--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।
■बेलगाम जुबान और बिगड़ी राजनीतिक समझ का उदाहरण है जीतू पटवारी का विवादित बयान
मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी एक बार फिर चर्चा में हैं, लेकिन इस बार भी अपने कार्यों या किसी सकारात्मक पहल के कारण नहीं, बल्कि अपने ही मुख से निकले बिगड़े स्वर के कारण। राजनीति में नेताओं की जुबान ही उनकी सबसे बड़ी ताकत होती है, किंतु यही जुबान यदि बेलगाम हो जाए तो यह न केवल व्यक्ति की छवि पर चोट करती है, बल्कि पूरी पार्टी को भी भारी नुकसान पहुंचा देती है। हाल ही में पटवारी ने एक ऐसा बयान दे डाला, जिसने प्रदेश की महिलाओं को आहत किया और कांग्रेस की राजनीतिक जमीन को और भी खिसकाने का काम किया। पटवारी ने प्रदेश की महिलाओं को शराब की आदी बताकर न केवल असंवेदनशीलता दिखाई, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस आज भी अपने ही नेताओं की जुबान पर नियंत्रण नहीं रख पा रही है।
●आगामी चुनाव और पटवारी की जुबान
राजनीति में एक-एक शब्द तोला-मापा जाना चाहिए। चुनाव के ठीक पहले, जब कांग्रेस को हर राज्य में अपनी विश्वसनीयता और स्वीकार्यता के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, ऐसे समय में पटवारी जैसे नेता यदि महिलाओं पर शराब की लत का आरोप लगाने लगें तो इसका सीधा असर चुनाव परिणामों पर पड़ना तय है। मध्यप्रदेश ही नहीं, आने वाले दिनों में बिहार सहित अनेक राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। चुनावी रणभूमि में जनता केवल वादे और घोषणाएँ नहीं देखती, बल्कि नेताओं की नीयत और उनकी वाणी को भी परखती है। ऐसे में कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष यदि बिना सोचे-समझे बयान दे, तो यह कांग्रेस के लिए आत्मघाती कदम से कम नहीं।
●भाजपा का पलटवार और कांग्रेस की मुश्किलें
पटवारी के इस विवादित बयान को भाजपा ने तुरंत ही मुद्दा बना लिया। भाजपा नेताओं ने न केवल पटवारी को लताड़ लगाई बल्कि कांग्रेस को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। भाजपा का यह पलटवार बिल्कुल स्वाभाविक था, क्योंकि विपक्ष की सबसे बड़ी पूंजी सत्ता पक्ष की चूक होती है। अब सवाल यह है कि कांग्रेस बार-बार अपने ही नेताओं के बेतुके और गैर जिम्मेदार बयानों की कीमत क्यों चुकाए? जिस समय कांग्रेस को आक्रामक होकर भाजपा के शासन की विफलताओं पर चोट करनी चाहिए थी, उस समय कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष खुद ही भाजपा को गोल देने का काम कर रहा है।
●एनएफएचएस के आंकड़े और पटवारी की गलतबयानी
भारत सरकार के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के अनुसार, शराब सेवन में मध्यप्रदेश की महिलाएँ देश भर में 19वें नंबर पर हैं। शीर्ष पर हैं अरुणाचल प्रदेश की 17.8 प्रतिशत महिलाएं, सिक्किम में 14.8 प्रतिशत, असम में 5.5 प्रतिशत, तेलंगाना में 4.9 प्रतिशत, गोवा में 4.8 प्रतिशत, त्रिपुरा में 4.3 प्रतिशत, लद्दाख में 3.6 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 2.8 प्रतिशत और मध्यप्रदेश में 0.4 प्रतिशत महिलाएं शराब का सेवन करती हैं। हालांकि पटवारी का बयान तथ्यों से परे, बिना किसी आधार के और पूरी तरह से भ्रामक है। प्रदेश की आधी आबादी को शराब की आदी करार दे दे तो यह उसकी राजनीतिक अपरिपक्वता और असंवेदनशीलता का प्रमाण है।
●कांग्रेस में मार्गदर्शन का अभाव
जगत विजन जैसे कई राजनीतिक विश्लेषक पहले ही कह चुके हैं कि पटवारी को समझदार और अनुभवी मार्गदर्शक की आवश्यकता है। मगर कांग्रेस नेतृत्व शायद इस बात को गंभीरता से नहीं ले रहा। यही कारण है कि पटवारी बार-बार ऐसे बयान देते हैं, जिनसे पार्टी को नुकसान होता है।
●कांग्रेस की महिला छवि पर धक्का
महिलाएँ केवल मतदाता ही नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों के लिए आधार स्तंभ हैं। भाजपा ने लंबे समय से महिलाओं के बीच योजनाएँ और कार्यक्रमों के जरिए अपनी पकड़ मजबूत की है। वहीं कांग्रेस महिलाओं के बीच अपनी स्वीकार्यता खोती जा रही है। अब पटवारी के इस बयान ने कांग्रेस की महिला छवि को और धक्का दे दिया है। कांग्रेस की महिला कार्यकर्ता खुद इस बयान से असहज हैं। वे कैसे जनता के बीच जाकर प्रचार करेंगी, जब उनके ही प्रदेशाध्यक्ष महिलाओं पर गलत आरोप लगाते हों?
●कांग्रेस का आत्मघाती रास्ता
एक बार यह मान भी लें कि पटवारी ने बयान भावनाओं में आकर दिया हो, मगर सवाल यह है कि क्या प्रदेशाध्यक्ष को इतना भी संयम नहीं होना चाहिए कि वे अपनी ही पार्टी की साख और महिला मतदाताओं की अस्मिता से खिलवाड़ न करें? कांग्रेस पहले ही हार-जीत की दहलीज पर खड़ी है। ऐसे में नेतृत्व यदि आत्मघाती रास्ता अपनाएगा तो पार्टी की हालत और भी बदतर हो जाएगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि पटवारी के इस बयान से कांग्रेस को आगामी चुनावों में भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
●पटवारी को लगाम की ज़रूरत
जीतू पटवारी का यह बयान केवल एक जुबानी फिसलन नहीं है। यह कांग्रेस की उस गहरी समस्या का प्रतीक है, जिसमें संगठन अनुशासन और मार्गदर्शन के अभाव में बिखरा हुआ है। पटवारी को अब यह समझना होगा कि वे प्रदेशाध्यक्ष हैं, कोई साधारण कार्यकर्ता नहीं। उनके एक-एक शब्द का असर लाखों लोगों पर पड़ता है। उन्हें विवेकानंद के संदेश को आत्मसात करना चाहिए, न कि उसे अपने बेतुके बयानों से उलट देना चाहिए। कांग्रेस नेतृत्व को भी अब तय करना होगा कि वह ऐसे बेलगाम नेताओं पर कब लगाम लगाएगा। यदि अभी भी नियंत्रण नहीं किया गया तो कांग्रेस को न केवल मध्यप्रदेश, बल्कि बिहार और अन्य आगामी राज्यों के चुनावों में भी इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। राजनीति केवल नारों और भाषणों का खेल नहीं है। यह जिम्मेदारी, अनुशासन और संवेदनशीलता का क्षेत्र है। यदि कांग्रेस इस मूलमंत्र को नहीं समझती तो पटवारी जैसे नेता बार-बार उसकी नाव को डुबाने का काम करते रहेंगे।