--अभिजीत पाण्डेय
पटना - बिहार, इंडिया इनसाइड न्यूज।
लोक आस्था का महापर्व छठ पूरे बिहार के साथ दुनियाभर में श्रद्धा और शुद्धता के साथ मनाया जा रहा है। यह चार दिवसीय पर्व नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य के रूप में सम्पन्न होता है। छठ महापर्व में खास बात यह है कि छठी मईया को अर्पित किए जाने वाले फलों, प्रसादों और पूजन सामग्रियों का हर एक हिस्सा गहरी धार्मिक भावना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है। इस पर्व में भक्ति के साथ-साथ पर्यावरण और प्रकृति के प्रति आभार भी समाहित है।
छठ पूजा में प्रसाद का महत्व: प्रसाद छठ महापर्व का सबसे पवित्र हिस्सा माना जाता है। नहाय-खाय के दिन से ही उपासक अपनी रसोई और घर को शुद्ध कर लेते हैं। पूजा में उपयोग किए जाने वाले हर पदार्थ को बिना किसी मिलावट, पूर्ण शुद्धता और पवित्रता के साथ तैयार किया जाता है। परंपरा के अनुसार, छठी मईया को जो भी अर्पण किया जाता है, वह "नैवेद्य" कहलाता है और उसे बनाने या छूने से पहले स्नान और शुद्धाचार का पालन आवश्यक है।
● ठेकुआ, आस्था का स्वाद और परंपरा की मिठास
छठ पूजा का सबसे प्रमुख प्रसाद ठेकुआ है। इसे गेहूं के आटे, गुड़ या शक्कर, नारियल और घी से बनाया जाता है। हृदय नारायण झा कहते हैं कि “ठेकुआ लोक जीवन का प्रतीक है, जो मेहनत, शुद्धता और सादगी का संदेश देता है। गुड़ मिठास और प्रेम का प्रतीक है, जबकि गेहूं धरती की उपजाऊ शक्ति का संकेत है।” ठेकुआ देसी घी में पकाया जाता है, जिसमें किसी भी प्रकार का रासायनिक पदार्थ नहीं होता। यही कारण है कि यह प्रसाद शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक माना जाता है।
● नारियल, पवित्रता और समर्पण का प्रतीक
नारियल छठ पूजा में बहुत ही शुभ फल माना जाता है। इसे “श्रीफल” भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, नारियल का कठोर बाहरी आवरण मानव के अहंकार का प्रतीक है, जिसे तोड़कर भीतर की शुद्ध आत्मा को भगवान को अर्पित किया जाता है। हृदय नारायण झा बताते हैं कि सूर्य देव की आराधना में नारियल अर्पित करने का अर्थ है, अहंकार का त्याग और भक्ति में पूर्ण समर्पण।
● केला, समृद्धि और सातत्य का प्रतीक फल
छठी मईया को केले के घोंघा (डंठल सहित केले के गुच्छे) अर्पित किए जाते हैं। केला ऐसा फल है जो पूरे साल उपलब्ध रहता है और इसे सातत्य, समृद्धि और वंशवृद्धि का प्रतीक माना गया है। श्री झा बताते हैं कि “केला प्रकृति के उस चक्र का प्रतीक है जो निरंतर चलता रहता है। छठी मईया के समक्ष इसे अर्पित करने का अर्थ है परिवार में निरंतरता, वंश की वृद्धि और घर में खुशहाली बनी रहे।”
● गन्ना, शक्ति और एकता का प्रतीक
गन्ना छठ पूजा में अनिवार्य फल है। यह लंबा और सीधा होता है, जो एकता, सामूहिक शक्ति और सहनशीलता का प्रतीक है। छठ घाटों पर प्रायः देखा जाता है कि भक्त गन्ने से कोसी या मंडप तैयार करते हैं, जो सूर्य देव की किरणों और छठी मईया के आशीर्वाद का प्रतिनिधित्व करता है। गन्ना मीठा होता है, इसलिए यह जीवन में मधुरता और धैर्य का संदेश देता है।
● सेब, अमरूद और नींबू जैसे सिजनल फल का महत्व
छठ पूजा में सेब, अमरूद और नींबू जैसे फलों का विशेष स्थान है। सेब को आरोग्य और सौंदर्य, अमरूद को ऊर्जा और जीवन शक्ति, जबकि नींबू को नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा का प्रतीक माना गया है। वैज्ञानिक रूप से भी ये फल विटामिन, फाइबर और मिनरल्स से भरपूर होते हैं, जो व्रती के शरीर में आवश्यक पोषण बनाए रखते हैं। इसके अलावा प्रसाद में रखी जाने वाली अदरक और हल्दी का भी धार्मिक अर्थ है। यह रोगों से रक्षा और शरीर की शुद्धि का प्रतीक है। लोक आस्था में माना जाता है कि अदरक और हल्दी छठी मईया की कृपा से घर में स्वास्थ्य और बल लाती हैं।
● प्रसाद और फल से पर्यावरण के प्रति कृतज्ञता
सिंघाड़ा, अखरोट और सूखे मेवे भी पूजा में चढ़ाए जाते हैं। सिंघाड़ा जल में उत्पन्न होता है, इसलिए इसे जल-ऊर्जा और जीवन के स्रोत के रूप में देखा जाता है। वहीं सूखे मेवे समृद्धि, वैभव और संपन्नता का प्रतीक माने जाते हैं। छठ पर्व का हर अर्पण हमें प्रकृति से जोड़ता है। हृदय नारायण झा कहते हैं कि “छठ केवल पूजा नहीं, बल्कि यह प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का पर्व है। सूर्य देव से हम ऊर्जा पाते हैं, जल और मिट्टी से जीवन, और फलों से पोषण। यही कारण है कि इस पर्व में किसी कृत्रिम वस्तु का प्रयोग नहीं होता।”
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