…और हिंदी लौट गयी



--ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

"हादसों का क्या कि कब कोई हादसा ज़िन्दगी की कच्ची रशीद पर पक्की मोहर लगा कर आगें बढ़ जाये........"

हिन्दी की प्रोफेसर हिमानी तेजवानी जिन्हें अपनी मात्र भाषा हिंदी से काफी प्यार था। उनका मानना था कि शिक्षा की प्राप्ति अपनी मातृभाषा में ही होनी चाहिये। उनका एक सपना था कि अगर ईश्वर ने मुझे एक बच्ची को जन्म देने का सुअवसर प्रदान किया तो अपनी बच्ची का नाम इरादतन हिंदी ही रखेगीं।

समय पंख लगाकर कब उड़ गया प्रोफेसर हिमानी को पता ही न चला पर कहते हैं न हम मांग कर भूल जाते हैं पर ईश्वर को सब याद रहता है, और हुआ भी वही कि कुछ समय बाद उनकी कोख से एक सुन्दर और प्यारी सी बच्ची ने जन्म लिया। प्रोफेसर हिमानी कि खुशी की सीमा न थी। वह ईश्वर को बारम्बार धन्यवाद करते हुये बोलीं कि मुझे इतनी प्यारी बच्ची की माँ बनाने के लिये शुक्रिया। खुद से किये वादे के अनुसार उन्होंने अपनी बच्ची का नाम बड़े प्यार से हिन्दी रखकर, उस पर अपनी मात्र भाषा की तरह जान नौछावर करने लगी और भूल गयीं के सुख के कोख से ही दुखों की शाखायें फूटती हैं।

हिंदी अभी लकड़ी के पाँव पर ही चलना शुरू की थी कि एक ज़ोर की आंधी आई जो उसकी तमाम खुशियां उड़ा ले गई और उसके छोटे हाथों में अनाथ होने की एक बड़ी सनद थमा गई। पता चला उसके माता पिता जिस सफर में निकले थे। उस सफर का सूरज उनके साथ ही अस्त हो गया। वो दुर्भाग्य से एक ट्रेन हादसे में अपनी जान गंवा बैठे।

हिंदी तो प्रेम की मूरत थी। उसे क्या पता उसे यह हादसा किस मोड़ पर ले जा कर छोड़ेगा। प्रोफेसर हिमानी, उनके पति केशव तेजवानी की अचानक दुनिया से रुखसती के बाद हिंदी को उसकी मामी कल्पना ने गोद लेकर उसके पालन-पोषण एवं उसका भविष्य संवारने व माँ की ममता देने का हिन्दी के मामा से वादा किया।यह और बात है कल्पना की कल्पनाओं में हिंदी कम उसके माता - पिता की दौलत पर कब्ज़ा जमाने का मक़सद अधिक था। वैसे भी मामी और चाची का किरदार यूँ भी समाज में लालची और क्रूर महिलाओं के नाम से याद क्या जाता है।

दिन बीतता और समय गुजरता रहा, हिंदी अपनी उम्र की सरहदों को पार करती रही कि अचानक उसकी मामी का ढ़का चेहरा सामने आने लगा और वह हिंदी पर बात बे बात ज़ुल्म का पहाड़ तोड़ने लगी। वह उसे बात बे बात इतना बेरहमी से मारती पीटतीं के उसका शरीर लहुलुहान हो जाता। पर हिंदी सब कुछ खामोशी से सहती रही कि उस अनाथ बच्ची का सुनने वाला था भी कौन ?

