छत्‍तीसगढ़ में जल-जीवन मिशन में कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
रायपुर - छत्तीसगढ़, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■आला अधिकारियों की सांठ-गांठ से योजना में लग रहा पलीता

■साय सरकार की सख्‍ती से सुधर रही स्थितियां

■दोषी अधिकारियों पर होनी चाहिए सख्‍त कार्यवाहियां

केन्‍द्र सरकार की जल-जीवन मिशन योजना छत्‍तीसगढ़ में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है। योजना से संबंधित अधिकारी/कर्मचारी इस महत्‍वाकांक्षी योजना पर पलीता लगाने पर उतारू हैं। योजना में कमीशनखोरी और भ्रष्‍टाचार के कारण इस योजना का लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है। इस योजना के अंतर्गत उपयोग में आने वाली सामग्री की आपूर्ति के लिए अधिकारियों का एक समूह कुछ चुनिंदा कम्पनियों के सीधे संपर्क में है। महकमें की राह कमीशनखोरी की ओर तेजी से बढ़ रही है। एक ओर सिंगल विलीज ठेकेदारों को लम्बे समय से भुगतान नहीं होने से मैदानी इलाकों में योजना ठप्प हो गई है। ग्रामीणों की यह दलील है कि काम पूरा होने के बावजूद ठेकेदारों को राशि नहीं मिलने से अन्य विकास कार्यों में बाधा खड़ी हो गई है। पीड़ित ठेकेदार यह भी तस्दीक कर रहे हैं कि कमीशन की रकम नहीं देने के चलते ”हर घर नल से जल” के प्रमाणन के बावजूद कई तकनीकी और दस्तावेजी आपत्ति लगाकर उच्चाधिकारी भुगतान रोकने के नुस्खें आजमा रहे हैं। राज्यांश राशि वापस लेने के मामले में अफसर भी कोई ठोस वजह नहीं बता पा रहे हैं।

जल जीवन मिशन, केंद्र सरकार की योजना है जिसका उद्देश्य ग्रामीणों के घरों में नल द्वारा पानी पहुंचाना है। छत्तीसगढ़ में इस मिशन के तहत अब तक 40 लाख से अधिक परिवारों को नल कनेक्शन दिए जा चुके हैं। लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई भी की गई है।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस राज में पटरी से उतरी जल-जीवन मिशन की नैय्या बीजेपी शासनकाल में भी भ्रष्टाचार की गहरी खाई में गोता लगाते नजर आ रही है। पीड़ितों के मुताबिक भूपेश राज में बिल भुगतान का कमीशन 07 फ़ीसदी पर स्थिर था, जो मौजूदा शासनकाल में 10 फीसदी का आंकड़ा पार करने के मिशन पर अग्रसर है। उनके मुताबिक राज्य की साय सरकार ने संवेदनशीलता का परिचय देते हुए गाँव–कस्बों में कार्यरत सैकड़ों छोटे ठेकेदारों की सुध लेते हुए उनका भुगतान सुनिश्चित करने हेतु बजट आवंटित कर दिया था। लेकिन अफसरों की प्रभावशील टोली ने सिंगल विलेज ठेकेदारों के हिस्से की रकम मल्टी विलेज ठेकेदारों की तिजोरी में डाल दी। ऐसे मल्टी विलेज ठेकेदारों की संख्या सिर्फ आधा दर्जन बताई जाती है, जबकि सिंगल विलेज ठेकेदार महज कुछ सैकड़ा ही है। जल-जीवन मिशन की कामयाबी इन्हीं सिंगल विलेज ठेकेदारों के कामकाज पर निर्भर बताई जाती है। यह भी तस्दीक की जा रही है कि मैदानी इलाकों में कार्यरत छोटे ठेकेदारों का भुगतान नहीं होने से इस महती योजना का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने में आज भी कठिनाई का दौर जस की तस है। जल जीवन मिशन में लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार के ग्राफ से राज्य की बीजेपी सरकार की साख भी दांव पर बताई जाती है।

