आरएसएस प्रमुख भागवत की टिप्पणी के बाद मोदी पर पद छड़ने का दवाब बढ़ा



--राजीव रंजन नाग
नई दिल्‍ली, इंडिया इनसाइड न्यूज।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की 75 साल में स्वेच्छा से पद त्यागने वाली हालिया टिप्पणी के बाद भारतीय जनता पार्टी में अंदरखाने हलचल बढ़ गई है। संघ प्रमुख का कोई तय कार्यकाल नहीं होने के वाबजूद यदि मोहन भागवत ने इस्तीफा दे दिया तो नरेंद्र मोदी पर पद छोड़ने का दवाब बढ़ जायेगा..। संघ मोहन भागवत के बयान पर भाजपा का कोई भी नेता सीधी टिप्पणी करने का साहस नहीं कर पा रहा है..।

भाजपा और आरएसएस के बीच सत्ता समीकरण पिछले एक साल में पूरी तरह बदल गया है। भाजपा और आरएसएस के बीच खींचतान की बात करें तो इसका सबसे बड़ा उदाहरण पार्टी का अभी तक नया राष्ट्रीय अध्यक्ष न चुन पाना है। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा बीते दो साल में एक अदद अध्यक्ष ढुंढने में विफल रही। संघ के साथ आम सहमति न बन पाने के कारण भाजपा नया राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं चुन सकी। अब पारी संघ की है..। पार्टी का नया अध्यक्ष चुने जाने को लेकर संघ अब सीधा दखल दे रहा है..। भाजपा की पसंद को संघ सीधा नकार रहा है..।

जनवरी 2020 में तीन साल के लिए पार्टी अध्यक्ष नियुक्त किए गए जे.पी. नड्डा का कार्यकाल 2023 में समाप्त हो रहा था। हालाँकि, जनवरी 2023 में उन्हें जून 2024 तक का एक्सटेंशन दिया गया। लेकिन जून 2024 के बाद एक साल से ज़्यादा समय बीत जाने के बावजूद, नड्डा इस पद पर बने हुए तो शायद इस लिए कि दुत्कार, तिरस्कार, और अपमान के वाबजूद अगर वह पद पर बने हुए हैं तो शायद इसलिए कि वह दरवारी प्रथा में भरोसा करते हैं। एक एक फैसला वह अमित शाह से पूछ कर लेने के लिए जाने जाते हैं..। दरअसल, नड्डा, मोदी के लिए वह खतरा नहीं हैं..।

मई 2024 में नड्डा ने आरएसएस को एक "सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन" कहे जाने से नाराज संघ के कारण 2024 के लोकसभा चुनावों में संघ के कार्यकर्ता घर बैठ गए। जिसका असर यह हुआ कि लोक सभा में 303 सीटों से भाजपा 243 पर सिमट गई।

जब से मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने और भाजपा ने संसद में अपना बहुमत हासिल किया, तब से मोदी और शाह के आदेश को पार्टी और सरकार दोनों में अंतिम शब्द माना जाता रहा है। जब भाजपा ने 2019 में और भी बड़े बहुमत के साथ दूसरा कार्यकाल जीता, तो पार्टी में असहमति की कोई गुंजाइश खत्म हो गई थी..। अपने अहंकार के कारण मोदी इन 11 सालों में एक बार भी आरएसएस मुख्यालय नहीं गए। पिछले साल आरएसएस मुख्यालय जाकर मोदी ने संघ की नाराजगी खत्म करने की कोशिश की ...।

नड्डा द्वारा पिछले साल मई में दिए गए उस बयान को संघ ने गंभीरता से लिया जिसमें नड्डा ने अहंकार के साथ कहा था कि भाजपा अपने मामलों को अपने दम पर संभाल सकती है। उनका इशारा साफ था कि अब उन्हें संघ के समर्थन की जरुरत नहीं है..।

संघ की नाराजगी का परिणाम यह हुआ की 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन फीका पड़ गया..। चुनाव के नतीजों ने दिखा दिया कि एक दशक तक सत्ता में रहने के बाद भाजपा की चुनावी जीत की लहर को झटका लगा। पार्टी की सीटें 303 से घटकर 240 रह गईं। चुनाव परिणाम घोषित होते ही आरएसएस ने एक चेतावनी जारी की। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बिना किसी लाग-लपेट के मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि एक 'सच्चे सेवक' में अहंकार नहीं होता।

अहंकार का उदाहरण यह है कि भाजपा नेतृत्व ने चुनावी कार्यों में सहयोग के लिए आरएसएस स्वयंसेवकों से संपर्क नहीं किया। संघ ने भी अपने कार्यकर्ताओं को घर बैठ जाने का इशारा कर दिया..।

सेवानिवृत्ति की आयु पर मोहन भागवत की ताजा टिप्पणी के बाद भाजपा अध्यश्क्ष को लेकर एक बार फिर सरगरमी बढ़ी। मोदी चाहते हैं कि उनका कोई वफादार अध्यक्ष बने, वहीं आरएसएस एक ऐसे नेता को प्राथमिकता देना चाहता है जिसकी संगठनात्मक जड़ें मज़बूत हों और जो दरवारी प्रथा के इतर स्वतंत्र रूप से काम कर सके। हालांकि पार्टी अध्यक्ष पद को लेकर भगवा पार्टी और संघ में गतिरोध अभी खत्म नहीं हुआ है। आरएसएस का भाजपा पर दबाव बना हुआ है।

हाल ही में, भागवत ने 75 साल की उम्र में अध्यक्ष पद से हटने के अपने बयान से फिर से बहस छेड़ दी। भागवत की टिप्पणी से यह अटकलें लगाई जाने लगीं कि क्या उनके शब्द मोदी के लिए थे..? भागवत और मोदी इस साल सितंबर में 75 साल के हो जाएँगे। फूलवामा हमले के बाद देश और दुनिया में भारत की हुई फजीहत के बाद मोदी की चमक फीकी पड़ गई है। संघ का भी उनसे मोह भंग होता दिख रहा है...। भागवत की टिप्पणी को भी इसी संर्दभ से जौड कर देखा जा रहा है..।

2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पिछले साल आरएसएस मुख्यालय गए। इसे संघ और भाजपा के बीच बढ़ती नाराजगी को कम करने की कोशिश के रुप में देखा ही गया साथ ही यह कयास भी लगाया गया कि 75 साल की आयु पूरा होने के बाद अगला पीएम कौन हो सकता है...? इस पर से पर्दा उठना अभी बाकी है..।

सेवानिवृत्ति की आयु संबंधी भागवत के बयान के बाद मोदी पर पद छोड़ने का दवाव बढ़ गया है..। भाजपा नेताओं की टिप्पणी से संकेत मिलता है कि भागवत के बयान से पार्टी के भीतर हलचल मच गई है और भावी प्रधानमंत्री उम्मीदवार को लेकर कयास लगाये जा रहे हैं..।

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