--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।
■मोहन यादव की गलती के कारण लगभग 50 दिनों तक प्रदेश में नए उद्योगों को नही मिली अनुमति (कनसेंट टू एस्टेबलिश)
■मोहन यादव के कारण उद्योग जगत भाजपा से नाराज
■क्या जानबूझकर प्रदेश में अध्यक्ष, मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल पद रखा गया 50 दिनों तक खाली?
■प्रदेश में आये सैकड़ों निवेशकों को नही मिली जरूरी अनुमतियां और जमीनें
■रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव में आये निवेश के दावे कहीं जुमले तो नहीं?
2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने तब विपक्ष को उन्होंने अपने ब्रह्मास्त्र यानी "गुजरात मॉडल" से परास्त किया था। इस मॉडल की सबसे बड़ी विशेषता थी जिसमें सरकार द्वारा उद्योगों को आसानी से उद्योग लगाने और व्यापार का स्वस्थ माहौल प्रदान करना था। आज मोदी सरकार औद्योगिक क्रांति की राह पर चल रही है। स्वयं प्रधानमंत्री ने एक नारा दिया था "minimum government maximum governance"। पर इन सब से इतर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने नरेंद्र मोदी के विजन पर गहरा आघात पहुंचा रहे हैं। एक तो मोहन यादव पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं, वहीँ मुख्यमंत्री पद पर अकर्मण्यता के उदाहरण अब सामने आ रहे हैं। मोहन यादव की एक गलती के कारण प्रदेश में लगभग 50 दिनों तक किसी भी उद्योग को "concent to operate (CTO), concent to establish (CTE)" की अनुमति नहीं मिली थी।
दरअसल मोहन सरकार द्वारा 11 नवंबर को कई आईएएस अधिकारियों का स्थानांतरण आदेश क्रमांक ई-1/240/2024/5/एक के मार्फत निकाला, जिसमें पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव गुलशन बामरा का ट्रांसफ़र भी था, उनके स्थान पर डॉ. नवनीत कोठारी को सचिव पर्यावरण के पद पर आसीन कराया गया। यहां यह समझना जरूरी है कि इस आदेश के साथ कोठारी का अध्यक्ष, मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल के लिए आदेश नहीं निकाला गया था। पूर्व में गुलशन बामरा, जो कि विभाग के प्रमुख सचिव थे वो पदेन अध्यक्ष भी थे, क्योंकि अध्यक्ष पद खाली रहने पर विभाग का प्रमुख सचिव स्वत: ही अध्यक्ष बन ज़ाते हैं। जबकि यहां पर नवनीत कोठारी सचिव स्तर के अधिकारी थे। मध्य प्रदेश में इस भयंकर प्रशानिक गलती के कारण पूरे 50 दिनों तक किसी भी पुराने एवं नए उद्योगों को "concent to operate (CTO), concent to establish (CTE) की अनुमति नहीं मिल पायी थी। इस दौरान प्रदूषण मंडल में हजारों उद्योगों की अनुमति जस-की-तस पडी रही। गौर करने वाली बात यह है इनमें से कुछ उद्योग वह हैं, जो कि मोहन सरकार के क्षेत्रीय इंडस्ट्रीयल समिट (जो वो पिछले 10 महीने से कर रहे हैं) वो भी थे। मोहन यादव की एक इस गलती के कारण उद्योग जगत को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। साथ ही मध्यप्रदेश की सरकार के ऊपर से इंडस्ट्री लाबी का विश्वास उठ गया है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को लगा है। क्योंकि उद्योगों को उन पर विश्वास है। मुख्यमंत्री मोहन यादव, जो कि वन एव पर्यावरण मंत्री भी हैं उनका सचिवालय भी इस बात से अनभिज्ञ रहा। यह सिलसिला तब खत्म