आतिशी हो सकतीं है दिल्ली की नई मुख्यमंत्री



--राजीव रंजन नाग
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज।

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने रविवार को कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए एक ऐसा ऐलान कर दिया, जिससे दिल्ली की सियासत में घमासान मच गया है। केजरीवाल के नए दांव ने विपक्ष को चौंकाया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी के लिए नए मुख्यमंत्री का चयन करने के लिए अगले दो दिनों के भीतर आप विधायकों की बैठक होगी। माना जा रहा है कि दिल्ली की मंत्री आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। केजरीवाल ने महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के साथ दिल्ली विधान सभा चुनाव भी नवंबर में कराए जाने की बात रखी है।

दिल्ली शराब नीति में हुए कथित घोटाले के आरोप में जेल से बाहर निकलने के दो दिन बाद केजरीवाल ने रविवार को पार्टी की बैठक में कहा, "दो दिन बाद मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा। मुझे कानूनी अदालत से न्याय मिला, अब मुझे जनता की अदालत से न्याय मिलेगा। मैं जनता के आदेश के बाद ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठूंगा।" उन्होंने कहा, "मैं दिल्ली की जनता से पूछना चाहता हूं कि केजरीवाल निर्दोष हैं या दोषी? अगर मैंने काम किया है, तो मुझे वोट दें।" उन्होंने पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए यह घोषणा की है।

केजरीवाल ने कहा, "मैं सीएम की कुर्सी पर तभी बैठूंगा, जब लोग मुझे ईमानदारी का सर्टिफिकेट देंगे। जेल से बाहर आने के बाद अग्निपरीक्षा देना चाहता हूं।" उन्होंने पार्टी के मुख्यालय में कहा, “मैं सीएम की कुर्सी से इस्तीफ़ा देने जा रहा हूं और मैं तब तक सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा जब तक जनता अपना फ़ैसला न सुना दे।

केजरीवाल ने कहा - आम आदमी पार्टी के किसी सदस्य को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि वह लोगों के बीच जाएंगे और उनका समर्थन मांगेंगे। पार्टी नेताओं से बात करने के बाद उन्होंने ये तय किया कि दिल्ली का मुख्यमंत्री कोई और बने। माना जा रहा है कि केजरीवाल जनता के बीच अपने इस्तीफे का इमोशनल कार्ड चल सकें।

केजरीवाल ने कहा कि मैं अग्निपरीक्षा के लिए तैयार हूं। अगर आपको लगता है कि मैं ईमानदार हूं तो मुझे वोट देना वरना मत देना। आप जब जिता दोगे तभी मैं सीएम की कुर्सी पर बैठूंगा। केजरीवाल के इस ऐलान के बाद बीजेपी ने कहा कि इस्तीफा देना केजरीवाल की मजबूरी है।

आम आदमी पार्टी के संयोजक ने जिस तरह सीएम पद से इस्तीफे का ऐलान किया उसने सभी राजनीतिक दलों को हैरत में डाल दिया है। आखिर आम आदमी पार्टी के मुखिया को ये कदम क्यों उठाना पड़ा? एक्सपर्ट्स के मुताबिक, केजरीवाल के इस फैसले में कहीं न कहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश में उन पर लगाई गई कई शर्तें हैं, जिसकी वजह से दिल्ली के मुख्यमंत्री पर ये फैसला लेने का दबाव बढ़ा।

कानूनी जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट से मिली जमानत की शर्तें अरविंद केजरीवाल को उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में कर्तव्यों का पालन करने की पूरी आजादी नहीं देती हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा क्योंकि रिहाई के बाद भी वह मुख्यमंत्री सचिवालय का दौरा नहीं कर सकते। साथ ही साथ उन फाइलों के अलावा वो किसी भी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते हैं जिन्हें उपराज्यपाल की ओर से मंजूरी दी जानी है। केजरीवाल सरकार को इससे कई परेशानियों का सामना करना पड़ता सकता था।

इस बीच, केजरीवाल ने शनिवार को वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से उनके आवास पर मुलाकात की। केजरीवाल के साथ उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल, आप नेता मनीष सिसोदिया और उनकी पत्नी, संजय सिंह, राघव चड्ढा, दिल्ली के मंत्री आतिशी और सांसद स्वाति मालीवाल के साथ दुर्व्यवहार केरने के मामले में हाल में जेल से बाहर आए उनके सहयोगी बिभव कुमार भी थे। केजरीवाल ने कहा, जन लोकपाल विधेयक को लेकर 2014 में सत्ता संभालने के महज 49 दिन बाद मुख्यमंत्री पद से "मैंने अपने आदर्शों के लिए इस्तीफा दिया था। मुझे सत्ता की लालसा नहीं है।"

केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला और कहा कि यह अंग्रेजों से भी ज्यादा तानाशाही है। उन्होंने कहा कि गिरफ्तार होने के बावजूद उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया क्योंकि वह लोकतंत्र को बचाना चाहते थे। उन्होंने कहा, "उन्होंने (कर्नाटक के मुख्यमंत्री) सिद्धारमैया, (केरल के मुख्यमंत्री) पिनाराई विजयन, (बंगाल की मुख्यमंत्री) ममता दीदी (बनर्जी) के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं। मैं गैर-भाजपाइयों से अपील करना चाहता हूं कि अगर वे आपके खिलाफ मामले दर्ज करते हैं तो इस्तीफा न दें। यह उनका नया खेल है।"

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