आदेश, असंतोष और प्रशासनिक विसंगतियों की खुली परतें



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■मध्यप्रदेश में पहली बार हुई जनसंपर्क विभाग की कलम बंद हड़ताल

■गणेश जायसवाल की पदस्‍थापना से विभागीय मंत्री की कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवाल

■जनसंपर्क आयुक्‍त दीपक सक्‍सेना बेहतर संभाल रहे हैं विभाग

मध्यप्रदेश में सरकारी विभागों में समय–समय पर विरोध और असंतोष की आवाजें उठती रही हैं, लेकिन जनसंपर्क विभाग का वातावरण सामान्यतः शांत और प्रशासनिक अनुशासन का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में पहली बार विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा किया गया कलम बंद आंदोलन न केवल असामान्य है, बल्कि यह प्रशासनिक कार्यप्रणाली के भीतर चल रहे गहरे असंतोष की ओर संकेत भी करता है। विरोध की जड़ एक ही है नर्मदापुरम में पदस्थ राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी गणेश जायसवाल की जनसंपर्क विभाग में “अपर संचालक” पद पर पदोन्नति और पदस्थापना। विभाग इसे अपने अधिकार क्षेत्र में सीधा हस्तक्षेप मान रहा है। निश्चित ही इस निर्णय पर विभागीय मंत्री की कार्यप्रणाली पर जरूर सवाल खड़े हो रहे हैं। जबकि देखा जाये तो वर्तमान आयुक्‍त दीपक सक्‍सेना विभाग को बेहतर संभाल रहे हैं। इस तरह से अनावश्‍यक फेरबदल से माहौल ही खराब होता है।

● गणेश जायसवाल की पदस्थापना से फंस गये मुख्‍यमंत्री

जबसे दीपक सक्‍सेना ने जनसंपर्क विभाग का दायित्‍व संभाला है तबसे विभाग की कार्यप्रणाली बेहतर चल रही है। लेकिन जैसे ही विभाग में गणेश जायसवाल की इंट्री होती है पूरे विभाग का माहौल खराब हो जाता है और कलम बंद हड़ताल तक हो जाती है। यहां सवाल उठता है कि जब जनसंपर्क विभाग सब कुछ ठीक चल रहा था तो फिर अन्‍य विभाग से लाकर दूसरे अधिकारी को बिठाने की क्‍या जरूरत पड़ी। अब इस नये फंसाद में विभागीय मंत्री मोहन यादव बुरे फंस गये हैं। जबकि देखा गया है कि विभाग के ही किसी वरिष्‍ठ अधिकारी को इस पद पर बिठाया जा सकता था जिससे किसी प्रकार का विरोध भी नहीं होता और असंतोष भी नहीं फैलता।

● पदोन्नति का आदेश और नियमों पर उठे सवाल

जनसंपर्क विभाग में अधिकारी और कर्मचारियों ने पदोन्नति आदेश को नियमों के विरुद्ध बताया। उनका कहना है कि जनसंपर्क विभाग के संवर्ग में पदोन्नति के स्पष्ट नियम, वरिष्ठता क्रम और विभागीय प्रक्रिया मौजूद है। ऐसे में किसी अन्य संवर्ग विशेषकर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को अपर संचालक जनसंपर्क के पद पर पदोन्‍नत करना विभागीय अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। अधिकारी-कर्मचारी एकमत होकर कलम बंद हड़ताल पर उतर आए। धीरे–धीरे यह विरोध राज्य भर में फैल गया और जिला स्तर के कार्यालय भी आंदोलन में शामिल होने लगे थे। हालांकि बाद में समझाईश के बाद यह हड़ताल खत्‍म हो गई। लेकिन आखिर में सवाल यही उठता है कि इतिहास में पहली बार हड़ताल की नौबत कैसे आयी।

● ज्ञापन के माध्यम से अधिकारियों की स्पष्ट मांग

मध्यप्रदेश जनसंपर्क अधिकारी संघ ने आयुक्त जनसंपर्क को ज्ञापन सौंपकर साफ कहा है कि यह नियुक्ति विभागीय अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन है। यह संवर्ग के अस्तित्व पर सीधा हमला है। आदेश तुरंत वापस लिया जाए, अन्यथा प्रदेश के सभी जिला कार्यालयों में काम ठप रखा जाएगा। ज्ञापन में यह चेतावनी भी दी गई कि अगर आदेश वापस नहीं लिया गया तो हड़ताल को प्रदेशव्यापी स्तर पर आगे और तेज किया जाएगा, जिससे विभाग का संपूर्ण कामकाज अनिश्चितकाल तक प्रभावित हो सकता है।