रायपुर में जल जीवन मिशन के मुख्यालय में सिंगल विलेज ठेकेदारों का ताँता लगा हुआ है। प्रदेश के विभिन्न जिलों से कई ठेकेदार अपने लंबित भुगतान को लेकर डेरा डाले हुए हैं। उन्हें उस समय निराशा हाथ लग रही है, जब पता पड़ रहा है कि इस योजना अंतर्गत आवंटित राज्यांश की रकम अचानक वापस लेने का फरमान जारी हो गया है। दावा किया जा रहा है कि मोटा कमीशन का अग्रिम भुगतान वसूलने के बाद उनके हिस्से की रकम चुनिंदा मल्टीविलेज एजेंसियों को भुगतान के लिए परिवर्तित कर दी गई है। इस रकम को एडिशनल एमडी एसएन पांडेय की क़वायतों के कारण डिवीजनल कार्यालयों से वापस ले लिया गया है। यही नहीं जिला कार्यालयों में पदस्थ अधिकारियों को कमीशन का टारगेट भी सौंपा गया है। इसकी भरपाई न करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों को ट्रांसफर करने की धमकी भी दी जा रही है।

● कनिष्‍ठ अधिकारियों के भरोसे योजना

शिकायतकर्ताओं के मुताबिक एडिशनल एमडी का पद इएनसी स्तर के अधिकारियों के लिए पूर्व निर्धारित है, लेकिन मौजूदा दौर में ”कमीशनखोरी” को यथावत जारी रखने के लिए ”ई” अर्थात इंजिनियर के पद पर काबिज कनिष्ठ अधिकारी को इतने महत्वपूर्ण और जिम्मेदार पद की कुर्सी पर बैठा दिया गया है। इस अफसर की कार्यप्रणाली को लेकर महकमें में कोहराम मचा है। पीड़ितों के मुताबिक विभागीय बैठकों में खुलकर कमीशन माँगा जा रहा है, अन्यथा अधिकारियों को ट्रांसफर करने की धमकी भी दी जा रही है। पीड़ित तस्दीक करते हैं कि एडिशनल एमडी की कार्यप्रणाली उच्च स्तरीय जाँच के दायरे में है, लेकिन राजनैतिक सरंक्षण के चलते उपकृत करने का सिलसिला जारी है। सूत्रों के मुताबिक राज्य को योजना में अपेक्षित विकास कार्य नहीं होने के चलते केन्द्रांश स्वीकृत नहीं हो रहा है। हालांकि कुछ माह पहले ही लगभग 371 करोड़ का राज्यांश के रूप में धनराशि सीधे तौर पर जिलों को आवंटित की गई थी। लेकिन प्रीपेड कमीशन के चलते अधिकारियों ने प्रभावशाली और चहेती एजेंसियों का भुगतान सुनिश्चित कर दिया। उसने विभिन्न जिलों को आवंटित राशि भी वापस लेने का फरमान जारी कर विभागीय गतिरोध पैदा कर दिया। बताया जाता है कि सभी खंड कार्यालयों से यह आवंटित राशि वापस ली जा रही है। पीड़ितों के मुताबिक रायपुर, सारंगढ़ बिलाईगढ़, गरियाबंद, धमतरी, बेमेतरा, महासमुंद समेत कई जिलों से यह राशि वापस हो गई है।

● ठेकेदारों से लेकर आलाधिकारियों की पौ बारह

छत्तीसगढ़ में जल-जीवन मिशन योजना से आम आबादी को पानी अभी नहीं मिल पाया है। लेकिन योजना में भ्रष्टाचार से ठेकेदारों से लेकर आलाधिकारियों की पौ बारह है। इस योजना से बड़े पैमाने पर ब्लैकमनी के उत्पादन की बू आ रही है। इसकी बंदरबांट को लेकर कई जिलों में ठेकेदारों की हड़ताल के बावजूद अफसरों की कार्यप्रणाली पर कोई असर नहीं पड़ा है। उनकी कार्यप्रणाली जस की तस होने से सरकारी तिजोरी पर सेंधमारी जोरों पर है। ऐसे अफसरों से त्रस्त कई ठेकेदारों ने केंद्रीय जांच एजेंसियों को अवगत कराया है। इस योजना के जरिए तैयार ब्लैकमनी के स्रोतों की जानकारी आयकर-ईडी और सीबीआई को भेजी गई है। दरअसल, जल-जीवन मिशन योजना का वित्तीय भार आधा केंद्र और आधा छत्तीसगढ़ शासन वहन कर रहा है।

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