--प्रदीप फुटेला,
रुद्रपुर-उत्तराखंड, इंडिया इनसाइड न्यूज।
● धार तेज और मार गहरी होती है दोहे की : डॉ 'मानव
एलपीजीआई साहित्य एसोसिएशन, मेडान (इंडोनेशिया) द्वारा अपनी 81वीं संगोष्ठी के रूप में वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय दोहा-सम्मेलन का आयोजन शनिवार रात्रि किया गया। एसोसिएशन के संस्थापक तथा अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष शर्मा और सह-संस्थापक योगिता शर्मा के प्रेरक सान्निध्य तथा वैशाली त्यागी के कुशल संचालन में सम्पन्न हुए इस सम्मेलन में विख्यात दोहाकार और सिंघानिया विश्वविद्यालय पचेरी बड़ी राजस्थान में हिंदी-विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ रामनिवास 'मानव' मुख्य अतिथि तथा संभल के वरिष्ठ कवि त्यागी अशोका कृष्णम् विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
इस अवसर पर डॉ 'मानव' और कृष्णम् के अतिरिक्त इंडोनेशिया से जकार्ता की वैशाली त्यागी, बांडुंग की इंदु नांदल, सारेबाया की मीनाक्षी गुप्ता और मीनू संयोग तथा मेडान के अशीष शर्मा और योगिता शर्मा, सिंगापुर की चित्रा गुप्ता, ऑस्ट्रेलिया से मेलबर्न की अमिता शाह तथा भारत से मुरादाबाद के राजीव प्रखर और श्रीकृष्ण शुक्ल, अमरोहा की शशि त्यागी और आकर्ष त्यागी, चंदौसी की डाॅ रीता सिंह, बिजनौर की रचना शास्त्री तथा सुजातपुर के प्रदीपकुमार 'दीप' आदि दोहाकारों ने दोहा-पाठ किया।
स्वागत, परिचय और सरस्वती-वंदना के उपरांत मुख्य अतिथि डॉ रामनिवास 'मानव' ने अपने संबोधन में दोहे को हिंदी का छोटा, किंतु सर्वाधिक लोकप्रिय छंद बताते हुए कहा कि दोहे की धार पैनी और मार गहरी होती है। यह भक्तिकाल में रामबाण और रीतिकाल में कामबाण बनकर चला, तो आधुनिक काल में शक्तिबाण बनकर चल रहा है। उन्होंने अपने बहुचर्चित दोहे भी प्रस्तुत किये। उनके निम्नलिखित दोहे को बहुत सराहा गया- वट-पीपल के देश में, पूजित आज कनेर। बूढ़ा बरगद मौन है, देख समय का फेर।।
वरिष्ठ रचनाकार राजीव प्रखर का प्रशंसित दोहा था- मन की आंखें खोलकर, देख सके तो देख। कोई है जो रच रहा, कर्मों के अभिलेख।
वैशाली रस्तोगी के इस दोहे को भी बहुत दाद मिली- कांटों का सरताज है, नारी का किरदार। राम-नाम की ओढनी, रावण पहरेदार।।
श्रीकृष्ण शुक्ल ने "कृष्ण सदा ही टालिये, आपस की तकरार।" कहकर अप्रिय कथन को अनसुना करने और आपसी तकरार को टालने का संदेश दिया, तो त्यागी अशोका कृष्णम् का कहना था- चित्रकार ने भाग्य से, ऐसे हारी जंग। सुंदर बनते चित्र पर, बिखर गये सब रंग।
अंत में आशीष शर्मा ने मुख्य अतिथि डॉ 'मानव' को समर्पित दोहे पढ़े। उनका एक दोहा देखिये- 'मानव' जी ने जो लिखा, पत्थर खिंची लकीर। दोहे इनके झूठ को, रख देते हैं चीर।
लगभग अढ़ाई घंटों तक चले इस भव्य दोहा-सम्मेलन में अनेक देशों के विशिष्ट श्रोताओं ने साक्षी के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
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