सत्ता के नशे में तानाशाह बने मोहन यादव



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्‍यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■अभिव्‍यक्ति की आजादी पर पहरा लगाकर घोंटा जा रहा लोकतंत्र का गला

■राजशाही और तानाशाही से नहीं चलता प्रजातंत्र

■क्‍या कलम पर नकेल कसकर भ्रष्‍टाचार को छुपा रहे मोहन यादव?

■क्‍या मोहन यादव द्वारा अधिमान्‍यता रद्द से रूक जायेगी पत्रकारों की कलम?

■क्या मोदी जी के विजन से अलग मोहन यादव जी ने बना लिया है तानाशाही को मिशन?

एडॉल्फ हिटलर का नाम हम सभी ने सुना है। हिटलर अपने कठोर प्रशासन और उज्जड़ रवैये के लिये पूरे विश्व में माने जाते हैं। उनका उज्जड़ रवैया ही उनके प्रशासन छूटने का कारण बना और लोग उन्‍हें आज तानाशाह की तरह याद करते हैं। कुछ ऐसा ही हाल मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव का है। मोहन यादव भी आज हिटलरशाही का रवैया अपनाकर लोगों को डरा धमकाकर उनकी जमीनों को हथिया रहे हैं। जमीनों पर कब्जा कर लेना, उन्हें बेदखल कर देना यह सब कृत्य करने के बाद यदि कोई पत्रकार कलम के माध्यम से जनता के सामने सच लाने का कार्य करता है तो मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव उस पर प्रशासकीय ढंग से लगाम लगाने का कार्य करते हैं। मोहन यादव की यह कार्यशैली मध्यप्रदेश के इतिहास के अब तक के मुख्यमंत्रियों में बिल्कुल अलग है जो कलम की ताकत को दबाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।

मोहन यादव मध्‍यप्रदेश में प्रजातंत्र खत्‍म करने की ओर अग्रसर हैं। जैसा उन्‍होंने उज्‍जैन और उसके आसपास के पत्रकारों के साथ व्‍यवहार किया है क्‍योंकि उन पत्रकारों ने मुख्‍यमंत्री बनने के पहले जमीन संबंधी घोटाले को अपने पेपर में छापा था। उनके उपर झूठे मुकदमें लगाकर जेल में बंद कर दिया। उससे साफ प्रतीत होता है कि मोहन यादव लिखने बोलने और छापने की स्‍वतंत्रता पर प्रहार कर रहे हैं। उनका यह रवैया अधिनायकवाद को दर्शाता है। हाल ही में मेरे द्वारा उनके बारे में छापी गई भ्रष्‍टाचार की बातों से उन्‍हें इतना गुरेज हुआ कि उन्‍होंने तत्‍काल प्रभाव से मेरी जनसंपर्क द्वारा दी जाने वाली अधिमान्‍यता को निरस्‍त कर दिया। किसी खबर पर प्रदेश के मुखिया की ऐसी प्रतिक्रिया निश्चित ही उनकी संकीर्ण सोच और मानसिकता को दर्शाती है। इसका उदाहरण हमें कई जगह मिल जायेगा। उज्‍जैन के करीब 8-9 पत्रकार हैं जिन्‍होंने मोहन यादव के मुख्‍यमंत्री बनने के पहले इनके कारनामों को उजागर किया था उन्‍हें मोहन यादव ने गलत आरोप लगाकर या तो जेल में डलवा दिया था या जिलाबदर करवा दिया था। सूत्रों के हवाले से खबर है कि एक पत्रकार मोहन यादव के अत्‍याचारों के कारण घर वार छोड़कर कहीं चला गया है। आशंका व्‍यक्‍त की जा रही है कि कहीं उसके साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई।

