--के. विक्रम राव,
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।
क्या विडंबना है? बल्कि इतिहास का कटु परिहास है! आधुनिक भारत की तीन ख्यात, विदेशी मूल की बहुयें हुयीं। राजनयिक कुटुम्ब की। एक वंचिता। दूसरी उपेक्षिता। मगर तीसरी ऐशोआराम, सर्वसम्पन्न और क्या क्या?
आखिरी वाली का उल्लेख पहले हो। नाम है सोनिया मियानो गांधी। समकालीन है। दूसरी है महारानी यूफेमिना क्रेन। इन्दौर के होलकर (मराठा) वंश की महिषी रहीं। इनका युवराज रिचर्ड होलकर था। जब होलकर रियासत के महाराजा तुकोजी का निधन हो गया था तो भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु तथा गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने रिचर्ड को उत्तराधिकार की मान्यता देने से स्पष्ट इंकार कर दिया। यूरेशियन था। उनका वंश ही खत्म हो गया।
इन दोनों के सदियों पूर्व एक थी यूनान की हेलेन। उसके पिता सेल्कुस निकाटोर, सिकंदर का सेनापति, जिसे मगधपति चन्द्रगुप्त मौर्य ने हराया था। इस यूनानी फौजी ने अपनी राजकुमारी को भेंट में पाटलिपुत्र की वधू बना दिया। राजगुरु चाणक्य ने तभी सम्राट से शर्त मनवा ली थी कि इस विदेशी मूल की रानी का पुत्र मगध सिंहासन पर प्रतिष्ठित कभी भी नहीं होगा। भारतीय राजकुमार बिन्दुसार मौर्य राज्य का दूसरा सम्राट बना।
मगर भारत की दूसरी विदेशी मूल की पतोहू जर्मनभाषी कम ही याद की गयी। अधिकतर बिसरायी और अवमानित थी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की पत्नी आस्ट्रियायी (वियना) की, भाषाविद् एमिली शेंकल थी। उनके पति प्यार से एमिली को ''बाघिनी'' कहकर पुकारते थे। बोस की भारत मुक्ति सेना (आजाद हिन्द फौज) की पताका पर भी शेर का चिन्ह लहराता था। नेताजी की यह वीरांगना जो अंग्रेजी साम्राज्यवादियों द्वारा दशकों तक असीमित पीड़ा भुगतती रही, अपने वैवाहिक जीवन के केवल तीन वर्ष तक ही दाम्पत्य सुख भोग पायी।
एमिली और नेताजी पर रुद्रांशु मुखर्जी ने एक पुस्तक लिखी थी। सुभाष बाबू के भतीजे शिशिर (पिता शरतचन्द्र बोस) की सांसद पत्नी कृष्णा ने अपनी पुस्तक ''ए ट्रू लव स्टोरी- एमिली एण्ड सुभाष'' में लिखा कि : ''नेताजी की पुस्तक ''भारतीय संघर्ष'' (इंडियन स्ट्रगल) के लिये वियना में डिक्टेशन लेने हेतु नियुक्त निजी सहायिक का इस भारतीय जंगे आजादी के अप्रतिम सेनापति से सामीप्य तथा पाणिग्रहण हुआ। वैदिक रीति से सम्पन्न हुये इस सप्तपदी में सिन्दूर भी प्रयुक्त हुआ था। यह सब इसीलिये यहां वर्णित हो रहा है क्योंकि नेताजी के कुछ कांग्रेसी शत्रुओं ने प्रचारित किया था कि नेताजी का एमिली के साथ केवल गंधर्व विवाह हुआ था। आधुनिक संदर्भ में ''लिव इन रिलेशन'' था। वहीं जवाहरलाल नेहरु का श्रद्धादेवी (सहायक ओ. मथाई की पुस्तक के अनुसार), पामेला माउंटबैटन, इत्यादि के संग जैसा। नेताजी के कुटुम्ब पर लिखित अंश में कहा गया है कि : ''सुभाष अपनी बेटी को देखने के लिए दिसंबर, 1942, में विएना पहुंचते हैं और इसके बाद अपने भाई शरतचंद्र बोस को बंगाली में लिखे खत में अपनी पत्नी और बेटी की जानकारी देते हैं। इसके बाद सुभाष उस मिशन पर निकल जाते हैं, जहां से वो फिर एमिली और अनीता के पास कभी लौट कर नहीं आए। लेकिन एमिली सुभाषचंद्र बोस की यादों के सहारे 1996 तक जीवित रहीं और उन्होंने एक छोटे से तार घर में काम करते हुए सुभाषचंद्र बोस की अंतिम निशानी अपनी बेटी अनीता बोस को पाल पोस कर बड़ा कर जर्मनी का मशहूर अर्थशास्त्री बनाया। इस मुश्किल सफर में उन्होंने सुभाषचंद्र बोस के परिवार से किसी तरह की मदद लेने से भी इनकार कर दिया। इतना ही नहीं सुभाष चंद्र बोस ने जिस गोपनीयता के साथ अपने रिश्ते की भनक दुनिया को नहीं लगने दी थी, उसकी मर्यादा को भी पूरी तरह निभाया।''
पीड़ादायी पहलू तो यह रहा कि सुभाष-एमिली की आस्ट्रियन मूल की पुत्री अनिता को भी अपने पितृराष्ट्र में ठौर से महरुम रखा गया। यहां एक सवाल नरेन्द्र मोदी से है। जब वे बर्लिन गये (मई 2017) तब अर्थशास्त्री अनिता उसके सोशलिस्ट सांसद पति मार्टिन फाफ वहीं थे। प्रधानमंत्री से भेंट करना चाहते थे पर भारतीय दूतावास के अनभिज्ञ नौकरशाहों को शायद अनिता बोस का ऐतिहासिक महत्व नहीं पता था। नतीजन भारतीय इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भेंट नहीं हो पायी। क्या इस अक्षम्य अपराध की जांच कभी होगी?
यह इसलिये भी जरुरी है कि जब राजग सरकार इतिहास के भूलों को सुधार रही तो इसे भी ठीक करना चाहिये। विदेश मंत्री एस. जयशंकर को खुद पड़ताल करना चाहिये। दण्ड देना चाहिये। अनिता भारत के लिये सोनियापुत्री से कम अहमियत वाली नहीं हैं।
अंत में एक अत्याचार से राष्ट्र को कैसे बचाये? इसका भी जिक्र हो जाये! भारतवासियों को याद दिला दूं कि अप्रैल 1999 में भारत की कांग्रेसी नेता इतालियन मूल की सोनिया मियानो प्रधानमंत्री हो ही गयीं थी। तब दलित राष्ट्रपति केआर नारायण ने उन्हें शपथ लगभग दिलवा ही दिया था। अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार एक वोट (उड़ीसा मुख्यमंत्री गिरधर गोमांगो के कारण) लोकसभा में गिर गयी थीं। तब राष्ट्र रक्षक मुलायम सिंह यादव ने देश पर फिर से यूरोशियन राज कायम होने को अवरुद्ध करने हेतु अपना मशहूर धोबी का पाट मार दिया। समाजवादी सांसदों का वोट नहीं दिया गया। सोनिया त्रिशंकु की भांति लटकीं रहीं। संदर्भ (''माई कन्ट्री, माई लाइफ'', लालकृष्ण आडवाणी, प्रकाशक : रुपा, नयी दिल्ली- पृष्ठ- 555)। हालांकि उनकी मां तथा समूचा मायका रोम से दिल्ली आ धमका था। शपथ समारोह में करतल ध्वनि करने।
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