---प्रकाश पाण्डेय, कोलकाता, 24 मार्च 2018, इंडिया इंसाइड न्यूज़।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अक्सर सार्वजनिक मंचों से दम भरते हुए नजर आती हैं कि बंगाल विकास के पथ पर अग्रसर है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि राज्य के हर नागरिक पर हजारों के कर्ज लदे हुए हैं। साल 2011 का 1.93 लाख करोड़ की कर्ज राशि साल 2018-19 में बढ़कर 3.84 लाख करोड़ हो सकती है। यानि बंगाल कर्ज के बोझ तले लगातार दबता जा रहा है। ऐसे में देखा जाए तो 9.3 करोड़ जनसंख्या वाले बंगाल के हर नागरिक पर 41 हजार रुपये का कर्ज लदा हुआ है, जिसकी कम होने की संभावना ना के बराबर बनी हुई है।
राज्य सरकार ने आर्थिक सुधार और ई-गर्वनेंस लागू कर आमदनी तो बढ़ायी है लेकिन जो आमदनी बढ़ी है वह ऊँट के मुंह में जीरे के समान है। इस आमदनी के बुते कर्ज रूपी पहाड़ को पार पाना असंभव जान पड़ता है। यदि राज्य में बड़े उद्योग आते हैं तभी राजस्व आमदनी के बढ़ने की गुंजाइश होगी। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि राज्य सरकार को आमदनी बढ़ाने के साथ ही अपने खर्चों में भी कमी लानी होगी। बंगाल सरकार सामाजिक विकास सम्बन्धी योजनाओं पर अधिक खर्च किये जा रही है। आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2017-18 में राज्य को कर के रूप में होने वाली आमदनी 55, 786 करोड़ रुपये रहे थे, जिसमें से 52 हजार करोड़ रुपये कर्ज अदायगी में चले गए। साथ ही 50 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन भत्तों, पेंशन और तमाम सब्सिडियों में चले गए। यदि आमदनी से दोगुनी राशि खर्च होती है तो विकास की संभावनाएं कर्ज की आंधी में धूमिल सी जान पड़ती है।
पिछले कर्ज की स्थिति राज्य की अविकसित स्वरूप को साफ-साफ दर्शाती है। साल 2014-15 के दरम्यान 2.75 लाख करोड़ का कर्ज 2015-16 आते-आते 2.99 लाख करोड़ में तब्दील हो गया। वहीं 2016-17 में यह राशि 3.33 लाख करोड़ रहा और साल 2017-18 आते-आते 3.66 लाख करोड़ हो गया। इधर, कयास लगाये जा रहे हैं कि इस समयावधि में यह राशि 3.84 लाख करोड़ तक पहुंच सकते हैं।
सत्ता में आने के बाद तृणमूल सरकार लगातार एक के बाद एक समाजिक विकास की योजनाओं में धनराशि खर्च किये जा रही है। इन योजनाओं से राज्यवासियों को फायदा तो हो रहा है लेकिन राज्य की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बद से बदतर होती जा रही है। युवाश्री, मुक्तिर आलो, कन्याश्री, शिक्षाश्री, सबूज साथी, स्वास्थ्य साथी, तांती साथी, सम व्याथी जैसी योजनाएं शुरू कर ममता सरकार हर साल हजारों करोड़ रुपये खर्च कर रही है। इतना ही नहीं तकरीबन 8.5 करोड़ राज्यवासियों को राज्य सरकार की ओर से 2 रूपये की दर से चावल और गेहूं दी जा रही है।
ममता सरकार की ओर से सालों भर कई उत्सवों के आयोजन में भी खर्च में लगातार इजाफा दर्ज हो रहा है। प्रमुख रूप से लोक संस्कृति उत्सव, सुभाष मेला, विवेक मेला, माटी उत्सव, पुस्तक मेला, राखी बन्धन उत्सव ये ऐसे आयोजन हैं जिनसे कोई आर्थिक फायदा नहीं होता। हद तो तब हो जाती है जब सरकार द्वारा अनावश्यक रूप से राज्यभर के 15 हजार क्लबों को आर्थिक मजबूती के लिए धनराशि आवंटित की जाती है। केन्द्र व बंगाल सरकार ने बीपीएल वर्ग, बेरोजगार युवाओं, वरिष्ठ नागरिकों, बेसहारा महिलाओं, छात्रों, पुलिसकर्मियों, किसानों, ग्रामिण इलाकों के विकास, गर्भवती महिलाओं उपचार आदि की दिशा में अहम कदम उठाते हुए तमाम योजनाओं की शुरुआत की।
