--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।
■ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट भोपाल 2025...
■समिट की आड़ में मोहन यादव कर रहे अपनी ब्रांडिंग
■समिट में जितना खर्च, उतनी राशि में स्थापित हो सकते हैं नये उद्योग
भोपाल में दो दिवसीय ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (GIS) का आयोजन हो रहा है। इस आयोजन का शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे। इसके साथ ही देश-विदेश के कई निवेशक, उदयोगपति भी समिट में शिरकत करने वाले हैं। पिछले कई महिनों से इस समिट की तैयारियां की जा रही थी। निवेशकों को आमंत्रित करने मुख्यमंत्री मोहन यादव देश के तमाम शहरों के अलावा विदेश तक गये। इसके साथ ही आयोजन स्थल भोपाल को दुल्हन की तरह संजाया, संवारा गया है। एक आंकलन के अनुसार इस समिट के लिए मोहन यादव सरकार ने लगभग 1500 करोड़ खर्च किये हैं। यह राशि मध्यप्रदेश जैसे कर्जेलू राज्य के लिए काफी होती है लेकिन मोहन यादव ने प्रधानमंत्री मोदी को मोहित करने और अपने आप को प्रदर्शित करने के लिए सरकार का खजाना ही खोल दिया है। भले ही यह खजाना कर्ज से भरा हो। जबकि आज प्रदेश के हालात ऐसे हैं कि प्रदेश सरकार प्रतिमाह 05 हजार करोड़ का कर्ज ले रही है। दरअसल समिट तो एक बहाना है, मोहन यादव को इस बहाने अपनी ब्रांडिंग करना है। और मध्यप्रदेश में जितनी भी समिट हुई हैं उनके खर्चों को निकाला जाये तो उतनी राशि में तो प्रदेश में नये उद्योग स्थापित हो सकते थे। हम जानते हैं कि किसी भी सरकार का उद्देश्य प्रदेश के युवाओं को रोजगार देना और प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाना होना चाहिए। इस दृष्टि से, निवेश आकर्षित करना एक महत्वपूर्ण पहल है। लेकिन यहां सवाल दूसरा ही है। प्रदेश में यह पहली समिट नही है। इससे पहले भी दर्जनों समिट हुई हैं। यदि इन समिट के परिणाम देखें तो तस्वीर कुछ दूसरी ही नजर आती है। आंकड़ों में भले ही बताया जाता है कि प्रदेश में प्रत्येक समिट से लाखों करोड़ों के निवेश प्रस्ताव आये हैं। लाखों युवाओं को रोजगार मिला है लेकिन जब जमीनी हकीकत देखी जाती है तो तस्वीर काफी धुंधली नजर आती है। यह भी महत्वपूर्ण है कि सिर्फ़ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करने से विकास नहीं होगा, जब तक कि उन पर धरातल पर प्रभावी अमल नहीं किया जाता। पिछले इन्वेस्टर समिट में जो वादे किए गए थे, वे आज तक अधूरे हैं। कई उद्योगों की घोषणाएँ की गईं, लेकिन ज़्यादातर या तो शुरू ही नहीं हो पाईं या फिर अधर में लटकी रहीं। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार द्वारा आयोजित छह ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि इन आयोजनों में बड़ी-बड़ी घोषणाएं तो हुईं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
सरकार समिट के नाम पर करोड़ों का कर्ज लेकर ब्रांडिंग पर ज्यादा खर्च करती है। मुख्यमंत्री अपने आपको स्थापित करने के चक्कर में प्रदेश की खस्ता हालत को और खस्ता करने पर तुले हैं। इससे पहले भी प्रदेश में इन्वेस्टर्स समिट हुई हैं। मोहन सरकार में ही कोई सात समिट हो चुकी हैं। यह आठवीं समिट है। अब इन सात समिट की बात की जाये तो अभी तक कोई भी उदयोग जमीन पर नहीं उतरा है। लेकिन आज सवाल फिर वही उठ रहा है कि आखिर जब समिट का आउटपुट नहीं निकल रहा है तो समिट करने का क्या मतलब। इन समिट में भी प्रदेश सरकार का अरबों रूपये खर्च होता है।
• पिछली समिट का आउटपुट क्या निकला?
