दिलों को जोड़तीं हैं किताबें : अदब है साहित्य और अमर हैं विचार



---आकांक्षा सक्सेना, (स्वतंत्र विचारक, ब्लॉगर), 22 अप्रैल 2018, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

● विश्व पुस्तक व कॉपीराइट दिवस 23 अप्रैल पर विशेष

साथियों हमारे देश को विश्वगुरू इसलिए कहा जाता है कि हमारे देश की नींव प्रेम, सम्मान, ज्ञान और विज्ञान के प्रतीक महान वेदों, पुराणों, श्री रामायण,श्री भगवद्गीता, महाभारत, श्रीभागवत् महापुराण, कुरान,बाईविल, जेंद आवेस्ता वस्ता, गुरू ग्रंथ साहिब जैसे ज्ञान, वैराग्य, प्रेम, शांति और जीवन आनंद के कभी न खत्म होने वाले अनमोल खजानों से परिपूर्ण है। युगों पहले भगवान् गणेश जी और भगवान चित्रगुप्त जी व ऋषि-मुनि ताड़पत्र और भोजपत्र पर हाथ और लकड़ी की कलम या मोरपंख द्वारा लिखा करते थे पर आज समय ने करवट ली है और हम सब के लिये आधुनिक प्रिटिंग प्रैस तथा ऑनलाइन प्रिंटिंग भी व ऑनलाइन कॉपीराइट प्रोसिस भी मौजूद हैं।

आज नेट पर फेक साहित्यकारों की इस कदर बाढ़ आ चुकी है कि जिनकी शायरी पढ़कर यही कहूंगी लिखने से पहले कृपया आप शायरों को पढ़ो और शायरी के हुनर सीखो वरना आज सोसल नेटवर्किन्ग साइट्स पर जैसी शायरी लिखी जा रही, सचमुच गालिब होते तो सुसाइड कर लेते। आज की आपाधापी जिंदगी में हम कॉमिक्स और चंपक, नंदनवन जैसे साहित्य से दूर हो गये और ब्लूव्हेल जैसे खूनी वीडियो गेम के गिरफ्त में पहुंच कर खुद के कातिल बने। अफसोस! आज आधुनिकता इस कदर हावी हुई कि आज पुस्तकालय विरान पड़े और नेटवर्क बिजी बताता है। पर आज भी पुस्तकप्रेमियों का उत्साह और जुनून पुस्तकों के प्रति चरम है।

विगत वर्ष देखने में आया कि इटली के महान चित्रकार, मूर्तिकार, वास्तुशिल्पी, संगीतज्ञ, कुशल यांत्रिक, इंजीनियर तथा वैज्ञानिक व लेखक लियोनार्डो द विंसी की हस्तलिखित पांडुलिपि है। इस जर्नल में उनका हर प्राकृतिक चीज पर महान चिंतन है, जो जीवाश्म से लेकर पानी के मूवमेंट तक, जिससे चंद्रमा प्रकाशित होता है। थॉमस कुक ने इसकी पांडुलिपि पहली बार 1717 में खरीदी थी, जो बाद में अर्ल ऑफ लिसेस्टर बन गए। इसके बाद 1980 में लिसेस्टर इस्टेट ने इसे अर्मांड हैमर से खरीदा, जो करीब उसके पास 14 साल थी। माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक और दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति बिल गेट्स ने इस अद्भुत किताब को 200.2 करो़ड़ रुपए में खरीदकर दुनिया में सबसे महंगी किताब खरीदने व महान पुस्तकप्रेमी होने का दावाा कायम रखा। और हमारे देश की सबसे महँगी किताब है ओपस जिसे ऑटोमोबाइल कम्पनी फरारी ने प्रकाशित किया है इसकी कीमत है डेढ़ करोड़ रूपये आकी गयी है।

मित्रों! पुस्तक की गौरवगाथा यहीं समाप्त नहीं होती। आपको याद होगा जब हिन्दी के महान लेखक देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखित पुस्तक चन्द्रकान्ता पढ़ने के लिए बहुत से पुस्तकप्रेमियों ने हिन्दी सीखी थी। यही वो जुनून, रोमांच और आनंद का समय जिसे आज हमने पूर्णरूपेण नेट के हवाले कर दिया है। फिर से सुकून भरे माहौल में खुशनुमा वापिसी करने हेतु सम्पूर्ण विश्व आज विश्व पुस्तक दिवस व कॉपीराइट दिवस मनाने को एक साथ आ खड़ा हुआ है। इस दिवस का आयोजन संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक संगठन, यूनेस्को (UNESCO) द्वारा किया जाता है।