जब-जब अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता पर प्रहार किया गया है तब-तब सत्‍ता पलट गई है। छत्‍तीसगढ़ इसका प्रमुख उदाहरण है। भूपेश बघेल जिन्‍होंने पत्रकारों के साथ अंतहीन अत्‍याचार किया और अंतत: उनको सत्‍ता गंवानी पड़ी। हमेशा से पत्रकारों द्वारा भ्रष्‍टाचार को उजागर करने के लिए सत्‍ता के गलत फैसलों पर खबरें प्रकाशित होती आयी हैं। मैं पिछले चार दशकों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं, जिसमें मैंने दिग्विजय सिंह, उमा भारती, बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ के शासनकाल में जनता के हित से जुड़े मुद्दे और सरकार की लापरवाही के किस्सों को कलम के माध्यम से आम जनता तक पहुंचाने का कार्य किया है। लेकिन इतने मुख्यमंत्रियों में कभी भी किसी मुख्यमंत्री ने मेरे ऊपर इस तरह का दबाव नहीं बनाया जैसा दबाव मुख्यमंत्री मोहन यादव और उनके अधिकारी बना रहे हैं। मैंने हर मुख्‍यमंत्री के कार्यकाल में भ्रष्‍टाचार का खुलकर विरोध किया और खबरें प्रकाशित की। फिर चाहे वह चाहे व्‍यापमं का मामला हो, रेत खनन का मामला हो या नर्सिंग घोटाला हो ऐसे कई भ्रष्‍टाचार के मुददों को मैंने मय सबूत दस्‍तावेजों के साथ छापा है। किसी भी मुख्‍यमंत्री ने मेरे द्वारा भ्रष्‍टाचार के मामलों को उजागर करने पर इतनी निम्‍न स्‍तरीय हरकत नहीं की जितनी मोहन यादव के प्रशासन द्वारा की गई। मोहन यादव द्वारा दी गई इतनी उची प्रतिक्रिया उनके चरित्र और कार्यप्रणाली को प्रदर्शित करती है। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने सदैव उनके विरूद्ध की गई खबरों और टिप्‍पणियों को बहुत ही सहजतापूर्ण लिया गया है। मैंने नरेन्‍द्र मोदी के खिलाफ 40 पेज की स्‍टोरी की थी। उस वक्‍त नरेन्‍द्र मोदी गुजरात के मुख्‍यमंत्री थे लेकिन उनके द्वारा कोई ओछी और निश्क्रिष्‍ट प्रतिक्रिया कभी नहीं दी गई। इसी तरह मैंने छग के मुख्‍यमंत्री रमन सिंह, मध्‍यप्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री कमललाथ के खिलाफ भी बहुत बड़ी कवर स्‍टोरी की थी परंतु उन्‍होंने कभी अपमानजनक व्‍यवहार नहीं किया। इन व्‍यक्तियों का जिक्र यहां करना जरूरी है कि यह सभी राजनीति के कददावर माने जाते हैं। वह चाहते तो अपने पद और सामर्थ्‍य का इस्‍तेमाल कर मेरे खिलाफ कार्यवाही कर सकते थे। लेकिन यह सभी असल मायने में राजनीति कर रहे हैं और प्रजातंत्र का सम्‍मान करते हैं। मोहन यादव द्वारा की गई कार्यवाही प्रशासनिक कम गुंडागर्दी ज्‍यादा नजर आ रही है।

हास्यास्पद बात यह है कि मेरे द्वारा मोहन यादव से जुड़ा एक सच क्या सामने आया इस सच ने तो मुख्यमंत्री जी को अंदर तक इतना झंकझोंर दिया है। जबकि मुख्यमंत्री के कारनामों का चिट्ठा खंगालकर देखे तो यह सूची बहुत लंबी है जो जनता के सामने आगे आते रहेंगे।

आश्चर्य करने वाली बात यह है कि मुख्यमंत्री के सलाहकारों और वरिष्ठ अधिकारियों में शामिल अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा और भरत यादव मुख्यमंत्री यादव के हाथ की कठपुतली बन गये हैं। जो जनता के हितों के लिये नीति निर्धारण करने के बजाय पत्रकारों की खोजबीन और उनकी लेखनी को रोकने की कवायद में जुट गये हैं। कई बार मुझे हंसी भी आती है कि क्या यह आईएएस अफसर इतना पढ़ लिखकर जनता के हितों को साधने वाले सच को रोकने के लिये नौकरी में आते हैं या फिर जनता के कल्याण के लिये। जब-जब किसी राज्‍य के सलाहकार आईएएस गलत सलाह देते हैं तो उस राजा का भविष्‍य गर्त में होता है। मोहन यादव का भविष्‍य भी अंधकार में प्रतीत होता नजर आ रहा है। क्‍योंकि उनके सलाहकार वरिष्‍ठ प्रशासनिक अधिकारी आईएएस राजेश राजौरा, भरत यादव और अन्‍य आईएएस मिलकर मुख्‍यमंत्री को नितांत गलत सलाह देकर उनकी सीएम की कुर्सी खतरे में डाल रहे हैं। इसका एक उदाहरण छत्‍तीसगढ़ है जहां के मुखिया ने भी अधिकारियों के साथ मिलकर षड़यंत्र रचते थे। गौर करने वाली बात यह है कि उस समय के छग मुख्‍यमंत्री सचिवालय के वो अधिकारी अपने पूर्व मुख्‍यमंत्री के साथ जेल जाने के मुहाने पर खड़े हैं।

सीएम कार्यालय में पदस्‍थ वरिष्‍ठ अधिकारियों का कार्य होता है प्रदेश के मुखिया को नीति निर्माण और क्रियांवयन और अन्‍य महत्‍वपूर्ण मुददों पर ध्‍यान आकर्षित करवाकर उनको सलाह देना ताकि सीएम द्वारा किये गये फैसलों पर न कोई उंगली उठे और न ही प्रश्‍न। शायद मुझ जैसी पत्रकार के मामले में पूरा मुख्‍यमंत्री कार्यालय फैसला लेने में लग गया। और अंत में उनको समाधान नजर आया कि वो मेरी अधिमान्‍यता को तत्‍काल प्रभाव से समाप्‍त करने का दस्‍तावेज उन्‍होंने थमा दिया। मेरी खबर छपने के बाद मुख्‍यमंत्री मोहन यादव ने जो प्रतिक्रिया दी है वह नितांत तानाशाहीपूर्ण दी है। जब-जब मीडिया और प्रेस और अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता पहरा लगाया गया तब-तब सल्‍तनतों का अंत हुआ है।

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