एसआईआर को लेकर मध्यप्रदेश में नया विवाद



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■एसआईआर के नाम पर ब्लैकमेल कर रही मध्यप्रदेश सरकार

■पूर्व मुख्‍यमंत्री कमलनाथ ने जताई मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के बयान पर आपत्ति

■कहा- सरकार जनता को डराने-धमकाने का काम कर रही है*

मध्यप्रदेश में हाल में एसआईआऱ के बीच हुए एक विवाद ने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। राज्य के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने एक समारोह के दौरान कहा कि यदि किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में नहीं हुआ तो उसे राशन, पानी और अन्य सरकारी सुविधाएँ न मिले, एक बयान जिसने कई लोगों में चिंता और आक्रोश खड़ा कर दिया। उनके इस बयान को सत्तारुढ़ दल की ओर से लोगों को डराने-धमकाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। जैसे कि वोटर-लिस्ट में नाम जुड़वाना गुज़र नहीं, बल्कि बाध्यता हो। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस बयान को “जनता को डराने-धमकाने” वाला कहा है। उन्होंने आरोप लगाया है कि यह बयान दिखाता है कि किस तरह सत्ता पक्ष मतदाताओं को वोटबैंक के रूप में देख रहा है, न कि नागरिक और उन्हें मिले संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करते हुए। कमलनाथ का कहना है कि इस तरह की धमकी कि वोटर सूची में नाम नहीं जोड़ा, तो राशन-पानी बंद लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों पर हमला है। उन्होंने चेतावनी दी है कि कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल इस पर तमाम संवैधानिक, सामाजिक और वैधानिक कदम उठाएंगे ताकि किसी भी नागरिक को उनके मूलभूत अधिकार से वंचित न होना पड़े।

● एसआईआर आवश्यक है, लेकिन निष्पक्षता व संवेदनशीलता बनी रहे

लोकतंत्र में वोट देने का अधिकार और समाज की बुनियादी सुविधाएँ दो अलग-अलग आधार होने चाहिए। अगर मतदाता सूची में नाम जुड़वाना अनिवार्य है, तो प्रक्रियात्मक रूप से लोगों को सुविधा, सूचना और अवसर दिए जाएँ न कि धमकाकर या डराकर। सरकार को चाहिए कि एसआईआर अभियान को सूचना मुहिम, दस्तावेज़ों के सरल विकल्प, स्थानीय मदद-केन्द्र और संवेदनशीलता के साथ आगे ले जाए।

● राजनीतिक सरगर्मी: क्यों बढ़ी?

राजपूत के बयान और कमलनाथ के तीखे प्रति उत्तर के बाद, इस मुद्दे ने सियासी हलचल तेज कर दी है। विपक्ष ने इसे पूर्वाभास माना है कि एसआईआर का प्रयोग सिर्फ मतदाता सूची की पवित्रता के लिए नहीं, बल्कि वोट बैंक और सामाजिक सहायता योजनाओं को राजनीतिक नियंत्रण में बाँधने का माध्यम बन सकता है। साथ ही, यह विवाद यह भी उजागर करता है कि ज़रूरत सिर्फ ‘नाम जोड़ना’ या ‘नाम हटाना’ भर नहीं है बल्कि मतदाता सुरक्षा, संवैधानिक अधिकार, सामाजिक सुरक्षा, लोकतंत्र की आत्मा और नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा भी है।

● लोकतंत्र तभी मजबूत, जब नागरिक-अधिकार सुरक्षित हों

एसआईआर जैसी प्रक्रियाएँ लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का हिस्सा हो सकती हैं। बशर्ते वे निष्पक्ष, पारदर्शी, संवेदनशील और अधिकार-आधारित हों। लेकिन अगर इनका उपयोग राजनीतिक दबाव, डर या ब्लैकमेल के लिए किया जाए जैसे मंत्री का बयान तो यह लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और नागरिक विश्वास के लिए खतरा बन जाता है। कमलनाथ के स्पष्ट कदम, विपक्ष का जागरूकता-आह्वान और जनता की सतर्कता इस बात को दर्शाते हैं कि लोकतंत्र सिर्फ वोट देने तक सीमित नहीं वह अधिकार, सम्मान और सुरक्षा की गारंटी भी है। इस संकट की घड़ी में जब SIR जैसा संवेदनशील विषय विवाद की जद में आया है जरूरी है कि मतदाता सूची को अपडेट किया जाए, मगर साथ ही नागरिक अधिकारों की रक्षा भी हो, राशन-पानी, आधार-भत्ता जैसी सामाजिक लाभों को मतदान या मतदाता सूची से जोड़कर न, बल्कि संवैधानिक सुरक्षा व समान नागरिक अधिकार के आधार पर बांधा जाए।