हुआ जब दिनाँक 30-12-24 को डॉ. नवनीत कोठारी आदेश क्रमांक क्रमांक ई-1/175/2024/5/एक के मार्फत से पदोन्नत होकर विभाग के प्रमुख सचिव बने और स्वतः मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल के पदेन अध्यक्ष बने और प्रदेश में 50 दिनों बाद वापस अनुमति प्रदान होना चालू हुआ। अंदरखाने से प्रमुख उद्योगपतियों ने मोहन यादव के ऊपर से अपना विश्वास खोने की बात की है। अब इस सवाल का जवाब क्या आने वाले ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में खुद प्रधानमंत्री जवाब देंगे। क्योंकि वो खुद समिट का उद्घाटन करने आ रहे हैं। इस पूरे मामले में मोहन यादव का इंडस्ट्रियल एक्युमेन सामने आ गया कि यह पूरे समिट सिर्फ नाटक भर या मीडिया इमेज बनाने का प्रयास भर है। क्योंकि जब गवर्नेंस ही उद्योगों के ख़िलाफ़ हो तो इनवेस्टमेंट जमीन पर कैसे आएगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित भारत के संकल्प को लेकर आगे बढ़ रहे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव प्रदेश में निवेश लाने को लेकर लगातार कार्य कर रहे हैं। यही कारण है कि मुख्यमंत्री पद संभालते ही सबसे पहले मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश में रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव शुरू किया और अब तक सात संभागों में इसका आयोजन किया जा चुका है। खास बात यह है कि इन सातों कॉन्क्लेव के माध्यम से मोहन यादव की सरकार ने लगभग 02 लाख करोड़ रुपये के निवेश आने का दावा किया है। यही नहीं दो लाख से अधिक लोगों को रोजगार देने की बात भी इन निवेश के माध्यम से की गई है। लेकिन फिलहाल हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है। इसी महीने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन भोपाल में किया जा रहा है। 24 और 25 फरवरी को होने वाली इस समिट के माध्यम से मध्यप्रदेश सरकार विदेशी निवेशकों को प्रदेश में निवेश लाने के लिये प्रोत्साहित करेंगे। लेकिन मध्यप्रदेश सरकार के आंकड़े कुछ और ही तस्वीर दिखा रहे हैं। दरअसल पिछले 20 सालों के दौरान भाजपा सरकार ने जो भी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट आयोजित की हैं उनमें जो भी निवेशक आये अधिकतर निवेशकों ने यहां निवेश करने से हाथ पीछे खींच लिये। उसका सबसे बड़ा कारण था यहां सिंगल विंडो सिस्टम न होना। प्रशासनिक दृष्टि से अफसर निवेशकों को इतना उलझा देते कि निवेशक अपना प्रस्ताव वापस लेकर किसी दूसरे राज्य में जाकर निवेश करते।
• ईज ऑफ डूइंग सिस्टम हुआ फेल
मोहन सरकार लगातार दावा कर रही है कि उन्होंने सुशासन व्यवस्था को प्रदेश में बेहतर ढंग से लागू किया है। लेकिन उनका यह दावा पूरी तरह से खोखला दिखाई पड़ रहा है। प्रदेश में ईज ऑफ डूइंग सिस्टम पूरी तरह से फेल हो गया है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि पिछले एक साल से मोहन सरकार ने जो भी निवेश लाने का दावा किया उनमें से कंपनी और उसके प्रतिनिधि को यहां इंडस्ट्री लगाने के लिये ली जाने वाली जरूरी अनुमतियां अब तक नहीं मिली हैं। यही कारण है कि निवेश धरातल पर दिखाई नहीं दे रहा है।