विश्व पुस्तक दिवस का आयोजन सर्वप्रथम 23 अप्रैल, 1995 में किया गया था।सर्वप्रथम विश्व पुस्तक दिवस मनाने की शुरुआत स्पेन के पुस्तक विक्रेताओं ने 1923 में अपने देश के लोकप्रिय लेखक मिगुएल डि सरवेंटेस के सम्मान में की। 23 अप्रैल को ही मिगुएल का निधन हुआ था। कैटालोनिया में इसी दिवस को सेंट जॉर्ज की जयंती मनाई जाती है। इस परम्परा की शुरुआत मध्यकाल में हुई। इस दिन पुरुष अपनी प्रेमिका को गुलाब देते हैं। वर्ष 1925 में एक सुन्दर और रोचक प्रथा और जुड़ी गयी कि इस दिवस को महिलाएं गुलाब के बदले अपने प्रेमी को किताब देने लगीं। परिणामस्वरूप कैटालोनिया में किताबों की बिक्री तेजी से बढ़ी।इस बात का अंदाजा इस आकड़े से लगाया जा सकता है कि प्रतिवर्ष इस दिवस पर कैटालोनिया में अमूमन 400,000 किताबें बिक जाती हैं और उतनी ही संख्या में गुलाब के फूल भी बिक जाते हैं।

यूनेस्को ने यह दिवस 23 अप्रैल को ही मनाने का निर्णय क्यों लिया, इसकी एक नहीं, कई वजह हैं। जैसे-कैटालोनिया का उत्सव, विश्व प्रसिद्ध नाटककार एवं सॉनेट विद्या के प्रणेता विलियम शेक्सपीयर का जन्मदिन और पुण्यतिथि 23 अप्रैल को ही पड़ती है। इसी दिन लेखक मिगुएल डि सरवेंटेस, इंका गार्सिलासो डि ला वेगा की पुण्यतिथि भी पड़ती है। साथ ही लेखक मौसिस ड्रओन, ब्लादिमीर नाबाकोव, मैनुएल मेत्रिया वेल्लोजो और हॉलडोर लैक्सनेस का जन्मदिन भी इसी दिन पड़ता है। वहीं उच्च उद्देशीय अंतरराष्ट्रीय सहयोग तथा विकास की भावना से प्रेरित 193 सदस्य देश तथा 6 सहयोगी सदस्यों की संस्था यूनेस्को द्वारा विश्व पुस्तक तथा स्वामित्व (कॉपीराइट) दिवस का औपचारिक शुभारंभ 23 अप्रैल 1995 को ही हुआ था और इसकी नींव तो 1923 में स्पेन में पुस्तक विक्रेताओं द्वारा प्रसिद्ध लेखक मीगुयेल डी सरवेन्टीस को सम्मानित करने हेतु आयोजन के समय ही रख दी गई थी। उनका देहांत भी 23 अप्रैल के दिन ही हुआ था। अतैव, इन सभी महान लेखकों की याद में  यूनेस्को ने विश्व भर के लेखकों को सम्मान देने हेतु इस तारीख को सर्वश्रेष्ठ दिन के रूप में चुना जो एक स्वाभाविक और सटीक कदम था। 

इस दिन का उद्देश्य सभी लेखकों, और खासकर युवाओं को, साहित्य से जोड़ने की प्रेरणा देना है। साथ ही इसका उद्देश्य लेखकों की मौलिक रचनाओं संरक्षित करना भी था ताकि उनकी किताब की कोई नकल न कर ले या अनधिकृत प्रतियां बनाने यानि(पायरेसी) पर लगाम लग सके। कॉपीराइट के इस महत्व को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय संगठन यूनेस्को ने 1995 में विश्व पुस्तक एवं एकाधिकार दिवस (वर्ल्ड बुक एंड कॉपीराइट डे) मनाने का निर्णय लिया। लेखकों के हक "लिप्याधिकार" या "कॉपीराइट" पर अपने देश में भी व्‍यापक कानून है कॉपीराइट अधिनियम, 1957। इस अधिनियम के अनुसार, शब्‍द 'कॉपीराइट' का अर्थ है कोई कार्य को करने या उसका पर्याप्‍त भाग करने या प्राधिकृत करने का एकमात्र अधिकार। लेकिन एक सच यह भी जान लेना आवश्यक है कि किसी भी कृति का कॉपीराइट होना यह सुनिश्चित नहीं करता कि अब उस कृति की चोरी नहीं होगी ।  यह मात्र इस बात को सिद्ध करता है कि संबंधित कृति पर कॉपीराइटधारक का अधिकार है, लेकिन अगर धारक अपनी किसी कृति (कहानी, गीत इत्यादि) की नकल, चोरी या छेड़खानी के विरुद्ध कोई संज्ञान लेता है तो कानून उसकी पूरी मदद करेगा। इस कॉपीराइट कानून के तहत प्रकाशक अपने एकाधिकार का दावा पेशकर दोषी को सजा दिलवा सकते हैं। भारत में कॉपीराइट अधिनियम 1957 की निगरानी की जिम्मेदारी मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पास है। यह कानून बौद्धिक सम्पदा अधिकार (आईपीआर) से जुड़े कई अधिनियमों में से एक है। कॉपीराइट कार्यालय की स्थापना नई दिल्ली के संसद मार्ग स्थित जीवनदीप भवन में 1958 में की गई थी, जिसमें मौलिक रचनात्मक कार्यो का पंजीकरण होता है। इस कार्यालय में साहित्यिक रचनात्मक कार्यो के अलावा चित्रकला, सिनेमैटोग्राफी, ध्वनि रिकार्डिग और कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर का पंजीकरण भी होता है।