कन्याश्री योजना राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है, जिसके अंतर्गत छात्राओं के छात्रवृति का प्रबंध है। इस योजना के तहत सरकार 18 साल की उम्र में पहुंचने पर छात्राओं तो 25 हजार रुपये की वित्तिय मदद देती है। इस योजना का उद्देश्य लड़कियों की शिक्षा स्तर में सुधार और मुख्य रूप से उन लड़कियों को जो बीपीएल वर्ग से ताल्लुक रखती हैं। उक्त योजना के लिए साल 2014 में लंदन में वर्ल्ड गर्ल्स समिट में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सम्मानित किया गया। विदित हो कि पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को संयुक्त राष्ट्र संघ के लोकसेवा पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया और कन्याश्री प्रकल्प योजना की जमकर सराहना की गई। वहीं शिक्षक दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य साथी योजना के तहत राज्य के साढ़े 4 लाख शिक्षक, गैर-शिक्षक और अन्य कर्मियों को इससे लाभान्वित करने का प्रावधान तैयार किया। इस योजना में प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च-माध्यमिक के अलावा शिशु-शिक्षा केन्द्र व सर्वशिक्षा मिशन, अंशकालिक व कंट्रैक्चुअल के शिक्षकों को भी इसमें शामिल किया गया। इस बीमा योजना के तहत पात्र शिक्षकों को डेढ़ लाख रूपये से लेकर गंभीर बीमारी के उपचार हेतु 5 लाख रुपये तक की राशि प्रदान की जाएगी। वहीं विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए कई निःशुल्क योजनाएं शुरू की गई है। बच्चों के स्कूल ड्रेस, जूता, किताब-कापी, बैग देने के उपरांत सालाना केवल 240 रुपये लिए जाते हैं। विशेषकर लड़कियों में कन्याश्री की वजह से 16.5 प्रतिशत ड्रापआउट घटा है। इस योजना के तहत लड़कियों को कालेज में भी आर्ट्स के लिए 2000 हजार और साइंस के लिए 2500 रुपये की राशि प्रदान की जाती है। सबूज साथी में 40 लाख साइकिलें बच्चों में बांटे गए। इसमें कुल 70 लाख साइकिलें बांटने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। पढ़ाई में प्रोत्साहन के लिए 9 मेडिकल कालेज सहित 300 आईटी व पोलेटेक्निकल कालेजों की राज्य में संख्या बढायी गयी।
निर्मल बांग्ला योजना के तहत राज्य की साफ-सफाई को बरकरार रखने की पहल की गई। इस योजना के अंतर्गत सभी संगठन व क्षेत्र के चेयरमेन अपनी सहभागिता निभा रहे हैं। चेयरमेन ने खुद अपने हाथों से कूड़े-कचड़े उठा कर नगर निगम और नगरपालिका कर्मियों को उत्साहित करने का काम किया है। जिससे शहर की साफ-सफाई पहले की तुलना में बेहतर हुई है। मोबाइल वेटरनरी क्लिनिक को बंगाल में पालतू पशुओं को स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं देने के लिए शुरू की गई। इस योजना में पशु चिकित्सक घर-घर जाकर पशुओं का इलाज करते हैं।
मीट आन व्हील योजना के तहत महानगर में नानवेज की घर-घर में डिलवरी की व्यवस्था को सुनिश्चित किया गया। वहीं खाद्य साथी योजना के तहत लोगों को 2 रु किलो चावल और गेहूं साथ ही मिट्टी का तेल वितरण की व्यवस्था की गई। राज्य के लगभग 80 प्रतिशत लोग इसका लाभ उठा रहे हैं। योजना के अनुसार एक परिवार को रियायती दर पर 35 किलो प्रति माह खाद्यान दिया जा रहा है।
कम पैसे में लोगों को बेहतर भोजन देने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तमिलनाडु सरकार की अम्मा योजना की तर्ज पर सब्सिडी युक्त भोजन के तहत एकुशे अन्नपूर्णा योजना की शुरूआत की गई। जिसमें 21 रुपये में लोग मछली और चावल का आनंद उठा सकते हैं। उक्त योजना के बारे में राज्य सरकार के मत्स्य मंत्री और तृणमूल नेता चंद्रनाथ सिन्हा नें बताया कि यह योजना अक्टूर 2016 में कुछ जगहों में शुरू की गई थी, अब इसका विस्तार किया जाएगा और हमारा लक्ष्य यह है कि इसे सभी जिलों में आगामी 1 मई से जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय से शुरू करेंगे। लेकिन इन सब के बावजूद सूबे की सियासत में खुद को बीजेपी का मुखर विरोधी मानने वाली राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोध के किसी भी मौके से नहीं चूकती हैं। आधार लिंक की अनिवार्यता को लेकर भी उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था। हालांकि उसमें वो सफल नहीं रहीं और कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उन्हें पीछे हटना पड़ा। अब दीदी केन्द्र की योजनाओं को राज्य में न लागू करने की चुनौती