--राजीव रंजन नाग
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज।
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगा दी है। अब जिला कलेक्टर को प्रॉपर्टी विवाद पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं होगा। हालांकि, यह रोक तब तक के लिए है, जब तक कि संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता। नए कानून ने जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्ति के स्वामित्व से संबंधित मामलों में अंतिम मध्यस्थ के रूप में अधिकार दिया था।
कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के संचालन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन संपत्ति को वक्फ के रूप में समर्पित करने के लिए 5 वर्ष तक इस्लाम का पालन करने की शर्त के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की उस प्रावधान पर रोक लगा दी है, जिसके तहत किसी व्यक्ति को वक्फ बनाने के लिए कम से कम 5 वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना अनिवार्य था। अदालत ने कहा कि यह रोक तब तक लागू रहेगी जब तक राज्य सरकारें यह निर्धारित करने के लिए नियम नहीं बना लेतीं कि कोई व्यक्ति इस्लाम का अनुयायी है या नहीं।
अदालत ने कहा- इस पर तब तक रोक लगा दी गई है जब तक कि राज्य द्वारा यह जांचने के लिए नियम नहीं बनाए जाते कि व्यक्ति मुस्लिम है या नहीं। अदालत ने कहा कि ऐसे किसी नियम/तंत्र के बिना, यह प्रावधान मनमाने ढंग से सत्ता का प्रयोग करेगा।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस मामले में अंतरिम राहत पर फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने 22 मई को फैसला सुरक्षित रखा था। केंद्र सरकार ने इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं का जवाब देते हुए कहा था कि वक्फ "मौलिक अधिकार नहीं है", न ही यह इस्लाम का "आवश्यक" हिस्सा है।
आज कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि कानून के संपूर्ण प्रावधानों पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं है, लेकिन कुछ धाराओं पर अंतरिम संरक्षण जरूरी है। जस्टिस गवई ने कहा कि हमने यह माना है कि किसी कानून की संवैधानिकता का अनुमान हमेशा उसके पक्ष में होता है। केवल अत्यंत दुर्लभ मामलों में ही उस पर रोक लगाई जाती है। उन्होंने कहा कि हमने 1923 के अधिनियम से लेकर अब तक की विधायी पृष्ठभूमि का अध्ययन किया है। हमने प्रत्येक धारा को लेकर प्राथमिक स्तर पर चुनौती पर विचार किया, और पक्षों को सुनने के बाद यह पाया कि पूरे अधिनियम के प्रावधानों पर रोक लगाने का मामला सिद्ध नहीं हुआ है।
● सुप्रीम कोर्ट ने 3 मुद्दों पर अंतरिम रोक लगाई
(1) वक्फ यूजर डिनोटिफिकशन पर रोक
(2) कलेक्टर की शक्ति पर रोक
(3) गैर-मुस्लिमों को शामिल करने पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम यह भी मानते हैं कि वक्फ बोर्ड में 3 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए और कुल मिलाकर 4 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए। इस मामले में जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने अपना फैसला सुनाया।
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने कोर्ट के फैसले पर कहा कि यह वाकई एक अच्छा फ़ैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की साज़िश और इरादों पर लगाम लगा दी है। ज़मीन दान करने वाले लोग इस बात से डरे हुए थे कि उनकी ज़मीन हड़पने की कोशिश सरकार कैसे तय करेगी कि कौन 5 साल से धर्म का पालन कर रहा है? यह आस्था का मामला है। हम लड़ाई जारी रखेंगे। कलेक्टर को नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों का फैसला करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन होगा। ट्रिब्यूनल द्वारा फैसला होने तक, किसी भी पक्ष के विरुद्ध कोई तृतीय पक्ष अधिकार सृजित नहीं किया जा सकता। कलेक्टर को ऐसी शक्तियों से संबंधित प्रावधान पर रोक रहेगी।
हालांकि अदालत ने वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण की आवश्यकता पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, यह देखते हुए कि यह पहलू पहले के कानूनों में भी मौजूद है। पंजीकरण के लिए निर्धारित समय सीमा में संशोधन की आवश्यकता की चिंता के जवाब में, अदालत ने कहा कि उसने अपने आदेश में इस पहलू पर विचार किया है। मुख्य न्यायाधीश ने अंतरिम आदेश के प्रभावी अंशों को लिखवाते हुए कहा कि हमने माना है कि पंजीकरण 1995 से 2013 तक अस्तित्व में था... और अब भी है। इसलिए हमने माना है कि पंजीकरण कोई नई बात नहीं है।
1995 के वक्फ कानून में संशोधन, जिसे संसद ने पारित कर दिया और अप्रैल में राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिल गई, ने देश भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था। मुस्लिम संगठनों ने इन संशोधनों को असंवैधानिक और वक्फ की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की साज़िश करार दिया था। सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि कई वक्फ संपत्तियाँ बड़े भूमि विवादों में फँसी हुई हैं और उन पर अतिक्रमण का आरोप लगाया गया है।
वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में मुसलमानों का एक प्रमुख संगठन, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी शामिल है। इसके सदस्य, सैयद कासिम रसूल इलियास ने कहा कि बोर्ड द्वारा उठाए गए मुद्दों को शीर्ष अदालत ने "काफी हद तक" स्वीकार कर लिया है। अदालत ने कहा, "'वक्फ बाय यूजर' पर हमारी बात मान ली गई है। इसके साथ ही, संरक्षित स्मारकों पर भी हमारी बात भी मान ली गई है कि कोई तीसरे पक्ष का दावा नहीं होगा। जो पांच साल का संशोधन लगाया गया था उसे हटा दिया गया है। हम संतुष्ट है।"
कई विपक्षी नेताओं, गैर-सरकारी संगठनों और कार्यकर्ताओं ने संशोधित अधिनियम की आलोचना करते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन बताया है, जो नागरिकों को धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता प्रदान करता है। संसद में इस अधिनियम के शीघ्र पारित होने और इसके कार्यान्वयन के कारण पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले सहित कई राज्यों में हिंसा भी हुई है। सर्वोच्च न्यायालय इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रहा है।