सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका खारिज होने के बाद निशिकांत दुबे ने कहा, दिल के अरमां आँसुओं में बह गए....



--राजीव रंजन नाग
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज।

राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हाल ही में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधा था, अब उन्होंने अपने खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता पर तंज कसा है।

याचिकाकर्ता वकील विशाल तिवारी ने मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की पीठ से कहा, "संस्था की गरिमा की रक्षा की जानी चाहिए।" मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने जवाब दिया, "हमारे कंधे काफी चौड़े हैं।" अदालत की टिप्पणी के तुरंत बाद, निशिकांत दुबे ने याचिकाकर्ता का मज़ाक उड़ाने के लिए एक लोकप्रिय हिंदी फ़िल्म के गाने - "दिल के अरमां आँसुओं में बह गए" - की एक पंक्ति उद्धृत की, जिसका मोटे तौर पर अनुवाद 'आँसुओं में सारी उम्मीदें बह गईं' होता है। दिल के अरमां आँसुओं में बह गए ...

जनहित याचिका में झारखंड के गोड्डा के भाजपा सांसद को उनके "बहुत उत्तेजक, घृणित और निंदनीय" बयानों के लिए दंडित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 129 के तहत शक्तियों का उपयोग करने की भी मांग की गई है। अनुच्छेद 129 शीर्ष अदालत को खुद की अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति देता है। अदालत ने कहा, "हम एक संक्षिप्त आदेश पारित करेंगे। हम कुछ कारण बताएंगे। हम इस पर विचार नहीं करेंगे, लेकिन हम एक संक्षिप्त आदेश देंगे।"

अक्सर विवाद पैदा करने वाले बयान जारी करने वाले सांसद ने कहा था कि "सुप्रीम कोर्ट देश को अराजकता की ओर ले जा रहा है" और यह "देश में धार्मिक युद्धों को भड़काने के लिए जिम्मेदार है"। इस टिप्पणी की विपक्ष और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित कई वकीलों के संगठनों ने कड़ी आलोचना की थी। यहां तक कि उनकी अपनी पार्टी ने भी उनकी टिप्पणी से खुद को अलग कर लिया और कहा कि वह न्यायपालिका का सम्मान करती है।

जेपी नड्डा ने कहा, "भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा दिए गए बयानों से भारतीय जनता पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है।" उन्होंने कहा कि पार्टी "इन बयानों को पूरी तरह से खारिज करती है।"

भारत के राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय श्री दुबे के गुस्से का प्रमुख कारण था। विपक्षी दलों ने जहां न्यायालय के फैसले की सराहना की, वहीं भाजपा सांसद ने सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि सर्वोच्च न्यायालय को कानून बनाना है तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के विचारों को दोहराया, जिन्होंने भी फैसले पर कड़ी असहमति जताई।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने टिप्पणी की आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग और भाजपा सांसद सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ बोल रहे हैं, ताकि संस्था को "कमजोर" किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई ने भी पश्चिम बंगाल में वक्फ कानून विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा की जांच की मांग करने वाली याचिका पर विचार करते हुए इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने न्यायपालिका पर अपमानजनक टिप्पणी का स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा, "जैसा कि हम पर संसदीय और कार्यकारी कार्यों में अतिक्रमण करने का आरोप है।"

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