उपहारों की होड़ में डूबी राजनीति, कर्ज में डूबे मध्यप्रदेश की जनता पर बोझ



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■केन्‍द्र सरकार के इर्दगिर्द घूम रही प्रदेश की राजनीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर उपहार भेंट करने की होड़ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच खुलकर सामने आ गई है। जहां एक तरफ राज्य आर्थिक संकट से जूझ रहा है, वहीं दूसरी तरफ सरकारें दिखावटी आयोजनों और निवेश के नाम पर योजनाओं की झड़ी लगा रही हैं। यह होड़ केवल प्रतीकात्मक नहीं रह गई, बल्कि अब जनता की आर्थिक स्थिति, विकास की प्राथमिकताएँ और शासन की जवाबदेही पर प्रश्नचिंह बन गई है। पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने श्योपुर जिले में 70 वर्षों बाद चीता वापसी को उपहार के रूप में प्रस्तुत कर खुद को विकास का नायक दिखाने का प्रयास किया। इसे पर्यावरण संरक्षण और पर्यटन विकास की दिशा में बड़ा कदम बताया गया। लेकिन सवाल यह है कि क्या इसके लिए जरूरी बुनियादी सुविधाएँ, स्थानीय रोजगार और पारिस्थितिक संतुलन पर दीर्घकालिक योजना बनाई गई? या यह केवल एक राजनीतिक प्रदर्शन भर था, जिसका असल लाभ कुछ चुनिंदा पर्यटन व्यापारियों को मिलना तय था?

● भोपाल का आईटी पार्क इसका सबसे बड़ा प्रमाण

अब डॉ. मोहन यादव ने भी उसी राह पर चलकर पीएम मित्र पार्क को उपहार के तौर पर प्रस्तुत करने की घोषणा की है। इसे बड़े निवेशकों के लिए एक आदर्श स्थल बताया जा रहा है, जहाँ उद्योगों को स्थापित कर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को गति दी जाएगी। लेकिन गहराई से देखें तो यह योजना ऐसे निवेशकों के लिए जमीन होल्ड करने का नया साधन बनती जा रही है, जो कम लागत में भूमि खरीदते हैं और कुछ समय बाद ऊँचे दामों में अन्य व्यापारियों को बेचकर मुनाफा कमा लेते हैं। ऐसे उदाहरण प्रदेश में पहले से मौजूद हैं और भोपाल का आईटी पार्क इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। आईटी पार्क का सपना एक बड़ी निवेश योजना के रूप में प्रचारित किया गया था। लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद न तो पर्याप्त कंपनियाँ वहाँ स्थापित हुईं और न ही रोजगार के अवसर बढ़े। वहीं दूसरी ओर जमीन की कीमतों में भारी वृद्धि हुई और कुछ निजी निवेशकों ने इसका लाभ उठाकर भारी मुनाफा कमा लिया। इससे स्पष्ट होता है कि बड़े निवेश के नाम पर बनाई गई योजनाएँ किस तरह आम जनता के हितों से ध्यान हटाकर पूँजीपतियों के लिए अवसर का साधन बन जाती हैं।

● संसाधनों का दोहन करने की नीति उजागर

राज्य पर 04 लाख करोड़ से अधिक का कर्ज है। बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से जूझती जनता के बीच इस कर्ज का बोझ प्रत्यक्ष रूप से महसूस किया जा रहा है। ऐसे में हजारों करोड़ रुपये की योजनाओं को उपहार के रूप में दिखाकर जनता का ध्यान भटकाना क्या उचित है? क्या इन योजनाओं की प्राथमिकता जनता की ज़रूरतों के आधार पर तय हो रही है या राजनीतिक लोकप्रियता बढ़ाने की दिशा में? पीएम मित्र पार्क जैसी योजनाएँ, जो बड़े निवेशकों के लिए जमीन होल्ड करने का नया माध्यम बनती जा रही हैं, जनता के संसाधनों का दोहन करने की नीति को उजागर करती हैं। कम पैसों में भूमि खरीदकर उसे ऊँचे दामों में बेचने का खेल प्रदेश की आर्थिक असमानता को और गहरा करता है। इससे न तो स्थानीय उद्योगों का विकास होता है, न ही युवाओं को रोजगार मिलता है। उल्टा, भूमि अधिग्रहण के नाम पर किसानों की ज़मीनें छिनती हैं और उन्हें उचित मुआवज़ा भी नहीं मिलता।

● निवेश का बड़ा हिस्सा योजनाओं की दिखावटी सफलता में खर्च हो रहा

सवाल यह भी उठता है कि क्या इन योजनाओं में पारदर्शिता है? क्या निवेशकों की जाँच-पड़ताल, परियोजना की दीर्घकालिक योजना और सामाजिक लाभ का आकलन सार्वजनिक किया गया है? यदि नहीं, तो यह योजनाएँ केवल कागज़ों में निवेश दिखाकर जनता से भरोसा तोड़ने का माध्यम बन रही हैं। राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में उपहारों की यह होड़ लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा नहीं है। विकास का अर्थ बड़े-बड़े पार्कों, महंगे समारोहों और राजनीतिक ब्रांडिंग से नहीं है। विकास वह है जो लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाए, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त करे, उद्योगों को रोजगार से जोड़े और किसानों व छोटे व्यापारियों की मदद करे। दुर्भाग्यवश, वर्तमान योजनाओं में यही बुनियादी लक्ष्य गौण होते जा रहे हैं। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि योजनाओं के माध्यम से धन का उपयोग किस दिशा में हो रहा है। जहाँ राज्य की वित्तीय स्थिति डगमगा रही है, वहीं निवेश का बड़ा हिस्सा योजनाओं की दिखावटी सफलता में खर्च हो रहा है। जनता के कर से एकत्रित धन का उपयोग ऐसे कार्यक्रमों में करना, जिनका लाभ चुनिंदा वर्गों तक सीमित रह जाए, सामाजिक असमानता को बढ़ावा देने के अलावा कुछ नहीं कर सकता।

● निवेश का बड़ा हिस्सा योजनाओं की दिखावटी सफलता में खर्च हो रहा

इस पूरे परिदृश्य में आवश्यक है कि राज्य सरकारें योजनाओं को केवल उपहार या राजनीतिक प्रचार के रूप में न प्रस्तुत करें, बल्कि आर्थिक स्थिति का गंभीरता से विश्लेषण कर जनहित को केंद्र में रखकर प्राथमिकताएँ तय करें। विकास का वास्तविक अर्थ जनता की भागीदारी, रोजगार सृजन, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय से जुड़ा है। यदि योजनाएँ केवल निवेशकों के लिए जमीन होल्ड करने का साधन बनती रहीं तो यह प्रदेश के आर्थिक भविष्य के लिए घातक सिद्ध होगी। समय आ गया है कि जनता, मीडिया और नीति निर्धारक मिलकर यह सवाल उठाएँ कि क्या ये योजनाएँ वास्तव में विकास ला रही हैं या केवल राजनीतिक लोकप्रियता और आर्थिक शोषण का खेल हैं। उपहार की राजनीति से आगे बढ़कर जनहित की राजनीति का समय आ चुका है। वरना, कर्ज और असमानता की खाई दिन-ब-दिन और गहरी होती जाएगी।

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