हिंदी पढ़ने लिखने में तेज थी और साहित्य का बीज तो उसके खून में तैर रहा था। समय के साथ-साथ वह बीज प्रस्फुटित हो उसके मन में खिल उठा।

उसका कुदरती झुकाव साहित्य की दुनिया की तरफ हो गया। इसलिए स्कूल में जाकर भी वह हिन्दी साहित्य की पुस्तकें तलाशती रहती। यह देखकर उसके हिन्दी के शिक्षक कहते कि इतनी कम उम्र में साहित्य से इतना लगाव, बड़ी होकर साहित्य की दुनिया का चमकता सितारा होगी और तुम्हारी किताबें भी साहित्यप्रेमियों के दिलों पर राज़ करेगीं। यह सुनकर हिन्दी मुस्कुरा उठती। उसकी परिस्थितियां से अनजान वह हिन्दी शिक्षक उसको साहित्य की पुस्तकें पढ़ने के लिये देने लगे और हिन्दी का रूझान पूरी तरह हिन्दी साहित्य में मुड़ गया। हिन्दी के लिये हिन्दी साहित्य किसी भक्ति से कम न था। मानो उसने किताबों से पक्की दोस्ती कर ली थी। जब भी उसे घरेलू काम से वक्त मिलता वह पूरा समय साहित्य पढ़ने में ही गुज़ार देती। हमेशा नयी - पुरानी पुस्तकें खंगालने की आदत ने उसे लेखक बना दिया। अब वह स्कूल गृहकार्य निपटाकर छुप-छुप कर मामी की डांट-फटकार से मिले दर्द और स्वअनुभवों को अपनी स्कूली नोट बुक में गीत, गज़ल,लेख व कहानियों में उड़ेलने लगी।

हिंदी की अद्भुद लेखन कला देख उसके मामा ने एक दिन उसे एक चुपके से मल्टीमीडिया मोबाइल सेट ला कर दे दिया और कहा तुम अपनी तमाम रचनाओं को किसी सोशल साइट पर अपलोड कर दिया करो जिससे सब एक जगह रहे और पूरी दुनिया तुम्हारे विचार पढ़ सके। वहीं इन्हें पत्र पत्रिकाओं में छपने के लिए भी भेजा करो। यह सुन हिन्दी सवालिया नजरों से मामा की तरफ़ देखने लगी। मामा ने उसके सिर पर हांथ रखकर कहा कि दो दिन के लिये तेरी मामी मायके जा रही है। मैं मेरी प्यारी हिन्दी को मोबाइल चलाना सिखाऊंगा। चिन्ता न कर तेरा ये मामा तेरे साथ है। यह सुन हिन्दी अपने मामा के गले लग कर खुशी के आँसू रो पड़ी।

दो दिन बाद मामी का ज़ुल्म बदस्तूर जारी रहा। एक दिन बात बेबात वह यह कहते हुए हिंदी पर बरस पड़ी कि पड़ोस के बच्चे कितनी फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलते और अंग्रेज़ी में बात करते हैं और एक तुम हो कि बस हिंदी..हिंदी और बस हिंदी। तुम ने तो समाज में मेरी नाक ही कटवा दी है। तुमको पता है हम हिन्दी बोलने वाले ऊँची सोसाइटी में बैकवर्ड समझे जाते हैं पर तुझे समझाना मतलब अपना सिर दीवार में मारना पर हाँ एक बात कान खोल कर सुन लो कि अगर तुम ने अब भी अंग्रेज़ी बोलना, अंग्रेज़ी में बात करना नही सीखा तो समझ लो अगले वर्ष हम तुम्हारी पढ़ाई, लिखाई, स्कूल जाना सब बंद करवा देंगे।