• क्या प्रधानमंत्री की संकल्पना रहेगी अधूरी?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार देश और प्रदेश को आत्मनिर्भर बनने के लिये कह रहे हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और उनके करीबी अफसरों की उदासीनता के कारण प्रधानमंत्री की यह संकल्पना अधूरी दिखाई दे रही है। बताया जा रहा है कि जिस उद्योग विभाग से निवेशकों को जरूरी अनुमतियां मिलनी थी उस विभाग में सात महीने तक कोई सचिव स्तर का अधिकारी ही नहीं नियुक्त किया गया। ऐसे में सभी ठंडे बस्ते में चली गई। अब जब ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया जा रहा है उससे ठीक पहले मोहन सरकार ने अपने चहेते अफसर को उद्योग विभाग के सचिव का दायित्व देते हुये सभी पेंडिंग फाइलों को क्लीयर करने के आदेश दिये। वहीँ प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण मंडल में 50 दिनों तक अध्यक्ष पद रिक्त होने के कारण किसी उद्योग को जरूरी पर्यावरण अनुमति concent to establish नहीं दी गई थी। साथ ही पूर्व में हुए कोनक्लेव में इन्वेस्टर्स और इन्वेस्टमेंट के आंकड़े एक जैसे थे।
• जमीन का होगा ऑनलाइन एलॉटमेंट
सरकार की ओर से नए उद्योग लगाने को लेकर भी पूरी पारदर्शिता के साथ नई नीति के तहत काम किया जा रहा है। सरकार की ओर से इसे पूरी तरीके से ऑनलाइन कर दिया गया है। उद्योगपतियों को सारी औपचारिकता निभाने के बाद 7 दिनों के अंदर ऑनलाइन अलॉटमेंट हो सकता है। इसके बाद में नए उद्योग का कार्य शुरू कर सकते हैं। यह सुविधा मध्यप्रदेश सरकार की ओर से काफी सरलीकरण के साथ उद्योगपतियों के बीच प्रस्तुत की जा रही है। लेकिन हकीकत यह है कि पिछले एक साल से जिन उद्योगपतियों ने जरूरी अनुमतियों के लिये आवेदन किया था उन्हें अभी तक जरूरी अनुमति नहीं मिली और न ही जमीनों का अलॉटमेंट हुआ।
• इन दावों की खुली पोल
• 40 फीसदी तक दी जा रही है सब्सिडी
औद्योगिक विकास निगम के अधिकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश में इन्वेस्टर समिट के जरिए नए उद्योगों को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से बड़े कदम उठाए जा रहे हैं। यहां पर उद्योग खोलने की अनुमति लेने के लिए अधिक चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं होती है। सिंगल विंडो सिस्टम के जरिए उद्योगों को अनुमति मिलेगी। इसके अलावा उद्योगों को आकर्षित करने के लिए 40 फीसदी तक की सब्सिडी भी सरकार की ओर से दी जा रही है। जबकि हकीकत बिल्कुल इससे अलग है। न तो सिंगल विंडो सिस्टम ठीक से काम कर रहा है और न ही लोगों को सब्सिडी का फायदा मिल रहा है।
• जमीन का होगा ऑनलाइन एलॉटमेंट
सरकार की ओर से नए उद्योग लगाने को लेकर भी पूरी पारदर्शिता के साथ नई नीति के तहत काम किया जा रहा है। सरकार की ओर से इसे पूरी तरीके से ऑनलाइन कर दिया गया है। उद्योगपतियों को सारी औपचारिकता निभाने के बाद 7 दिनों के अंदर ऑनलाइन अलॉटमेंट हो सकता है। इसके बाद में नए उद्योग का कार्य शुरू कर सकते हैं। यह सुविधा मध्यप्रदेश सरकार की ओर से काफी सरलीकरण के साथ उद्योगपतियों के बीच प्रस्तुत की जा रही है। लेकिन हकीकत यह है कि पिछले एक साल से जिन उद्योगपतियों ने जरूरी अनुमतियों के लिये आवेदन किया था उन्हें अभी तक जरूरी अनुमति नहीं मिली और न ही जमीनों का अलॉटमेंट हुआ।
https://www.indiainside.org/post.php?id=10043