मुफ्त रेवड़ियों की घोषणा से 'परजीवियों का एक वर्ग' बनाया जा रहा है - सुप्रीम कोर्ट



--राजीव रंजन नाग
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज।

चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहारों की घोषणा करने की तेजी से बढ़ती प्रथा पर कड़ी टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोग उनके कारण "काम करने को तैयार नहीं हैं" और आश्चर्य जताया कि क्या देश में "परजीवियों का एक वर्ग" बनाया जा रहा है। शीर्ष कोर्ट ने चुनाव से पहले राजनीतिक दलों की ओर मुफ्त सुविधाओं (Freebies) की घोषणा पर नाराजगी जाहिर की और कहा कि लोग इनके चलते काम नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें मुफ्त में राशन और पैसा मिल रहा है।

जस्टिस गवई ने कहा कि मुफ्त राशन और पैसा देने के बजाए बेहतर होगा कि ऐसे लोगों को समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए ताकि वो देश के विकास के लिए योगदान दे सके। पीठ ने पूछा, "राष्ट्र के विकास में योगदान देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाने के बजाय, क्या हम परजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे हैं?" न्यायमूर्ति गवई ने महाराष्ट्र में 'लड़की बहन' योजना का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत 21-65 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह मिलते हैं, जिनकी वार्षिक पारिवारिक आय 2.5 लाख रुपये से कम है। यह पहली बार नहीं है जब मुफ्त की योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को घेरा है। बीते साल कोर्ट ने केंद्र और इलेक्शन कमीशन से पूछा था कि राजनीतिक पार्टियां हमेशा ही चुनावों से पहले मुफ्त स्कीमों की घोषणाएं करती हैं। अधिक वोट्स पाने के लिए राजनीतिक पार्टियां मुफ्त की योजनाओं पर निर्भर रहती हैं और इसका एक उदाहरण हाल ही में हुए दिल्ली चुनावों में भी देखा गया है।

शहरी क्षेत्रों में बेघर व्यक्तियों के आश्रय के अधिकार पर एक मामले की सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ ने कहा कि लोग बिना काम किए राशन और पैसा प्राप्त कर रहे हैं। पीठ ने पूछा, "राष्ट्र के विकास में योगदान देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाने के बजाय, क्या हम परजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे हैं?" न्यायमूर्ति गवई ने महाराष्ट्र में 'लड़की बहन' योजना का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत 21-65 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह मिलते हैं, जिनकी वार्षिक पारिवारिक आय 2.5 लाख रुपये से कम है। उन्होंने अन्य राज्यों में सत्तारूढ़ दलों द्वारा चलाए जा रहे इसी तरह के कार्यक्रमों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा, "दुर्भाग्य से, 'लड़की बहन' और अन्य योजनाओं की तरह, चुनाव से ठीक पहले घोषित की जाने वाली इन मुफ्त सुविधाओं के कारण लोग काम करने को तैयार नहीं हैं... उन्हें बिना कोई काम किए मुफ्त राशन और पैसे मिल रहे हैं।" पीठ ने पूछा, क्या उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाना और राष्ट्र के विकास में योगदान देने की अनुमति देना बेहतर नहीं होगा?"

जब याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि देश में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो काम मिलने पर काम नहीं करना चाहेगा। इस पर न्यायमूर्ति गवई ने उन्हें बीच में टोकते हुए एक उदाहरण दिया। उन्होंने कहा- "आपको केवल एकतरफा जानकारी होगी। मैं एक कृषि परिवार से आता हूं। महाराष्ट्र में चुनाव से ठीक पहले घोषित मुफ्त सुविधाओं के कारण किसानों को मजदूर नहीं मिल रहे हैं।" पीठ ने यह भी पूछा कि क्या इसे संतुलित नहीं किया जाना चाहिए?" अटर्नी जनरल वेंकटरमणी ने कहा कि केंद्र शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन को अंतिम रूप दे रहा है, जो शहरी बेघरों को आश्रय प्रदान करने जैसे मुद्दों से निपटेगा। अब इस मामले की सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी।

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त राशन के खिलाफ आवाज उठाई है। दिसंबर में, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ को आश्चर्य हुआ जब केंद्र ने बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त या रियायती राशन दिया जा रहा है। कोविड महामारी के बाद से मुफ्त राशन प्राप्त करने वाले प्रवासी श्रमिकों पर, पीठ ने कहा था, "कब तक मुफ्त राशन दिया जा सकता है? हम इन प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर, रोजगार और क्षमता निर्माण के लिए काम क्यों नहीं करते?"

इस मामले पर दिल्ली उच्च न्यायालय के इंकार के बाद सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उस दिन आई जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने 5 फरवरी को होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा द्वारा किए गए मुफ्त उपहारों के वादे के खिलाफ एक पूर्व न्यायाधीश द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। अपनी शिकायत में न्यायमूर्ति एसएन ढींगरा ने कहा कि पार्टियों द्वारा किए गए ऐसे वादे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत भ्रष्ट आचरण के समान हैं और उन्होंने चुनाव आयोग को उन्हें "असंवैधानिक" घोषित करने का निर्देश देने की मांग की।

उच्च न्यायालय ने पूर्व न्यायाधीश से कहा कि वह सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएं क्योंकि उसे बताया गया कि उसके समक्ष पहले से ही इसी तरह का एक मामला लंबित है। मामले की सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी।

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