--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।
■विकास के नाम पर प्रदेश की जनता को कर्ज के बोझ तले दबाती सरकार
■सरकार द्वारा लिया गया यह कर्ज, क्या आने वाली पीढ़ियों के लिए आर्थिक संकट का कारण बनेगा?
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार एक बार फिर से वित्तीय वर्ष के दौरान चार हजार करोड़ रुपये का नया कर्ज लेने जा रही है। यह निर्णय प्रदेश की जनता, अर्थव्यवस्था और भविष्य की पीढ़ियों के लिए कई सवाल खड़े कर रहा है। क्या प्रदेश की आर्थिक स्थिति ऐसी हो चुकी है कि बार-बार कर्ज लेकर योजनाएँ चलाई जा रही हैं? क्या यह कदम आवश्यक है या फिर अनावश्यक खर्चों के लिए उठाया जा रहा है? क्या निवेश और विकास के नाम पर आयोजन किए जा रहे हैं, जिन पर अरबों रुपये खर्च हो रहे हैं, जबकि प्रदेश पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबा है?
● जनता की कमाई से बनता है बजट, फिर कर्ज क्यों?
प्रदेश का वार्षिक बजट जनता की गाढ़ी कमाई से बनता है। टैक्स के रूप में जमा होने वाले हर पैसे का हिसाब जनता से लिया जाता है। जब प्रदेश की जनता अपने करों के माध्यम से आर्थिक सहयोग करती है तो यह उम्मीद की जाती है कि उसका उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई, बुनियादी ढाँचे और रोजगार जैसे क्षेत्रों में होगा। लेकिन हाल की आर्थिक नीतियों और लगातार कर्ज लेने की प्रक्रिया ने आम नागरिक के मन में चिंता पैदा कर दी है। राज्य पर पहले ही 4,21,740.27 करोड़ रुपये का कर्ज था। कुछ ही महीनों पहले 4800 करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया और अब एक बार फिर चार हजार करोड़ रुपये का नया कर्ज जोड़ दिया जाएगा। इस प्रकार, कुल कर्ज बढ़कर 4,53,640.27 करोड़ रुपये हो जाएगा। यह आंकड़ा स्वयं में भयावह है। इतनी बड़ी राशि का कर्ज प्रदेश की आर्थिक सेहत पर कितना प्रभाव डालेगा, यह सोचने का विषय है।
● यह कर्ज विकास के लिए है या दिखावे के लिए?
सरकार कहती है कि कर्ज का उपयोग विकास कार्यों के लिए किया जाएगा। विशेष रूप से निवेश लाने के लिए आयोजनों और विदेशी दौरों पर खर्च किया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या निवेश के नाम पर होने वाले आयोजनों से वास्तविक लाभ मिल रहा है? करोड़ों रुपये की राशि विज्ञापन, आयोजन स्थल, आतिथ्य और यात्रा पर खर्च की जा रही है। क्या इन खर्चों का परिणाम प्रदेश के किसानों, युवाओं, शिक्षकों या गरीब वर्ग तक पहुँच रहा है? प्रदेश की जनता अब सवाल कर रही है कि क्या यह कर्ज लेकर विदेश यात्राओं को अंजाम दिया जा रहा है? क्या निवेश के नाम पर केवल शो-पीस आयोजन किए जा रहे हैं, जिनके नतीजे अब तक धरातल पर स्पष्ट नहीं हैं?
● पूर्ववर्ती सरकार की राह पर वर्तमान नेतृत्व?
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में भी कई बार कर्ज लिया गया था। विकास कार्यों के नाम पर योजनाएँ चलाई गईं, लेकिन कर्ज की राशि लगातार बढ़ती रही। अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी उसी राह पर चल रहे हैं, जहाँ कर्ज बढ़ता है और जनता का आर्थिक बोझ भारी होता जाता है? विशेषज्ञों का मानना है कि कर्ज का उपयोग यदि सही योजनाओं में हो तो यह आर्थिक विकास को गति दे सकता है। लेकिन यदि इसका उपयोग दिखावे, प्रचार और अनुत्पादक कार्यों पर हो तो यह प्रदेश की आर्थिक स्थिति को संकट में डाल सकता है। यही आशंका अब प्रदेश के नागरिकों में बढ़ती जा रही है।
● आर्थिक बोझ का प्रभाव, आज और आने वाले कल पर
कर्ज की इस बढ़ती राशि का सबसे बड़ा प्रभाव आम नागरिक पर पड़ता है। जब सरकार कर्ज लेती है तो उसे ब्याज सहित चुकाना होता है। इसका बोझ आखिरकार जनता पर ही आता है। टैक्स बढ़ते हैं, सरकारी सेवाओं में कटौती होती है और योजनाओं का विस्तार धीमा पड़ता है। भविष्य में राज्य की वित्तीय स्थिति ऐसी हो सकती है कि आवश्यक सेवाओं के लिए भी धन की कमी हो जाए। विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में कटौती का संकट पैदा हो सकता है। गरीब और मध्यम वर्ग पहले ही महँगाई और बेरोजगारी की मार झेल रहा है।
● संतुलन की आवश्यकता
निवेश लाना किसी भी राज्य की प्रगति के लिए आवश्यक है। लेकिन निवेश के नाम पर किए जा रहे आयोजनों का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। निवेश तभी उपयोगी है जब उससे उद्योग लगें, रोजगार उत्पन्न हो और युवाओं को स्थायी अवसर मिलें। इसके साथ ही कर्ज का उपयोग प्राथमिकताओं के आधार पर किया जाना चाहिए। पहले आवश्यक बुनियादी सुविधाएँ सुनिश्चित करें, फिर बड़े आयोजनों की योजना बनाएं। प्रदेश को ऐसे निवेश की आवश्यकता है जो दीर्घकालिक लाभ प्रदान करे, न कि अल्पकालिक दिखावा।
● जनता की आवाज कर्ज के खिलाफ चिंताएँ
आम नागरिक अब यह पूछ रहा है कि क्या विकास के नाम पर कर्ज की राह ही अपनाई जाएगी? क्या प्रदेश का भविष्य आर्थिक संकट की ओर बढ़ेगा? क्या करदाता की मेहनत से जुटाया गया पैसा प्रचार और पर्यटन पर खर्च होता रहेगा? सोशल मीडिया, जनसभाओं और नागरिक मंचों पर कर्ज को लेकर सवाल उठ रहे हैं। प्रदेश के विशेषज्ञ, अर्थशास्त्री और समाजसेवी भी चेतावनी दे रहे हैं कि आर्थिक अनुशासन आवश्यक है। यदि समय रहते कर्ज की योजना नहीं सुधारी गई तो आने वाले वर्षों में राज्य पर आर्थिक संकट गहरा सकता है। कर्ज कोई बुरी चीज़ नहीं, यदि उसका उपयोग विकास की दिशा में किया जाए। लेकिन जब कर्ज का उपयोग दिखावे, यात्रा और अनुत्पादक आयोजनों पर हो, तब यह राज्य की आर्थिक स्थिरता को नुकसान पहुँचा सकता है। डॉ. मोहन यादव की सरकार को चाहिए कि वह पारदर्शिता से बताए कि नया कर्ज किस उद्देश्य के लिए लिया जा रहा है। निवेश की योजनाओं का स्पष्ट रोडमैप जनता के सामने रखा जाए। पूर्ववर्ती सरकार की राह पर चलने से बचना होगा।