पर्यावरण को संतुलित करने के लिए जन सहभागिता जरूरी - मेयर



--हरेन्द्र शुक्ला,
वाराणसी - उत्तर प्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

● संकटमोचन फाउंडेशन एवं मदर्स फार मदर की ओर से पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित संगोष्ठी में अध्यक्ष प्रो विश्वंभरनाथ ने कहा कि स्वच्छता के मामले में गंगा जी की स्थिति अभी भी ठीक नहीं

● फाउंडेशन के चार दशक की उपलब्धियों की लगी छायाचित्र प्रदर्शनी का काशी के डोम राजा ने किया उद्घाटन

पर्यावरण को संतुलित करने के लिए आम लोगों की सहभागिता जरूरी है। महिलाओं को पर्यावरण का हिस्सा बना लिया जाय तो यह शहर हरा-भरा हो जायेगा। आने वाली पीढ़ी के भविष्य के विकास के लिए पर्यावरण का संरक्षण जरूरी है। यह बात संकटमोचन फाउंडेशन एवं मदर्स फार मदर के संयुक्त तत्वावधान में विश्व पर्यावरण दिवस के पूर्व संध्या पर तुलसीघाट पर "प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान" विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि नगर निगम के मेयर अशोक तिवारी ने कही।

उन्होंने कहा कि कभी काशी को आनंद-कानन वन कहा जाता था। लेकिन दुख की बात है कि आज यदि बीएचयू, बीएलडब्ल्यू परिसर को छोड़ दिया जाय तो अंगुली पर गिने चुने हीं पेड़ इस शहर में है। श्री तिवारी ने कहा कि यह अफसोसनाक है कि कंक्रीट के रूप में तेजी से तब्दील हो रही काशी में कुंडों, तालाबों और सरोवरों को पाटकर मकान, दुकान का निर्माण करना पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों के लिए घातक है। उन्होंने कहा कि मैं पांच वर्षों तक नगर के प्रथम नागरिक बनकर नहीं बल्कि आम नागरिक बनकर काशी और यहां की जनता जनार्दन की सेवा के लिए संघर्षरत रहूँगा। बनारस के मालिक तो बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ हैं उनका सेनापति कालभैरव और संकटमोचन जी महाराज हैं। गंगा की स्वच्छता पर चर्चा करते हुए मेयर ने कहा कि पिछली सरकारों की अपेक्षा वर्ष 2014 से मोदी सरकार ने गंगा जी की स्वच्छता पर बहुत कार्य किया है और लगातार कार्य जारी है।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए संकटमोचन फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो विश्वंभरनाथ मिश्र ने कहा कि काशी का आज जो स्वरूप दिख रहा है वह हजारों हजार साल का परिश्रम है। काशी के सकारात्मक स्पंदन (अध्यात्म, शिक्षा, संगीत, गंगा जी, सरोवर, मंदिर, गुरुवरों का आश्रम) महसूस करने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। इसलिए पूरी दुनिया में काशी आकर्षक का केंद्र है। यह शिक्षा, संगीत और अध्यात्म का शहर है। यहां मकान बनाना आसान है लेकिन विद्वान बनाना कठिन है। गंगा की स्वच्छता और निर्मलता पर चर्चा करते हुए प्रो मिश्र ने कहा कि स्वच्छता के मामले में गंगा जी की स्थिति अभी भी ठीक नहीं है। अरबों खर्च करने के बाद भी गंगा जल की गुणवत्ता आज भी दुखदाई है। गंगा की स्वच्छता के लिए सरकार के साथ ही आमजनों को भी कठोर निर्णय लेना होगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में जहां एसटीपी का निर्माण कराया गया है वहां पेयजल का कभी घोर संकट उत्पन्न हो गया था। जब संकटमोचन फाउंडेशन को पता चला तो वहां पेयजल की उपलब्धता के लिए आस्ट्रेलिया के सहयोग से ट्यूबवेल का निर्माण कराया गया। अब वहां हजारों की आबादी वाले गांवों को पेयजल की संकट से जुझना नहीं पड़ रहा है। प्रो मिश्र ने कहा कि प्लास्टिक का उपयोग सीधे मानव जीवन, जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों के साथ ही कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव छोड़ रहा है। यही वजह है कि हृदय रोग, लिवर रोग, मानसिक रोगों के साथ ही अन्य घातक बीमारियों की चपेट में लोग तेजी से आ रहे हैं।

अतिथियों का स्वागत एवं विषय स्थापना आईटी बीएचयू के पूर्व निदेशक प्रो एस एन उपाध्याय ने किया। इस अवसर पर संकटमोचन फाउंडेशन द्वारा गंगा की स्वच्छता के साथ अन्य सामाजिक सरोकारों के चार दशक की उपलब्धियों की छाया चित्र प्रदर्शनी तुलसीघाट पर लगाई गई। बीएचयू न्यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो विजयनाथ मिश्र के संयोजन में लगे चित्र प्रदर्शनी का काशी के डोम राजा श्री ओम चौधरी ने फीता काटकर किया। इस अवसर पर डोम राजा को माल्यार्पण एवं अंगवस्त्रम भेंटकर सम्मानित किया गया। समारोह में मदर्स फार मदर की संस्थापक अध्यक्ष आभा मिश्रा, प्रो राम मोहन पाठक, बीएचयू चिकित्सा विज्ञान संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो टी एम महापात्रा, प्रो अनूप मिश्रा, प्रभूदत त्रिपाठी, तनू शुक्ला, सुमन पाण्डेय, रीतू ओझा, संगीता पाण्डेय, रीता अग्रवाल ममता, अशोक पाण्डेय, एडवोकेट आनंद राय सहित सैकड़ों पर्यावरण प्रेमी मौजूद रहे। संचालन राजेन्द्र दूबे एवं धन्यवाद ज्ञापन बीएचयू वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रो एन के दूबे ने दिया।

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