सरकार की नीतियां और किसान की पीड़ा, खाद–यूरिया संकट ने खोली सिस्टम की पोल



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■मध्यप्रदेश में अन्नदाताओं की बदहाल स्थिति, आखिर क्यों साध रखी है मुख्यमंत्री ने चुप्पी?

■आखिर मध्यप्रदेश में कब तक किसानों को खाद और यूरिया की कमी से जूझना पड़ेगा

■कृषि संकट की मार झेलते किसान: कब मिलेगी मध्यप्रदेश को खाद–यूरिया संकट से मुक्ति?

मध्यप्रदेश, जिसे लंबे समय से कृषि प्रधान राज्य कहा जाता रहा है, आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ अन्नदाता ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। खेती को लाभ का धंधा बनाने के सरकारी वादों के बीच प्रदेश के किसान खाद और यूरिया जैसी आधारभूत जरूरतों की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं। हालात इतने गंभीर हो चुके हैं कि कई जिलों में किसान घंटों लंबी कतारों में खड़े होकर भी खाद नहीं प्राप्त कर पा रहे। इसके बावजूद मुख्यमंत्री और सरकार की ओर से कोई ठोस समाधान सामने न आना, किसानों के आक्रोश और अविश्वास को और गहरा कर रहा है।

● बंद कमरों की समीक्षा बैठकें और कागज़ी आश्वासन

सरकार द्वारा समय-समय पर आयोजित की जाने वाली समीक्षा बैठकों में किसानों को नई-नई योजनाओं के लुभावने वादे तो सुनाए जाते हैं, परंतु ज़मीनी हालात उन दावों से बिल्कुल उलट दिखाई देते हैं। किसान बार-बार यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या केवल बैठकों में लिये गए निर्णय, निर्देश और प्रेस विज्ञप्तियां वास्तव में खेत तक पहुँचती भी हैं या नहीं? योजनाओं की घोषणाएँ भले ही बड़े मंचों पर गूंजती हों, पर खेतों में बोनी के लिए परेशान किसान आज भी खाद की एक बोरी के लिए रात भर लाइन में खड़े होने को मजबूर हैं। यह स्थिति बताती है कि संकट का समाधान कागज़ पर नहीं, बल्कि तत्काल और जमीनी कार्रवाई से ही संभव है।

● किसानों की सबसे बड़ी चुनौती

किसानों का कहना है कि खाद और यूरिया की उचित सप्लाई न होने से उनकी फसलें प्रभावित हो रही हैं। बोनी के समय आवश्यक मात्रा में खाद न मिलने से उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है, जिसकी सीधी चोट किसान की आय पर पड़ती है। स्थिति यह है कि सरकारी दुकानों पर पर्याप्त खाद नहीं मिलती, वहीं निजी दुकानों पर यह कई गुना अधिक कीमतों पर बेची जा रही है। मजबूरी में किसान कर्ज उठाकर महंगे दाम पर खाद खरीदने को विवश हो रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से लगातार ऐसी खबरें भी सामने आई हैं कि खाद लेने के लिए किसानों को रात भर ट्रैक्टर और साइकिलों पर लाइन में खड़ा रहना पड़ रहा है। कई जगहों पर खाद वितरण केंद्रों पर अव्यवस्था और अफरातफरी की खबरें भी सामने आई हैं, जिसने किसान संकट को और गहरा कर दिया है।

● किसानों की मौतें गंभीर चेतावनी

स्थिति की भयावहता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खाद और यूरिया की कमी के कारण मानसिक तनाव में आए किसानों की मृत्यु की खबरें भी विभिन्न क्षेत्रों से आती रही हैं। कहीं दबाव और निराशा के चलते किसानों ने फांसी लगा ली, तो कहीं अचानक लाइन में खड़े-खड़े उनकी तबीयत बिगड़ गई। यद्यपि इन घटनाओं पर विस्तृत सरकारी जाँच व पुष्टि आवश्यक है, पर ग्रामीण इलाकों में व्याप्त तनाव और अनिश्चितता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। प्रत्येक ऐसी घटना सरकार के लिए एक चेतावनी है कि कृषक समुदाय आज भय और असुरक्षा की स्थिति से गुजर रहा है।