● इसलिए उभरा इतना बड़ा विरोध? संवर्ग का अस्तित्व संकट में

जनसंपर्क विभाग के अधिकारी लंबे समय से यह मांग उठाते रहे हैं कि विभागीय संरचना, पदोन्नति और नियुक्तियाँ पारदर्शी ढंग से हों। राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी सीधे अपर संचालक स्तर पर लाया जाना उन्हें अपने संवर्ग पर “अतिक्रमण” जैसा लगा।

● वरिष्ठता और कैडर नियमों की अनदेखी

जनसंपर्क अधिकारियों का कहना है कि उनके भीतर ऐसे कई अधिकारी मौजूद हैं जो वर्षों से वरिष्ठता सूची में प्रमोशन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ऐसे में बाहरी अधिकारी की पदोन्नति और तैनाती उनके कैरियर ग्राफ पर सीधा असर डालती है।

● विभागीय स्वायत्तता पर आघात

जनसंपर्क विभाग का कार्य बेहद विशिष्ट और विशेषज्ञता आधारित माना जाता है। लेखन, मीडिया प्रबंधन, जनसंपर्क कौशल, संचार मनोविज्ञान, सरकारी योजनाओं की प्रस्तुति आदि इसकी मूल आवश्यकताएँ हैं। अधिकारी-कर्मचारी मानते हैं कि इस विशेषज्ञता की अनदेखी कर निर्णय लेना विभागीय कौशल और प्रोफेशनलिज़्म को कमजोर करता है।

● राजनीतिक गलियारों में चर्चा क्या यह निर्णय जल्दबाजी में लिया गया?

सूत्रों के अनुसार विभाग के भीतर और राजनीतिक दायरों में यह चर्चा भी है कि फैसले की प्रक्रिया में वरिष्ठ अधिकारियों से उचित परामर्श नहीं लिया गया। जनसंपर्क विभाग में पहले भी बाहरी संवर्ग से पदस्थापना के प्रयास हुए थे, जिन पर बाद में विवाद बढ़ा और सरकार को निर्णय वापस लेना पड़ा। यह मामला अब केवल विभाग का नहीं रहा, यह शासन की निर्णय प्रक्रिया, पारदर्शिता और विभागीय स्वायत्तता की कसौटी बन चुका है। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि सरकार समाधान का मार्ग अपनाती है या विवाद और गहरा होता है। अब गेंद सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय के पाले में है उन्हें तय करना है कि यह केवल एक आदेश का सवाल है या पूरे विभाग के आत्मसम्मान का।

● थमा गया था सूचनाओं का प्रवाह

जनसंपर्क विभाग वह धुरी है, जिसके माध्यम से शासन से जनता तक और जनता से शासन तक सूचनाओं का संचार होता है। हड़ताल के कारण प्रेस नोट्स, सरकारी कार्यक्रमों की फोटो–वीडियो रिलीज़, मीडिया समन्वय, सोशल मीडिया संचालन और जिला स्तर पर सूचना प्रसारण लगभग बंद हो गई थी। सूत्रों के अनुसार जिस दिन विभाग में काम पूरी तरह ठप था, उसी दिन मुख्यमंत्री और सरकार से संबंधित खबरों को प्रकाशित करवाने की जिम्मेदारी भाजपा के मीडिया सेल ने निभाई। यह स्थिति स्वयं में जनसंपर्क तंत्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है। क्या किसी प्रशासनिक निर्णय ने विभागीय तंत्र को इतना कमजोर कर दिया है कि काम बाधित होते ही वैकल्पिक प्रणाली सक्रिय करनी पड़ रही है? साथ ही इस मामले का एक और पहलू है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव स्वयं जनसंपर्क विभाग के प्रभारी मंत्री हैं। अपने ही विभाग के अधिकारियों का सामूहिक विरोध, काम बंद कर देना और विभाग का ठप्प होना यह स्थिति मुख्यमंत्री की प्रत्यक्ष निगरानी वाले विभाग में असाधारण मानी गई।

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