--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।
■केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी गोविंद सिंह राजपूत पर छाया मंत्री पद जाने का सियासी तूफान
मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों बड़ा सियासी भूचाल आया हुआ है। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के सिर पर संकट के बादल इस कदर गहराए हुए हैं कि मंत्री पद ही खतरे में नजर आ रहा है। हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणियों, विपक्ष की तल्ख आलोचनाओं और अंदरूनी पार्टी राजनीति के ताजे घटनाक्रमों ने राजपूत की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। संपत्ति छुपाने के आरोपों में हाईकोर्ट ने न सिर्फ गोविंद सिंह राजपूत को फटकार लगाई है, बल्कि उनके पक्ष में खड़ी होने वाली राज्य सरकार, विशेषकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, को भी दो टूक सुनाई है। अब जब कोर्ट ने इस मामले में गंभीर रुख अपनाया है, तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या गोविंद सिंह राजपूत मंत्री पद से हाथ धो बैठेंगे? इससे पहले भी राजपूत और उनके भाई पर कई तरह के कई गंभीर आरोप लग चुके हैं।
● क्या वाकई छुपाई संपत्ति?
मामले की जड़ में है गोविंद सिंह राजपूत का चुनावी हलफनामा, जिसमें कथित रूप से उन्होंने अपनी सम्पत्ति का पूरा ब्यौरा नहीं दिया। आरोप यह है कि राजपूत ने जानबूझकर अपनी कुछ संपत्तियों को सार्वजनिक घोषणा से छिपा लिया। इस मुद्दे को अदालत तक पहुंचाया गया और हाल ही में हाईकोर्ट की सुनवाई के दौरान इस पर तीखी प्रतिक्रिया आई। अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि यदि मंत्री ने जानबूझकर जनता और चुनाव आयोग को गुमराह करने की कोशिश की है, तो यह गंभीर मामला है, जो उनकी विधायकी और मंत्री पद दोनों पर असर डाल सकता है।
● कोर्ट की खरी-खरी सरकार भी सवालों में
हैरानी की बात यह रही कि इस मामले में जब राज्य सरकार की ओर से मंत्री के पक्ष में दलील दी गई, तो हाईकोर्ट ने सरकार को भी आड़े हाथों लिया। अदालत ने कहा कि किसी जनप्रतिनिधि को बचाने के लिए शासन की मशीनरी का दुरुपयोग न हो, यह सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी है। इस टिप्पणी को मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए एक सख्त संदेश के तौर पर देखा जा रहा है। मोहन यादव अब विपक्षी दलों और यहां तक कि मीडिया के निशाने पर आ गए हैं कि वे एक "दागी मंत्री" को क्यों संरक्षण दे रहे हैं?
● सिंधिया खेमे पर भी सवाल
गोविंद सिंह राजपूत मध्यप्रदेश की राजनीति में एक मजबूत नेता माने जाते हैं, लेकिन उनकी ताकत का सबसे बड़ा आधार है केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया। जब 2020 में सिंधिया कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी में आए थे, तब राजपूत भी उनके साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। अब जब राजपूत पर यह संकट गहराया है, तो एक बार फिर सिंधिया खेमे की राजनीति और उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। पार्टी के भीतर यह चर्चा तेज हो गई है कि सिंधिया के "गुर्गों" को भाजपा में जिस तरह प्रमुख पद दिए गए, क्या वह निर्णय अब पार्टी के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है?
● भाजपा में अंदरूनी साज़िश?
सूत्रों की मानें तो यह मुद्दा भाजपा के ही किसी नेता द्वारा हवा दी गई है। बताया जा रहा है कि लंबे समय से सिंधिया समर्थक नेताओं और भाजपा के मूल संगठन के बीच टकराव चल रहा है। पुराने भाजपा नेताओं को यह बात खटकती रही है कि बाहर से आए नेताओं को सीधे मंत्री पद और संगठन में ऊंचा दर्जा कैसे दे दिया गया। ऐसे में, कुछ जानकारों का मानना है कि गोविंद सिंह राजपूत पर यह हमला कोई "बाहरी" षड्यंत्र नहीं बल्कि "घर का भेदी" कांड हो सकता है। यह भाजपा के अंदरूनी शक्ति संघर्ष का हिस्सा हो सकता है, जिसमें राजपूत को बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
● संगठन और सत्ता में हड़कंप
मंत्री पद पर मंडराते खतरे के कारण सिर्फ राजपूत ही नहीं, बल्कि पूरी पार्टी और संगठन परेशान है। यह भाजपा के लिए न सिर्फ छवि की क्षति होगी, बल्कि विपक्ष को एक मजबूत हथियार भी मिल जाएगा। विशेष रूप से कांग्रेस इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है। कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि “भ्रष्टाचार और पारदर्शिता” पर बड़े-बड़े भाषण देने वाली भाजपा अपने ही दागी नेताओं को क्यों बचा रही है? संगठन के भीतर भी अब यह चर्चा होने लगी है कि पार्टी को 2023 के विधानसभा चुनावों में स्पष्ट बहुमत मिला है, लेकिन अगर ऐसे नेता विवादों में घिरते रहे तो 2028 की राह मुश्किल हो सकती है।
● मुख्यमंत्री की मुश्किलें
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अब खुद भी इस मामले में घिरते नजर आ रहे हैं। कोर्ट की तीखी प्रतिक्रिया के बाद यह सवाल उठ रहा है कि मुख्यमंत्री व्यक्तिगत रूप से गोविंद सिंह राजपूत को क्यों बचा रहे हैं? क्या यह सिंधिया खेमे को खुश रखने की कोशिश है या फिर पार्टी में सामंजस्य बनाए रखने का एक प्रयास? जो भी हो, अब मुख्यमंत्री की स्थिति भी असहज हो गई है।
● इस्तीफा या न्यायिक लड़ाई?
अब सभी की निगाहें अदालत की अगली सुनवाई और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के फैसले पर टिकी हैं। यदि आरोपों की पुष्टि होती है, तो गोविंद राजपूत को न सिर्फ मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है, बल्कि उनकी विधायकी भी रद्द हो सकती है।
● भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती
गोविंद सिंह राजपूत का संकट एक अकेले नेता की मुश्किल नहीं है, यह भाजपा की सरकार, संगठन और नीति निर्धारण की गंभीर परीक्षा है। यदि पार्टी इस मामले में पारदर्शिता नहीं अपनाती, तो आने वाले समय में जनता का भरोसा डगमगा सकता है। वहीं, अगर पार्टी कार्रवाई करती है, तो संगठन के भीतर का समीकरण बिगड़ सकता है, खासकर सिंधिया खेमे के साथ। अब देखना यह है कि भाजपा "न्याय" की ओर झुकती है या "न्यायपालिका" के दबाव में कार्रवाई करने पर मजबूर होती है। जो भी हो, गोविंद सिंह राजपूत की नाव इस समय भंवर में है और उसे किनारे तक पहुंचाने का रास्ता अब बहुत कठिन हो चुका है।
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