● मुख्यमंत्री ने नहीं लिया अब तक कोई संज्ञान

इन गंभीर हालातों के बीच मुख्यमंत्री की ओर से ठोस बयान या राहत योजना का अभाव किसानों में असंतोष को जन्म दे रहा है। राज्य के कई कृषक संगठन यह पूछ रहे हैं कि जब प्रदेश का अन्नदाता संकट में है, तब सरकार चुप क्यों है? क्या यह समय नहीं है कि मुख्यमंत्री स्वयं किसानों के बीच जाकर स्थिति का आकलन करें और प्रत्यक्ष समाधान प्रस्तुत करें? कृषि नीति विशेषज्ञों का भी मानना है कि किसानों की समस्याएँ मौसमी नहीं, बल्कि संरचनात्मक हो चुकी हैं। खाद आपूर्ति का प्रबंधन, वितरण प्रणाली की पारदर्शिता, जमीनी निगरानी और त्वरित निर्णय सरकार को इन सभी बिंदुओं पर गंभीरता से काम करना होगा।

● कर्ज का बोझ और बढ़ती मजबूरी

खाद न मिलने के कारण किसान जब महंगे दाम पर निजी स्रोतों से खरीदारी करते हैं तो वे और अधिक कर्ज में डूब जाते हैं। कर्ज एक ऐसा बोझ बन जाता है जो उन्हें पूरे साल मानसिक तनाव में रखता है। यह स्थिति केवल उनकी अर्थव्यवस्था ही नहीं, बल्कि सामाजिक जीवन पर भी असर डालती है। जब किसान अपनी फसल उगाने के लिए ही कर्ज लेने को मजबूर हो जाए, तो खेती उसके लिए लाभ का धंधा कैसे बनेगी?

● समृद्ध अन्नदाता सिर्फ नारा बनकर रह गया

सरकार और प्रशासन अक्सर “समृद्ध किसान, समृद्ध प्रदेश” जैसे नारे लगाते हैं, पर इन नारों को अन्नदाता तभी सच स्वीकार करेगा जब उसकी मूलभूत जरूरतें समय पर और उचित मात्रा में पूरी हों। क्या वह दिन कभी आएगा जब उन्हें खाद, बीज, सिंचाई और बाजार की समस्याओं से मुक्त होकर सम्मानित जीवन मिलेगा? क्या मुख्यमंत्री और संबंधित विभाग किसान की वास्तविक पीड़ा को समझकर समयबद्ध समाधान प्रस्तुत करेंगे?

● सरकार को उठाने होंगे ठोस कदम

किसानों की समस्याएँ गम्भीर हैं, पर समाधान संभव है यदि सरकार इन्हें प्राथमिकता देते हुए इन कदमों को लागू करे खाद और यूरिया की सप्लाई चेन की पारदर्शी और रियल-टाइम निगरानी, ग्रामीण क्षेत्रों में खाद वितरण केंद्र बढ़ाना और भीड़ नियंत्रण प्रणाली लागू करना, काला बाज़ारी और ओवर-रेटिंग पर कड़ी कार्रवाई, किसानों से सीधा संवाद-मुख्यमंत्री का जमीनी दौरा, जरूरतमंद किसानों को आपातकालीन राहत पैकेज, कर्जग्रस्त किसानों के लिए आसान पुनर्भुगतान और ब्याज में राहत। मध्यप्रदेश में खाद और यूरिया का संकट केवल कृषि पर ही नहीं, बल्कि किसान की मानसिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर गंभीर चोट पहुँचा रहा है। अन्नदाता की यह बदहाली प्रदेश के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए। मुख्यमंत्री और सरकार को चाहिए कि वे चुप्पी तोड़कर किसानों की दर्दनाक स्थिति पर तुरंत संज्ञान लें और राहत प्रदान करें। क्योंकि जब तक अन्नदाता सुरक्षित और समृद्ध नहीं होगा, तब तक कोई भी प्रदेश वास्तविक अर्थों में प्रगति नहीं कर सकता।

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