● मध्यप्रदेश की जनता की सेवा के लिए फिर से सक्रिय हुए कमलनाथ

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और लंबे समय तक विश्वासपात्र सांसद, हाल-फिलहाल राजनीतिक बहसों व सियासी हलचलों के बीच कमलनाथ फिर से सक्रिय हो रहे हैं। पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की पराजय और मध्यप्रदेश में सत्ता से दूर रहने के बावजूद, कमलनाथ ने खुद को सिर्फ आलोचक या पूर्व नेता नहीं, बल्कि जनता की आवाज़ बनाकर खड़ा किया है। पिछले कुछ महीनों में उन्होंने बार-बार उन मुद्दों को उठाया है जो सीधे जनकल्याण, लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों से जुड़े हैं- चाहे वह मतदाता सूची का सही एवं निष्पक्ष पुनरीक्षण हो, या कुप्रबंधन व सरकारी लापरवाही के कारण हुई मौतों व अन्य सामाजिक-आर्थिक संकट। इन बयानों के माध्यम से वे यह संदेश दे रहे हैं कि किसी भी परिस्थिति में जनता की आवाज़ दबने नहीं पाएगी। जब राज्य सरकार द्वारा फैसला किया गया कि कफ सिरप से प्रभावित परिवारों को मात्र सीमित मुआवजा दिया जाएगा। कमलनाथ ने कहा कि यह पर्याप्त नहीं है। उन्होंने 23 बच्चों की मौत के मामले में सरकार को “सरकारी लापरवाही” का दोषी ठहराया और मृत परिवारों को उचित मुआवजा व न्याय दिलाने की मांग की। इतने बड़े दावों और संघर्षों के बीच भी, कमलनाथ ने यह स्पष्ट किया है कि उनकी लड़ाई सिर्फ सत्ता पाने की नहीं जनता की सुरक्षा, संवैधानिक अधिकारों और न्याय दिलाने की है। 2024 के लोकसभा चुनावों में पराजय के बाद उन्होंने पार्टी व कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर मैदान पर पुनर्गठन की दिशा चुनने की ओर संकेत दिया है। इस सक्रियता का दूसरा पहलू संगठनात्मक भी दिख रहा है। कमलनाथ, पार्टी कार्यकर्ताओं से लगातार अपील कर रहे हैं कि वे जोर-शोर से क्षेत्र स्तर पर सक्रिय हों। मतदान प्रक्रिया, मतदाता सूची, जनता की चिंताओं व शिकायतों को जनता तक लेकर जाएँ। यह सिर्फ चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि राजनीतिक नैतिकता और सामाजिक जवाबदेही की ओर एक आपका कदम है। इस प्रकार, कमलनाथ की वापसी को केवल “पूर्व मुख्यमंत्री का फिर सक्रिय होना” नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे मध्यप्रदेश की राजनीति में जनहित, न्याय और लोकतंत्र की आवाज़ की वापसी माना जाना चाहिए। सत्ता-स्वाद भले अभी दूर हो, लेकिन जनता के संघर्ष में उनकी भागीदारी ने यह दिखा दिया है कि राजनीति का असली अनुभव सत्ता में नहीं, जनता के साथ खड़े रहने में है।

● लोकतंत्र पर प्रश्न या डराने की राजनीति

हालाँकि एसआईआर प्रक्रिया लोकतांत्रिक सुधार के नाम पर शुरू हुई है, पर मंत्री राजपूत के बयान ने इसे विवादित बना दिया। उन्होंने कहा कि नाम न जुड़वाने वालों को राशन, पानी आदि सरकारी सुविधाएँ नहीं मिलेगी।

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