यह पहला मौका था जब हिन्दी चुप नहीं रही और बोल पड़ी कि मामी जी मुझे भी अपनी माँ की तरह अपनी मात्र भाषा से बहुत प्यार है और जैसा कि आप जानती हैं मैंने अपने स्कूल में हिंदी में टॉप किया है, फिर भी आपको...! इस से पहले के हिंदी और कुछ कहती कि मामी आँखों में अंगार लिये और मुँह में नागिन सी फुस्कार लिये गुस्से से उबल पड़ी और मानो जैसे हिंदी का मुंह ही नोच लेगीं और उसके जबड़े को भींचते हुए कहा, साफ- साफ सुन लो मुझे तुम्हारी इन हिंदी में लिखी गीत, ग़ज़ल, कहानियों में कोई दिलचस्पी नही।मेरा आखिरी फैसला यही है कि अगर अंग्रेजी में बात करना नही सीखी तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा। तभी अचानक मामी के मोबाइल की ट्यून बजी और वह मोबाइल रखते हुये गुस्से से भर उठी जब उसे पता चला कि हिंदी की रचनाओं के साथ- साथ उसकी तस्वीर भी कई सोशल साइट्स और पत्र पत्रिकाओं में छप चुकी हैं। उसे हिन्दी की तस्वीरें प्रकाशित होना इतना बुरा लगा कि वह माचिस हाथ में लिये धमकी देते हुये बोलीं कि अगर तुम्हारा यही चाल ढ़ाल रहा तो एक दिन आएगा जब मैं तुम्हारे सारे नोट बुक्स, फाइलें, बुक्स, रचनाएँ सभी आग के हवाले कर दूंगी और तुम मुँह ताकते रह जाओगी।

हिंदी खामोशी से मामी के सारे ज़ुल्म सहकर अपने सभी रचनात्मक कार्य करती रही और चुपके - चुपके ईश्वर से अपनी मुक्ति की प्रार्थना भी करती रही। कभी कभी तो उसे लगता कि अच्छा होता कि माता - पिता के साथ-साथ ईश्वर मुझे भी अपने पास बुला लेते।

समय बीता और पत्र पत्रिकाओं में हिंदी की रचनाओं का असर यह हुआ कि वायु सेना का एक सेना अधिकारी जिसका नाम जीवन था। हिन्दी की रचनाओं का इतना बड़ा फैन हो चुका था कि वह हिंदी से मिलने के लिए ट्रेन द्वारा दिल्ली से लखनऊ के लिए चल पड़ा। वह सोच कर निकला था कि अगर हिंदी ने मेरे साथ शादी का प्रोपोजल मान लिया तो मैं उसे साथ ही लेकर लौटूंगा एवं न केवल उसकी तमाम रचनाओं को एक किताब की शक्ल दूंगा बल्कि ज़रूरत पड़ी तो हिंदी और उसकी रचनाओं पर अपने इंटरनेशनल फिल्म डायरेक्टर मित्र दिलशाद के साथ मिलकर उसकी जिन्दगी पर आधारित एक आर्ट अथवा डाक्यूमेंट्री फ़िल्म भी बनाऊंगा।

ट्रैन अपनी रफ्तार में रेल की पटरी पर जितनी तेजी से दौड़ रही थी उस से अधिक उसका दिल हिंदी से मिलने को बेताब हुआ जा रहा था। वह मन ही मन हिन्दी की शायरी व गज़ल गुनगुनाते हुये उसकी तश्नीर मन मंदिर में बसाये खुद में ही गुम था।

रात का वक़्त सारे यात्री नींद की आगोश में जा चुके थे पर जीवन की आंखों से नींद कोसों दूर थी।वो हिंदी की ग़ज़ल का एक शेर फिर से गुनगुनाने लगा ;

"मुहब्बत की बाज़ी अजीब चीज है/जो हारे वो जीते, जो जीते वो हारे" कि अचानक ट्रैन ने ब्रेक लिया ट्रैन रुक गई। उसने पहले तो सोचा सिग्नल न मिलने के कारण ट्रैन रुक गई हो लेकिन काफी देर तक वहीं रुकी रही तो वो अपनी सीट से उठ कर दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ जहां उसे पता चला कोई महिला ट्रैन के सामने आ गयी और मर गयी। जीवन नीचे उतरता कि कुछ लोगों ने कहा कि कोई पगली होगी सो कुचल गयी। रात के अंधेरे में ठीक से कुछ दिख नही रहा था कि जो लोग उतरे थे वह सब तेजी से चढ़े और बोले कुछ बचा नही, पता नही कौन थी ?

