नरेंद्र मोदी कांग्रेस पर भैंस चोरी की किस्से सुना रहे थे..जबकि वह आपका वोट चोरी कर रहे थे..



--राजीव रंजन नाग
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■मतदाता अधिकार यात्रा

बिहार में 'मतदाता अधिकार यात्रा' को मिल रही भारी जन समर्थन के बीच प्रियंका गांधी के शामिल हो जाने से जन सैलाब इतना ज्यादा उमड़ पड़ा कि पुलिस की सुरक्षा फीकी पड़ गई। राहुल-प्रयंका की सुरक्षा में दिल्ली से पहुंची सुरक्षा दस्तें को भारी मशक्कत करनी पड़ी..। सांसद बनने के बाद प्रियंका गांधी का बिहार में पहला बड़ा कार्यक्रम है। दोनों भाई बहन मोटरसाइकिल पर सवार होकर लोगों के बीच जा रहे हैं..।

16 दिनौं वाली इस यात्रा में तेलांगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के शामिल हो जाने के बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही यात्रा एक देश-व्यापी आंदोलन बनता दिख रहा है। केंद्रीय चुनाव आयोग पहले ही बता चुका है कि मतदाता पुनर्रीक्षण (एसआईआर) का यह काम देश भर में किया जायेगा। यात्रा में इंडिया गठबंधन में शामिल सहयोगी दल राहुल के साथ चल रहे हैं।

राहुल गाँधी ने कहा- "इंडिया ब्लॉक जल्द ही बिहार विधानसभा चुनावों के लिए एक साझा घोषणापत्र जारी करेगा। विपक्षी गठबंधन के सभी घटक एकजुट होकर काम कर रहे हैं... हम वैचारिक और राजनीतिक रूप से एकजुट हैं। परिणाम अच्छे होंगे।" एसआईआर वोट चुराने का एक संस्थागत तरीका है। एनडीए दलों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ रही है।

राहुल गांधी ने कहा कि पूर्वी राज्य में मतदाता सूचियों का चल रहा विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) "भाजपा की मदद के लिए वोट चुराने का चुनाव आयोग द्वारा एक संस्थागत प्रयास" है। 17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई 16 दिवसीय यात्रा 1300 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर 1 सितंबर को पटना में एक रैली के साथ समाप्त होगी। इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं।

राहुल गांधी के साथ अब उनकी बहन प्रियंका गांधी भी इस अभियान का हिस्सा बन गईँ हैं। 26 और 27 अगस्त को दो दिन के दौरे पर बिहार पहुंची प्रियंका ने जानकी मंदिर में पूजा अर्चना की। उनके इस कार्यक्रम को साफ्ट हिन्दुत्व से जोड़कर देखा जा रहा है..।

देश की सबसे पुरानी पार्टी अपने बल पर बीते तीस सालों सै सत्ता से बाहर है। पार्टी अपनी खोई हुई जमीन को फिर से पाने की कोशिश कर रही है। प्रियंका गांधी जिस दिन यात्रा में शामिल हुईँ उसी दिन बिहार और पूर्वी यूपी में हरितालिका तीज का पर्व था इसे नीतीश कुमार के कोर वोट बैंक मानी जाने वाली महिलाओं से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस इस रणनीति के जरिये महिलाओं तक सीधा संदेश देना चाहती है। वहीं, प्रियंका का जानकी मंदिर में पूजा करना बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति को काउंटर करने का प्रयास माना जा रहा है।

पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी ने भी ऐसे ही आरोपों को काउंटर करने के लिए मंच से चंडी पाठ किया था। बिहार में प्रियंका का मंदिर जाना कांग्रेस के लिए नया सियासी प्रयोग हो सकता है। 2020 के चुनाव में महिला नेतृत्व की कमी खली थी। इस बार कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को पहले ही मैदान में उतारकर इस कमी को पूरा करने की कोशिश की है। प्रियंका बिहार में भी महिलाओं के बीच लोकप्रिय चेहरा हैं। यहां के लोग उनमें उनकी दादी इंदिया गांधी का अक्स देखते हैं..।

राहुल गांधी की यात्रा में जिस तरह का जन सैलाब दिख रहा है वह राज्य को सत्ता परिवर्तन की तरफ ले जा सकता है..। राहुल की यात्रा ने जनता के मूड को स्पष्ट रूप से बदल दिया है। लोगो में नई ऊर्जा और आशा का संचार किया है। न्याय यात्रा और भारत जोड़ो यात्रा में उमड़े जन सैलाब को बिहार की भीड़ ने फीकी कर दी है..। लोगों से मिल रहे समर्थन से राहुल खुद भी खासे उत्साहित हैं..। वह धूल भरी गलियों की खाक छान रहे हैं। उनकी एक झलक पाने को लोग मानों सड़कों पर दौड़े चले आ रहे हैं..। उन पर फूल मालायें बरसाई जा रही है और राहुल सभी का अभिवादन करते हुए आगे बढ़ते जा रहे हैं..। बिहार को राजनीतिक नजरिये से वाइब्रेंट स्टेट माना जाता है। बिहार राजनीतिक बदलावों की जमीन मानी जाती है।

हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के परिणामों ने राजनीतिक पर्यवेक्षकों की भविष्यवाणियाँ झुठला जाने के बाद यहां के बारे में कोई भी भविष्यवाणी करने से बचना चाहता है...। यह वह राज्य है जहां के मतदाता सपने भी अपनी जाति के उम्मीदवार को वोट देने के लिए जाने जाते हैं...। उत्तरी भारत में 9 करोड़ आवादी वाला यह राज्य जातियों की बेड़ी से जकड़ा हुआ है..। लेकिन नई पीढ़ी अब इससे उबरना चाहता है..।

दरअसल, जयप्रकाश नारायण की 'संपूर्ण क्रांति' के जोश में डूबा बिहार 1977 में इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के पतन का केंद्र बन गया। फिर भी, विडंबना यह है कि इसी राज्य ने 1980 में उनकी विजयी वापसी का सूत्रपात किया। दिग्गजों को इंदिरा गांधी की बेलची में जो नरसंहार से तबाह एक गाँव था, जो पटना से 90 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में बसा था, जो मानसून की बाढ़ और ऊँची घास के झुरमुटों से घिरा हुआ था। हाथी पर सवार होकर, वह हाथ जोड़े, माथे पर घूँघट डाले, उस शांत बस्ती में पहुँचीं। गरीब ग्रामीण, जिनमें मुख्यतः दलित थे, एक स्वर में नारे लगा रहे थे, "आधी रोटी खाएँगे, इंदिरा को बुलाएँगे।" यह कांग्रेस के आश्चर्यजनक पुनरुत्थान का संकेत था। राहुल गांधी की बिहार यात्रा कई मायनों में उनकी दादी की यात्रा से काफी मिलती-जुलती है। 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पर कांग्रेस की जीत में इस राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका थी, जिसने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के लिए लगातार दो कार्यकालों तक शासन करने का मार्ग प्रशस्त किया। हालाँकि, 2014 में नरेंद्र मोदी के उत्थान ने राज्य में कांग्रेस के 1977 के पतन सा हो गया..। देश की सबसे पुरानी पार्टी को पुर्नजीवित करने के लिए राहुल आज आशा और उम्मीद के केंद्र बन गए हैं। वे अहंकार से मुक्त होकर आम लोगों से जुड़ते हैं।" राहुल को देखने के लिए स्वतःस्फूर्त भीड़ उमड़ पड़ती है। बिहार भर में राहुल की यात्रा ने जनता के मूड को स्पष्ट रूप से बदल दिया है, और उसमें नई ऊर्जा और आशा का संचार किया है।

चुनाव आयोग की विवादास्पद विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के कारण मतदाता सूची से 6,50,000 नामों के हटाए जाने से जनता में गुस्सा है। निराशा और भय के माहौल के बीच, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पृष्ठभूमि में, लगभग अदृश्य और बेसुध, लुप्त होते जा रहे हैं।

मुख्यधारा के मीडिया में यात्रा को कममतर दिखाया जा रहा है..लेकिन सोशलटीवी चैनलों और सोशल मीडिया में जिस व्यापक स्तर पर कवरेज मिल रही है उसने मुख्यधारा की मीडिया को पीछे छोड़ दिया है। राहुल टीवी चैनलों के मालिकों को निशाना बना रहे हैं..। राहुल हाशिए पर पड़े समुदायों और अल्पसंख्यकों के बीच अपनी जगह बना रहे हैं, जो ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस के समर्थन की रीढ़ रहे हैं। इसके अलावा, उच्च जाति के मतदाता, जिनका भाजपा से मोहभंग हो रहा है, भी राहुल की ओर रुख कर रहे हैं। प्रियंका अपने भाषणों में लोगों को बता रही हैं कि चुनाव में नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर भैंस चोरी की कहनियां सुना रहे थे.. आप ने देखा वह आपके वोटों की चोरी कर रहे हैं..। यह बात साबित हुई है। वह आपकी नागरिकता छीन रहे हैं..। आपको मिल रही सरकारी सुविधायें छीन जायेगी। अपने अधिकारों कै प्रति यह जागने का सामय है। राहुल घर घर की चेहरे बन गए हैं। "अब, अगर आप कहेंगे कि लोग राहुल गांधी को नहीं जानते, तो वे बुरा मान जाएँगे।"

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