सत्‍ता और व्‍यापार की राजनीति करते हैं सिंधिया



--विजया पाठक (एडिटर: जगत विजन),
भोपाल-मध्य प्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

■ मांग पूरी न होने पर फिर से कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं सिंधिया?

■ डेढ़ वर्ष बीत जाने के बाद भी सिंधिया और उनके समर्थकों को मिल रही हैं सिर्फ तारीख पर तारीख

■ भरोसेमंद नहीं रहा है सिंधिया घराने का इतिहास

सब जानते हैं कि सिंधिया घराने का इतिहास कैसा रहा है। यह घराना सत्‍ता और स्‍वार्थ के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। इस राजघराने पर स्‍वाधीनता संग्राम के समय से गद्दारी करने के आरोप लगे हैं। बीजेपी को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया इसी राजघराने के वारिस हैं। ज्‍योतिरादित्‍य में भी सत्‍ता की और स्‍वार्थ की वही भूख है जो कभी इनके पूर्वजों में रही थी। पिछले कुछ महिनों से हम सिंधिया की इसी भूख को देख रहे हैं। कहीं ऐसा न हो जाये कि सिंधिया अपनी मांगे पूरी न होने की स्थिति में फिर से कांग्रेस का दामन न थाम ले।

मध्य प्रदेश की सियासत की प्रमुख पार्टी भारतीय जनता पार्टी के अंदरखाने काफी उठापटक देखने को मिल रही है। यह उठापटक निगम मंडलों में नियुक्ति से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री की संभावनाओं से जुड़ा हुआ है। खास बात यह है कि इस पूरी चर्चा के केंद्र में है राज्यसभा सांसद और कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया। लगभग डेढ़ वर्ष पहले भाजपा में शामिल हुए सिंधिया की सक्रियता प्रदेश के सियासी घरानों में काफी देखने को मिल रही है। ठीक एक पखवाड़े के अंदर दूसरी बार भोपाल आए सिंधिया भारतीय जनता पार्टी के कई दिग्गज नेताओं से मुलाकात की। एयरपोर्ट से वे सीधे मुख्यमंत्री आवास पहुंचे, जहां उन्होंने आधा घंटे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से वन टू वन मुलाकात की। दोनों नेताओं के बीच क्या बातचीत हुई, इसका ब्योरा तो सार्वजनिक नहीं हुआ, लेकिन माना जा रहा है कि वे अपने समर्थकों को निगम-मंडल में बैठाना चाहते हैं, इस बारे में ही दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई। सिंधिया ने भाजपा कार्यालय जाकर प्रदेश प्रभारी पी मुरलीधर राव, प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत के साथ बैठक की।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि सिंधिया ने अपने तीन समर्थक मंत्रियों की पराजय के कारण खाली हुए तीन मंत्री पद का हवाला देकर कहा कि इन्हें सरकार में अन्य पद पर समायोजित किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि इमरती देवी, एंदल सिंह कंसाना और गिर्राज दंडोतिया विधानसभा उपचुनाव में हार गए थे, जिसके चलते उन्हें कैबिनेट से इस्तीफा देना पड़ा था। जानकारों की माने तो सिंधिया अपने साथ एक सूची लेकर चल रहे है जिसमें वे अपने समर्थकों को भाजपा सरकार में निगम मंडलों में नियुक्त किए जाने की पहरेदारी कर रहे है।

सिंधिया की यह सक्रियता सिर्फ प्रदेश में नहीं बल्कि केंद्र की मोदी सरकार में भी बरकरार है। अंदाजा लगाया जा रहा है कि बागी सिंधिया को केंद्र में मंत्री पद का दर्जा मिल सकता है। लेकिन अब तक मोदी सरकार ने इस पर कोई फाइनल निर्णय नहीं लिया है। यही वजह है कि सिंधिया को डेढ़ वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी कोई पद नहीं मिलने की स्थिति में वे फिर से प्रदेश में सक्रिय हो गए है। राजनीतिक विश्लेषक को यहां तक कह चुके है कि यदि राज्य सरकार ने सिंधिया को समय रहते कोई पद नहीं दिया तो वो दिन दूर नहीं जब सिंधिया दोबारा अपना ढेरा लेकर कांग्रेस में शामिल हो जाए। आखिरकार दल बदलने और धोखा देने की प्रवृत्ति उनके परिवार में रही है। इसलिए मोदी और शिवराज सरकार को इस दिशा में निश्चिततौर पर कोई ठोस कदम उठाने की जरूरत है। किसी समय में भाजपा को खरी-खोटी सुनाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया आज भाजपा के रंग में जरूर रंग गए है, लेकिन सूत्रों का मानना है कि वे अब भी कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारियों के संपर्क में है। और कभी भी भाजपा को धोखा दे सकते है। ठीक उसी तरह जिस तरह से उन्होंने राज्य की कमलनाथ सरकार को दिया था। इतना ही नहीं राजस्थान में गहलोत सरकार को हिलाने का श्रेय भी सिंधिया को दिया जा रहा है। क्योंकि सिंधिया के इशारे पर ही सचिन पायलट राज्य में सरकार के खिलाफ जाकर खड़े हो रहे हैं। आखिरकार सिंधिया और सचिन पायलट दोनों ही अच्छे मित्र हैं और दोनों एक साथ मिलकर इस पूरी प्रक्रिया को अंजाम देने में जुटे है। कुल मिलाकर अपने समर्थकों को मन मुताबिक पद पर बैठाने के लिए सिंधिया एंड कंपनी कुछ भी कर सकती है। आवश्यकता पड़ी तो सिंधिया एक बार फिर भाजपा का साथ छोड़ कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं।

● सत्‍ता के लिये कमलनाथ सरकार को धोखा दे चुके हैं सिंधिया

वर्ष 2018 में कमलनाथ के नेतृत्‍व में प्रदेश में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार आई थी। यह सरकार सिंधिया के निजी स्‍वार्थों और सत्‍ता की लालसा के कारण गिर गई थी। सिंधिया ने कमलनाथ सरकार में ऐसी स्थितियां पैदा कर दीं थी कि मुख्‍यमंत्री कमलनाथ को सरकार चलाना मुश्किल हो गया था। वर्तमान में कुछ ऐसी ही स्थितियां शिवराज सरकार में देखने को मिल रही है। यह स्थितियां भले ही सामने न आ रही हो लेकिन अंदरखाने सुगबुगाहट चल रही हैं कि कमलनाथ सरकार की तरह शिवराज सरकार भी सिंधिया के कारण परेशान है। समय रहते बीजेपी हाई कमान को सिंधिया को लेकर कुछ निर्णय लेना होगा। कहीं ऐसा न हो कि सिंधिया अपनी फितरत के अनुसार शिवराज सरकार को किसी बड़े संकट न डाल दें।

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