कुछ लोग आपस मे बातें कर रहें थे "कुलटा होगी साली"... प्यार व्यार का चक्कर होगा...कोई कुकर्म की होगी...यानी जितना मुँह उतनी बातें। जीवन को लोगों की बातें अच्छी तो नहीं लगी पर उस ने किसी को टोका भी नही। वह चुपचाप से अपनी सीट पर दोबारा आकर बैठ गया और ट्रैन दोबारा अपनी रफ्तार पर बढ़ चली तो जीवन दोबारा हिंदी की यादों में खो गया।

सुबह का समय, जीवन लखनऊ पहुंच चुका था। अब उसे जल्दी थी कि कब वह अपनी पसंदीदा रचनाकार से मिले और अपनी ख्वाहिश का इज़हार कर सके। वो किराये की एक टैक्सी की मदद से हिंदी के पते पर उसके अपार्टमेंट पहुंचा। हिंदी के अपार्टमेंट के करीब वहां मौजूद एक व्यक्ति से हिंदी का ज़िक्र किया तो वह जैसे रो पड़ा।उसने बताया मैं नही जानता आप हिंदी के कौन हैं पर यह पता है हिंदी ने कल रात अचानक रेल की पटरी पर कूद कर अपनी जीवन लीला हमेशा के लिए समाप्त कर दी।जीवन को यह सुन कर लगा जैसे उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया हो। वह तड़प उठा कि कल रात जो ट्रेन से कट गयी वह मेरी हिन्दी थी और मैं ट्रेन में बैठा ही रह गया, मैं कुछ न कर सका। यह सोचकर वह पश्चाताप और ग्लानि से भर उठा। फिर उसने खुद को सम्भाला और उन्हीं सज्जन की मदद से हिंदी के घर पहुंचा तो उसे लगा बहुत दूर से उसके कानों में कोई सदा दे रहा हो, बहुत देर कर दी मेहरबां आते-आते।

अंदर हॉल में दाखिल हुआ तो सब से पहले उसकी आंखें हिंदी की एक बड़ी सी तस्वीर पर पड़ी जो दीवार से टंगी थी। जिसपर फूलमाला चढ़ी थी। जीवन ने उसकी मामी से मिलकर बताया कि मैं जीवन वायु सेना का एक अधिकारी हूँ जो दिल्ली से चल कर अपनी पसंदीदा रचनाकार से मिलने आया था, या सच पूछिए तो मैं उन से खामोश मोहब्बत करने लगा था और यह सोच कर आया था कि हिंदी ने मेरी मोहब्बत क़ुबूल कर ली तो उसे ब्याह कर साथ लेकर लौटूंगा।

इतना सुनना था के उसके मामी का पारा चढ़ गया कि यह प्यार व्यार कुछ नही होता सब फालतू का नाटक है। जाओ वापस जाओ कि जिसके लिए आये थे जब वही दुनिया में नहीं रही तो आगें कोई सवाल जवाब का क्या मतलब...और यह कहतीं हुईं उठ कर दूसरे कमरे में चली गई तो उस के मामा ने धीमी आवाज़ में बताया कि बेटा यही वो बेरहम औरत है जिसके ज़ुल्म ने हिंदी जैसी फूल सी अनाथ बच्ची को जान देने पर मजबूर कर दिया। आज से यह औरत मेरी नजरों से हमेशा के लिये गिर गयी।