अगर हम 2003 से ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का रिकॉर्ड देखें, तो जमीनी स्तर पर सफलता दर शून्य प्रतीत होती है। 2003 से 2016 तक पहले पांच निवेशक सम्मेलनों में 17.50 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्तावों का दावा किया गया था। इसके बाद 2023 में इंदौर में हुए ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में लगभग 15.40 लाख करोड़ रुपये के निवेश का दावा किया। यानी लगभग 32 लाख करोड़ रुपये का निवेश प्रदेश की धरती पर आने का दावा किया गया। जबकि हकीकत यह है कि 2003 से 2023 तक केवल 3.47 लाख करोड़ रुपये ही आए, जो सरकार द्वारा प्राप्त कुल निवेश प्रस्तावों का केवल 10% है। 06 समिट के कुल निवेश का केवल 10 प्रतिशत काम हुआ। 29 लाख रोजगार का दावा था, मिले सिर्फ 38 हजार। एसोचैम की अगस्त 2024 की रिपोर्ट में बताया गया कि प्रदेश में अधिकांश नए निवेश अभी शुरू नहीं हुए। पिछले वित्त वर्ष में नए निवेश में 14% गिरावट आई है।
• विदेशी निवेश में दूसरे राज्यों से मध्यप्रदेश बहुत पीछे
विदेशी निवेश के मामले में दूसरे राज्यों से मध्यप्रदेश बहुत पीछे है। अक्टूबर 2019 से सितंबर 2022 के बीच हुए निवेश की एक रिपोर्ट के आधार पर बताया कि मप्र में 0.33 फीसदी निवेश ही हुआ है। विदेशी निवेश के मामले में प्रदेश को टॉप 10 राज्य से बाहर बताया। केवल जीआई टैग देने से कैसे काम चलेगा। 2007 में पहली जीआईएस हुई, जिसमें 1.20 लाख करोड़ निवेश का प्रस्ताव मिला, लेकिन 17,311 करोड़ रुपए ही निवेश हुए। दूसरी इंवेस्टर्स समिट 2010 में हुई और इसमें 2.35 करोड़ के निवेश का प्रस्ताव आया था, लेकिन 26,879 करोड़ रुपए ही आए। तीसरी जीआईएस 2012 में हुई और इसमें 26,054 करोड़ के प्रस्ताव आए। जबकि 3.50 करोड़ के निवेश के प्रस्ताव मिले थे। 2014 में हुई समिट के बाद 49,272 करोड़ रुपए के निवेश हुए। जबकि कुल प्रस्ताव 4.35 लाख करोड़ के आए थे। 2016 में 5.63 लाख करोड़ के प्रस्ताव आए और निवेश हुआ 32,597 करोड़ का। 2023 में 15.42 लाख करोड़ रुपए के निवेश के प्रस्ताव आए थे और 1.95 लाख करोड़ रुपए का ही निवेश हुआ।
• आखिर इतना खर्च कर क्या होगा फायदा?
विशेषज्ञों की मानें तो जब मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पिछले एक साल में सात संभागीय मुख्यालयों में क्षेत्रीय निवेश कॉन्क्लेव आयोजित किये और इतनी बड़ी संख्या में निवेश के प्रस्ताव प्राप्त किये तो फिर जीआईएस की आवश्यकता क्यों पड़ी। जीआईएस का आयोजन कहीं न कहीं एक ओर यह साबित करता है कि सरकार और मुख्यमंत्री को ने क्षेत्रीय समिट के नाम से जो भी घोषणाएं निवेश प्राप्ति हो लेकर की है वह सभी खोखली हैं और अब उन पर पर्दा डालने के लिये जीआईएस के आयोजन की श्रृंखला शुरू की है। एक बड़ा सवाल यह आता है कि आखिर जीआईएस जैसे इतने बड़े आयोजन की आवश्यकता क्यों है।