दे रही हैं। बिते दिनों केन्द्रीय बजट में नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम का मोदी सरकार ने ऐलान किया था जिसमें राज्य सरकारों को 40 प्रतिशत अंशदान देने की बात कही थी। दीदी ने इस स्कीम को राज्य में लागू करने से साफ मना कर दिया। इस योजना को चुनौति देने वाली वो पहली मुख्यमंत्री हैं। बिते दिनों राज्य के कृष्णानगर अंचल में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि उनके राज्य में जब पहले से ऐसी योजनाएं हैं तो वे दूसरी योजनाओं में पैसा क्यों दे. .. उन्होंने मोदी सरकार पर विभिन्न योजनाओं के मद का पैसा रोकने का आरोप लगाया और कहा कि मोदी सरकार ने अपनी जनविरोधी नीति नहीं बदली तो उनके खिलाफ वे राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ेंगी।
बंगाल बजट 2018-19 में राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि यह बजट पूरी तरह से गरीबों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर बनाई गयी है और राज्य 8.92 लाख नौकरियों के सृजन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। वहीं कृषि क्षेत्र में रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए कई आईटीआई सेंटरों में विशेष तौर पर आर्थिक पक्ष को ध्यान में रखते हुए नये कोर्सों को चलाया जा रहा है, जिसमें कृषि विशेषज्ञ नवयुवाओं को प्रशिक्षण दे रहे हैं। वहीं बंगाल सरकार ने बाढ़ नियंत्रण के लिए नई परियोजना आरामबाग मास्टर प्लान तैयार किया है। हुगली जिले के अंतर्गत पड़ने वाले आरामबाग खानाकुल और उसके ईर्द-गिर्द के इलाकों को बाढ़ से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से ममता सरकार ने चालू वित्त वर्ष में ही निर्माण कार्य शुरू करने मजबूत पहल की है। अगले चार साल में योजना का काम पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। हर साल बरसात के दिनों में दामोदर और मूंडेश्वरी नदी बांध क्षतिग्रस्त हो जाता है। जिसकी वजह से आरामबाग खानाकुल और पुरसुरा के इलाके जलमग्न हो जाते हैं। खेतिहर किसानों को इसका खामियाजा तो उठाना ही पड़ता है इसके आलावा जान माल की भी क्षति होती है। इसे ध्यान में रखते हुए ममता सरकार यथाशिघ्र इस मास्टर प्लान पर काम शुरू करने जा रही है। 110 करोड़ की लागत वाली उक्त प्लान पर 2 चरणों में काम होना निश्चित हुआ है। इसके लिए राज्य सरकार ने प्रथम चरण में 60 करोड़ और दूसरे चरण के लिए 50 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। वहीं उत्तर बंगाल के जिलों में बाढ़ नियंत्रण के लिए एक नया मास्टर प्लान सरकार के विचाराधीन है। फिलहाल मालदह और उत्तरदिनाजपुर के लिए मास्टर प्लान तैयार किया गया है। दार्जलिंग, जलपाईगुड़ी, कुचबिहार और अलिपुर द्वार के लिए प्लानिंग की जा रही है। वहीं योजना को पूरा करने के लिए 6 साल का वक्त निर्धारित किया गया है। वहीं राज्य सरकार 600 किलोमिटर नदी बांध तैयार करने की योजना बना रही है। वहीं गौर करने वाली बात यह है कि बाढ़ नियंत्र को लेकर राज्य सरकार का बजट केन्द्र के मुकाबले अधिक है जहां केन्द्र सरकार बाढ़ नियंत्र के लिए 527 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। वहां राज्य सरकार का आवंटन 301 करोड़ है।
• रमते इतिहास की रिदा में सिमटा बंगाल और साक्षी रहा समय
बंगाल का इतिहास हमेशा से समृद्ध और विशिष्ट रहा है। बात गंगारिदाई के साम्राज्य की हो या फिर शशांक के प्रभुत्व की। गोपाल ने अपनी बुद्धिमता के बल पर पाल साम्राज्य की नींव रखी और सदियों तक इस राजवंश ने यहां राज किया। पाल साम्राज्य के उपरांत सेन साम्राज्य का उदय भी बंगीय जमीं ने देखा। 