---एकलव्य कुमार,
भरतपुर-राजस्थान, इंडिया इनसाइड न्यूज़।
सरसों उत्पादक किसानों के लिए मधुमक्खी पालन करना एक वरदान है। सरसों की फसल में अधिक समय तक फूल बने रहते हैं इसलिए मधुमक्खी पालन से किसानों को लाभ भी अधिक होगा। यह बातें सरसों अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डॉ• पी• के• राय ने 3-7 दिसंबर तक निदेशालय में आयोजित मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान कही। उन्होंने मधुमक्खी पालन करने से पहले पूर्ण प्रशिक्षण लेने की जरूरत पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में कृषि जोत एवम संसाधन लगातार घटते जा रहे हैं और किसानों के सामने आय के विकल्प सीमित हो रहे हैं। डॉ• राय ने कहा कि किसानों को आमदनी बढ़ाने के लिए कृषि आधारित वैकल्पिक व्यवसाय अपनाने होंगे तभी खेती लाभदायक होगी।
• ताकि खेती के जोखिम को कम किया जा सके
पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ• अशोक शर्मा ने कहा कि वैज्ञानिक खेती की अनुशंसित तकनीकों को अच्छी तरह समझकर उसका उपयोग करना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि खेती के जोखिम को कम करने और अतिरिक्त आय पाने के लिए किसानों को शस्य फसलों के साथ उद्यानिकी, पशुपालन, बागवानी भी अपनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि छोटे किसान और भूमिहीन लोग छोटे-छोटे समूह बनाकर मधुमक्खी पालन को अपना सकते हैं ताकि इसके प्रबंधन में आसानी हो। उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन करने के लिए कोई क्षेत्र विशेष की आवश्यकता नहीं होती है।
• 30 किसानों ने लिया प्रशिक्षण
"मधुमक्खी पालन और सरसों की वैज्ञानिक खेती" विषय पर आत्मा परियोजना के अंतर्गत सरसों अनुसंधान निदेशालय की ओर से आयोजित इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में राजस्थान के टोंक जिले के 30 किसानों ने भाग लिया।
प्रशिक्षण में किसानों को मधुमक्खी पालन के इतिहास, विकास, प्रारंभ एवं प्रबंधन के साथ-साथ मधुमक्खी के सामाजिक जीवन चक्र, पहचान आदि की जानकारी दी गयी। प्रशिक्षणार्थयों को प्रायोगिक जानकारी के लिए जयचोली गांव स्थित मधुमक्खी पालन इकाई का भी भ्रमण कराया गया। पूरे प्रशिक्षण के दौरान किसानों को व्यावसायिक मधुमक्खी पालन करने, शहद उत्पादन के साथ ही मोम और मधुमक्खी के विष की उपयोगिता आदि की भी विस्तृत जानकारी दी गयी। किसानों को मधुमक्खी पालन से जुड़ी सरकारी योजनाओं के बारे में भी बताया गया।