सेवा-संघर्ष के जरिये बनी संजय सिंह की पहचान



--- राज खन्ना, वरिष्ठ पत्रकार। इंडिया इनसाइड न्यूज़।

आप पार्टी के संजय सिंह सड़कों पर संघर्ष करते हुए राज्यसभा की देहरी पर पहुंचे हैं। लगातार दो दशकों तक संजय सिंह ने अपने गृह जनपद सुलतानपुर और उत्तर प्रदेश के अन्य स्थानों पर जनसरोकारों को लेकर जमीनी लड़ाइयां लड़ी हैं। अन्ना आंदोलन ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी। वह इससे पहले से ही अरविन्द केजरीवाल से जुड़ गए थे।

उन्होंने उन दिनों में सूचनाधिकार शिविरों में केजरीवाल को सुल्तानपुर बुलाया था ,जब केजरीवाल इतने मशहूर नहीं थे। मैगसेसे एवार्ड से सम्मानित संदीप पांडे सहित तमाम सामजिक सरोकारों से जुड़े नामों से जुड़ाव और उनके आंदोलनों में संजय सिंह की सक्रिय भागीदारी रही है।

शिक्षक दिनेश सिंह के पुत्र संजय सिंह ने मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की कोशिश की जगह खुद को पूरी तौर पर सामजिक कार्यों के प्रति  समर्पित कर दिया। उन्होंने आजाद सेवा समिति के जरिये पीड़ितों वंचितों की सेवा-सहयोग का जो अभियान छेड़ा वह उससे आज भी सक्रिय रूप से जुड़े हैं। अनेक बार जरूरतमंदों को रक्तदान करने वाले संजय ने तमाम युवाओं को इस पुनीत कार्य से जोड़ा। उनकी यह टीम उनके गृह जनपद में रक्तदान और लाचारों-बेसहारा लोगों की मदद में आज भी लगी हुई है। खुदी राम बोस के बलिदान दिवस 17 दिसम्बर को संस्था के वार्षिक कार्यक्रम में संजय सिंह शिरकत करना कभी नहीं भूलते। तिकोनिया पार्क में होने वाले इस कार्यक्रम का संचालन अभी भी संजय सिंह ही करते हैं। इस मौके पर सैकड़ों गरीबों की रजाईयां बांटी जाती है।

संजय सिंह ने सेवा के साथ ही जरूरतमंदों के हक में संघर्ष को भी जारी रखा। उनकी और अनूप संडा की जोड़ी ने समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर की लगभग अनजानी सी पार्टी लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी (लोसपा) का बैनर उठाया और फिर पटरी-गुमटी-खोमचे वालों के लिए लगातार संघर्ष किया। बिजली-पानी, पुलिस अत्याचार-भ्रष्टाचार आदि मुद्दों पर उनकी लड़ाई ने उन्हें प्रशासनिक मशीनरी के कोप का शिकार भी बनाया और जेल यात्रायें भी कराई। इसी लोसपा के बैनर और मोमबत्ती निशान के साथ सेवा-संघर्ष का यह अभियान पालिका चुनाव के जरिये राजनीति से जुड़ा। संजय के साथी अनूप संडा पालिका अध्यक्ष का चुनाव मामूली अंतर से हार गए लेकिन उसने आगे के रास्ते खोल दिए। 2012 में अनूप संडा को सपा ने उ•प्र• विधानसभा का उम्मीदवार बनाया और वह विधायक बन गए। संजय सिंह के हाथों में ही पालिका चुनाव की तरह इस चुनाव अभियान की भी कमान थी। पर अगले कुछ समय बाद यह साथ छूट गया। अन्ना आंदोलन ने संजय को छोटे से जिले सुल्तानपुर से देश की राजधानी दिल्ली में स्थापित कर दिया। आप पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार हो चुके संजय सिंह अपने जिले, जड़ों और पुराने साथियों से अभी वैसे ही जुड़े हैं। घर-शहर पहुंचते ही वह पुराने अंदाज में कभी पैदल तो कभी किसी स्कूटर पर पीछे बैठे नजर आएंगे। आप पार्टी के राज्यसभा के बाकी दो उम्मीदवारों को लेकर भले टीका-टिप्पड़ी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा हो। लेकिन संजय सिंह की पात्रता पर कहीं कोई सवाल नहीं। उनके साथी और उनका शहर वहां तो इस खबर का पहले से ही इन्तजार था। साथी-शहर इस खबर से ख़ासे खुश हैं।

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