16वीं सदी से मुगलकाल आने तक बंगाल पर कई मुस्लिम शासकों और अंग्रेज गवर्नरों ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता, ब्रिटिश भारत यानी 1772 से 1912 तक देश की राजधानी रही। अंग्रेज अफसरों द्वारा इस शहर को डायमंड हार्बर उपनाम नाम दिया, क्योंकि किसी समय यह भारत का सबसे बड़ा महानगर और मुख्य बंदरगाह हुआ करता था। एक जनवरी साल 2001 को शहर का नाम परिवर्तन किया गया और कलकत्ता की जगह कोलकाता कर दिया गया। हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित यह शहर हमेशा से ही समृद्ध और विकसित रहा। इधर, जानकार बताते हैं कि कालीकाता की उत्पत्ति बांग्ला शब्द कालीक्षेत्र से हुई, जिसका अर्थ है मां काली की भूमि। वहीं कुछ अन्य विचारकों के मुताबिक चूना यानी काली और सिकी हुई सीपी यानी काता के मेल से कलकत्ता शहर का नामकरण हुआ, जो बांग्ला शब्द है। एक मत यह भी है कि बांग्ला शब्द किलकिला से कलकत्ता बना और किलकिला यानी समतल भूमि, इसका जिक्र यहां की प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। अंग्रेज अफसर जॉब चार्नोक का कलकत्ता यानी आज का कोलकता एक महानगर के रूप में तब्दीतल हो गया है। साल 1690 में तीन गांवों को मिलकर इस शहर की नींव रखी गई थी, जिसमें कोलिकाता, सुतानती और गोविन्दतपुर को शामिल किया गया था। भारतीय इतिहास में इस शहर का अहम स्थान है और कई ऐतिहासिक घटनाक्रमों का साक्षी भी है। साल 1756 की कालकोठरी से लेकर 1757 के प्लारसी युद्ध का वास्ता इसी शहर से रहा। इधर, कालीकाता नाम का जिक्र मुगल बादशाह अकबर के राजस्व खाते और बांग्ला कवि बिप्रदास की रचना 'मनसामंगल' में भी मिला है। अंग्रेज गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के समय में 'रेग्युलेटिंग एक्ट' के तहत साल 1774 में यहां एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई थी, जिसका अधिकार क्षेत्र कलकत्ता रहा। जिसकी परिधि में यहां रहने वाले सभी देशी और बिलायती थे।
बांग्ला नागरिक शुरू से ही साहित्य और कला क्षेत्रों में सक्रिय रहे। 19वीं सदी के मध्य में यहां पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित साहित्यिक आन्दोलन का उदय हुआ, जिसे साहित्यिक पुनर्जागरण के नाम से भी जाना जाता है। इस लहर के प्रणेताओं में रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे महान कवि और कथाकार शामिल रहे, जिन्हें साल 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। साल 1937 में टैगोर ने कोलकाता में पहले अखिल बंगाल संगीत समारोह का उद्घाटन किया था। तभी से यहां हर साल कई भारतीय शास्त्रीय संगीत समारोह आयोजित रहे हैं, जिसका क्रम आज भी जारी है। वहीं साल 1870 में नेशनल थिएटर की स्थापना के साथ ही व्यावसायिक नाटकों की शुरुआत हुई और इसका श्रेय गिरीशचंद्र घोष और दीनबन्धु मित्र जैसे महान नाटककारों को जाता है। अपने प्रयोगात्मक फिल्म निर्देशन के जरिए सत्यजित राय और मृणाल सेन ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना मुकाम सुनिश्चित किया।
खानपान के लिए कोलकाता हमेशा से ही लोकप्रिय रहा है। जिसकी एक वजह यह है कि आज भी यहां देश की दूसरे शहर की तुलना में कम लागत में स्वादिष्ट भोजन मिलता है। कालीघाट का 'कोमल विलास होटल' हो या जतिन दास रोड स्थित 'राय उडुपी होम', पार्क स्ट्री ट स्थित 'मोकंबो' होटल कॉन्टीलनेन्टील फिश के लिए प्रसिद्ध रहा है। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली का रेस्टोरेंट 'सौरव्स' भी यही स्थित है। केसी दास के रसगुल्ले और एमजी रोड स्थित इंद्रपुरी के संदेश बाहर से आने वाले लोगों की खास पसंद में शुमार है।
भारत के पूर्व में स्थित इस राज्य की भौतिक विशेषताओं की विविधता ही इसे सैलानियों के लिए खास बनाती है। जंगल हो या पहाड़, समुद्रीय तट हो या फिर धार्मिक स्थान, यहां सबकुछ है। यहां के हिल स्टेशल दार्जिलिंग के मनभावन दृश्यों से लेकर, सिलिगुड़ी की शांत आबो हवा और चाय के बागान बाहर से आने वोलों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। वहीं राज्य के कई हिल स्टेशन बेहद पुराने हैं, जिनका इतिहास प्राचीन भारत के इतिहास जितना ही समृद्ध है।
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