जीवन को लगा जैसे वह उसी समय क्रूरता की पर्याय उस मामी का गला घोंट दें पर धैर्य से काम लेते हुए मामी के पास गया और कहा, मामीजी आप एक काम करो मुझे हिंदी की सारी रचनाएँ दे दो बस।मामी ने मुँह टेढ़ा कपते हुये कहा कि वहां कबाड़ में देखो उसकी सारे फ़ाइल,नोट बुक्स व रचनाएँ फेंकी पड़ी है जा कर चुन बिन लो और चुपचाप यहां से दफ़ा हो जाओ, और नाक नहीं कटवानी मुझे।

जीवन ने आगे बढ़ कर अपनी हिन्दी के सारे फाइल्स, नोट बुक्स उठाये और यह कहते हुये चल पड़ा कि मामीजी हिंदी क्या थी और उसकी रचनाएँ कितनी कीमती हैं। इसका अंदाजा तो आपको तब होगा जब दुनिया उसकी साहित्यिक कारनामों को फ़िल्म के पर्दे पर देखेगी और आपके उस पर किये गए ज़ुल्म-ओ-सितम में रंगी खुदगर्ज़ी पर लानतें बरसाएगी।

जीवन हिंदी की तमाम रचनाएँ लेकर किसी हारे हुए जुआरी की तरह लौट चुका था। अब उसे अगर कोई जल्दी थी तो बस यह कि वह कब और कितनी जल्दी हिंदी के जीवन और उसकी रचनाओं पर आधारित फ़िल्म बनाये और फ़िल्म स्क्रीन के पर्दें पर लाकर अपनी पसंदीदा रचनाकार से अपनी सच्ची मोहब्बत का सबूत दे सके।

समय बीतता गया और एक साल के लम्बें समयान्तराल व संघर्ष के बाद बॉलीवुड में एक फिल्म सुपरहिट होती है जिसका नाम होता है,''... और हिन्दी लौट गयी''। पूरे हिन्दुस्तान समेत विश्व के कई देशों में वह फिल्म करोड़ों का कारोबार कर लेती है। पूरी दुनिया में हिन्दी की हस्तलिखित कहानी हिन्दी जो हिन्दी भाषा और अनाथ के बिलखतेे और शोषित बचपन पर आधारित एक बहुत बड़ी हिट फिल्म साबित होती है। यह सब देख हिन्दी की मामी को मीडिया घेर लेती है और वह पछतावे के आँसुओं को बहाते हुये यही कहतीं हैं कि मैंने अपनी मात्रभाषा का कभी सम्मान नहीं किया और ना ही अपनी बेटी हिन्दी का और ना ही सच्चे प्रेम का, मुझे तो सजा होनी चाहिये। यह कहकर वह फूट-फूट कर रो पड़ीं। तभी, मीडिया की भीड़ से जीवन निकलता है और कहता है," आपने एक बेहद काबिल इंसान को हम सब से छीन लिया। मुझे यह साबित करने में एक वर्ष लग गया। मामी उसके सामने हाथ जोड़कर बैठ जाती हैं और वह वहां से जाने लगता है तो वह पीछे से कहतीं हैं रूक जा बेटा! मुझे प्रयाश्चित करने का सिर्फ एक मौका दे दो। मुझे मेरी हिन्दी की सारी लिखीं नोटबुक्स वापस कर दो। मैं मेरी बच्ची हिन्दी का एक -एक शब्द पढ़ना चाहती हूँ। जीवन ने मामी को गले से लगा लिया और कहा,"माँ रोते हुये अच्छी नहीं लगती।'' आज से हम सब मिलकर अपनी मात्रभाषा के प्रचार-प्रसार और उत्थान के लिये एक हिन्दी साहित्यिक शब्द प्रकाशनी संस्था की स्थापना करेगें और युवा लेखकों को हिन्दी "हिन्दी" सेवी सम्मान देकर सम्मानित किया करेगें जिससे फिर किसी हिन्दी को घुट - घुट कर अपनी जान ना देनी पड़े। यह सुनकर पीछे खड़े हिन्दी के मामा ने जीवन की पीठ थपथपाते हुये उसे गले से लगा लिया।

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