--राजीव रंजन नाग,
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज़
■ घर बैठे वोट डाल सकेंगे बुजुर्ग
कर्नाटक में आगामी विधानसभा चुनाव की तारीखों का निर्वाचन आयोग ने ऐलान कर दिया है। राज्य की सभी 224 विधानसभा सीटों के लिए एक ही चरण में 10 मई को मतदान होगें और 13 मई को चुनाव नतीजे घोषित कर दिए जायेंगे। 24 मई से पहले चुनाव की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ने बताया कि विधानसभा चुनाव के लिए अधिसूचना 13 अप्रैल को जारी होगी और नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 20 अप्रैल है। 24 अप्रैल तक नामांकन वापस लिए जा सकते हैं। चुनाव आयोग के इस ऐलान के साथ ही कर्नाटक में आचार संहिता भी लागू हो गई है।
सीईसी ने कहा है निष्पक्ष चुनाव करवाना हमारी प्राथमिकता है। राज्य में करीब 17 हजार वोटर्स ऐसे हैं जिनकी उम्र 100 साल के पार जा चुकी है। आयोग का अच्छा फैसला ये है कि 80 साल से ज्यादा उम्र के लोगों और दिव्यांगों के लिए घर से मतदान (वोट फ्राम होम) की सुविधा शुरू की है।
सीईसी कुमार ने बताया कि 224 निर्वाचन क्षेत्रों वाले राज्य में अनुसूचित जाति के लिए 36 सीट और अनुसूचित जनजाति के लिए 15 सीट आरक्षित हैं। राज्य में 5.21 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें 2.59 महिला मतदाता, वहीं 16,976 वोटर्स 100 साल से अधिक उम्र के है। 9.17 लाख वोटर्स पहली बार वोट डालेंगे। इसके अलावा 80 साल से अधिक उम्र वाले 12.15 लाख वोटर्स हैं, जबकि 5.55 लाख दिव्यांग वोटर्स हैं।
सीईसी के अनुसार ‘हमारी टीम ऐसे मतदाताओं के पास फॉर्म-12 डी के साथ जाएगी। इस संबंध में गोपनीयता बरती जाएगी और पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जाएगी।’ उन्होंने कहा कि दिव्यांग जनों के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन ‘सक्षम’ शुरू किया गया है, जिसमें वे लॉग इन करके मतदान करने की सुविधा का चयन कर सकते हैं। कर्नाटक में मुख्य रूप से 3 पार्टियों के बीच मुकाबला है। भारतीय जनता पार्टी यहां सत्ता में हैं और कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में, जबकि जनता दल (सेक्युलर) प्रदेश में तीसरी बड़ी राजनीतिक ताकत है।
चुनाव आयोग ने बुधवार को घोषणा की कि कर्नाटक में 224 सीटों वाली विधानसभा के लिए नई सरकार और सदस्य चुनने के लिए 10 मई को मतदान होगा। नतीजे 13 मई को घोषित किए जाएंगे। सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस और जनता दल-सेक्युलर (जेडी-एस) के बीच एक उच्च-दांव वाली राजनीतिक लड़ाई के बीच यह घोषणा की गई है। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली भाजपा, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के आरोपों को खारिज करते हुए, राज्य में सत्ता बरकरार रखने की उम्मीद करती है। चुनाव राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी की नीतियों की लोकप्रियता का भी परीक्षण करेगा।
कुमार ने बताया कि मतदाताओं की अधिक से अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने और उन्हें लंबे सप्ताहांत की छुट्टी के लिए शहर छोड़ने से हतोत्साहित करने के लिए चुनाव सोमवार या शुक्रवार को नहीं बल्कि बुधवार को निर्धारित किया गया है। 224 ऐसे बूथ बनाए गए हैं, जिनमें यूथ कर्मचारी तैनात रहेंगे। 100 बूथों पर दिव्यांग कर्मचारी तैनात रहेंगे।
कर्नाटक में पिछला विधानसभा चुनाव मई 2018 में हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप त्रिशंकु विधानसभा हुई थी। भाजपा 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन बहुमत से कम रह गई। कांग्रेस और जद-एस ने क्रमशः 80 और 37 सीटों के साथ चुनाव के बाद गठबंधन बनाया और मुख्यमंत्री के रूप में श्री कुमारस्वामी के साथ सरकार बनाई। हालाँकि, जुलाई 2019 में, कई विधायकों द्वारा अपनी पार्टियों से इस्तीफा देने और भाजपा में शामिल होने के बाद गठबंधन टूट गया। तब भाजपा ने मुख्यमंत्री के रूप में बीएस येदियुरप्पा के साथ सरकार बनाई। उन्होंने जुलाई 2021 में इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह श्री बोम्मई ने ले ली। कर्नाटक विधानसभा में वर्तमान में सत्तारूढ़ भाजपा के 121 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 70 और उसके सहयोगी जद (एस) के पास 30 सीटें हैं।
बीजेपी लिंगायत और वोक्कालिगा के प्रभावशाली समुदायों के बीच अपने समर्थन के आधार को मजबूत करने की कोशिश कर रही है, जो राज्य की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा हैं। पार्टी ने हाल ही में शिक्षा और सरकारी नौकरियों में इन समुदायों के लिए आरक्षण बढ़ा दिया है। मुसलमानों के लिए पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा लागू किए गए 4 प्रतिशत आरक्षण को खत्म कर दिया है। दूसरी ओर, कांग्रेस बीजेपी पर सांप्रदायिक राजनीति और भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाती रही है। पार्टी ने सत्ता में आने पर बेरोजगार स्नातकों को दो साल तक प्रति माह 3,000 रुपये देने का वादा किया है। पार्टी पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों और दलितों को भी लुभाने की कोशिश कर रही है, जो मतदाताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
जेडी-एस कर्नाटक की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका निभाता रहा है। चुनाव के बाद गठबंधन के लिए अपने विकल्प खुले रखते हुए, पार्टी भाजपा और कांग्रेस दोनों से एक समान रुख बनाए हुए है। पार्टी किसानों के कल्याण और क्षेत्रीय विकास के अपने मूल मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है। जेडीएस ने 2008, 2013 और 2018 के चुनावों के रिजल्ट देखें तो जेडीएस को खास आरक्षित सीटों पर जीत नहीं मिली थी। वहीं कांग्रेस और बीजेपी तीन सीटों के अंतर से कांटें की टक्कर पर थी। जितनी बार कांग्रेस ने सरकार बनाई, आरक्षित सीटों की संख्या के मामले में बीजेपी के मुकाबले उसका प्रदर्शन कहीं बेहतर रहा।
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