गौरतलब हो कि राजधानी दिल्ली को 2003 में विश्व पुस्तक राजधानी बनने का गौरव प्राप्त हुआ था। इसी कड़ी में, माया नगरी मुम्बई में भी कई स्क्रिप्ट कॉपीराइट कार्ड देने वाले प्रतिष्ठित कार्यालय हैं जो स्क्रिप्ट राईटर कॉपीराइट प्रदान करते हैं और पूरी जिम्मेदारी लेते हैं। गौरतलब हो कि भारत विश्व बौद्धिक सम्पदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) का सदस्य है जो इस क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ की विशिष्ट एजेंसी है। यह एजेंसी कॉपीराइट और बौद्धिक सम्पदा अधिकार के मामलों का निपटान करती है। कॉपीराइट सम्बंधी कार्य के लिए सरकार द्वारा कॉपीराइट समितियों का गठन भी किया जाता है। भारतीय कॉपीराइट अधिनियम में 1994 में व्यापक संशोधन किए गए। संशोधित अधिनियम 10 मई 1995 से लागू हुआ। वर्ष 1999 में इस अधिनियम में आगे भी संशोधन हुए और यह नए रूप में 15 जनवरी 2000 से प्रभावी हुआ। कॉपीराइट अधिनियम की धारा 11 के प्रावधानों के अंतर्गत भारत सरकार ने कॉपीराइट बोर्ड का गठन किया है। यह बोर्ड एक अर्धन्यायिक निकाय है, जिसमें अध्यक्ष के अलावा 14 सदस्य होते हैं। हर पांच वर्ष पर इस बोर्ड का पुनर्गठन किया जाता है। यह बोर्ड रचनात्मक कार्यो को लाइसेंस प्रदान करता है और संबंधित मामलों की सुनवाई करता है।

यूनेस्को द्वारा विश्व पुस्तक व कॉपीराइट दिवस की शुरुआत विश्वभर के लेखकों के लिये किसी सौगात से कम नहीं है। आज का दिन का उद्देश्य विश्व भर के उन सभी लेखकों के लिए आदर भाव जगाना है, जिन्होंने अपनी कलम से मानवता की रक्षाहेतु सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय प्रगति में अपना अमूल्य योगदान देकर सम्पूर्ण विश्व को एक सूत्र में बांध दिया।

आज के दिन स्कूल, कॉलेजों व स्वंयसेवी संस्थाओं में मात्र भाषा व साहित्य के प्रचार व प्रसार हेतु साहित्यिक संगोष्ठी, निबंध, कविता व कहानी लेखन व वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। वहीं विश्व भर में भव्य साहित्यिक मंचों पर वरिष्ठ कवियों और लेखकों का सम्मान किया जाता है तथा कहीं पुस्तकों का विमोचन समारोह तो कहीं पुस्तक मेलों, भव्य कवि सम्मेलनों का आयोजन व सगोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। तथा कहीं राष्ट्रीय मंचों पर विश्व के महानतम् कवियों और लेखकों की जीवनी व रचना पाठ द्वारा उनके मर्यादित व गरिमामय साहित्य के प्रति उनके जीवन झंझावात से उभरीं महान रचनाओं को पढ़कर उनके जीवन दर्शन के प्रति आभार और कृतज्ञता प्रकट करते हैं। क्योंकि राष्ट्र की पहचान उसकी कला, ज्ञान और कौशल में निहित है।

आपने पढ़ा होगा कि आखिर! क्यों कहा गया भारत को विश्वगुरू क्योंकि यहां अध्यन और अध्यापन और अध्यात्मक के बहुत बड़े केन्द्र हुआ करते थे जिनमें नाम आता है नालंदा और तक्षशिला का, कहा जाता है कि प्राचीन नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय पूरी दुनिया में ख्यातिप्राप्त थे जहाँ विश्व भर के छात्र विशेष ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी और आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा दीक्षा हेतु पठन-पाठन को आया करते थे। नालंदा में तीन महान पुस्तकालय थे- रत्नोदधि, रत्नसागर और रत्नरंजक। इनके भवनों की ऊँचाई का वर्णन करते हुए महान लेखक और दार्शनिक युवानच्वांग ने लिखा है कि ''इनकी सप्तमंजिली अटारियों के शिखर बादलों से भी अधिक ऊँचे थे और इन पर प्रातःकाल की हिम जम जाया करती थी। इनके झरोखों में से सूर्य का सतरंगा प्रकाश अन्दर आकर वातावरण को सुंदर बनाता था। इन पुस्तकालयों में सहस्त्रों हस्तलिखित ग्रंथ थे।'' इनमें से अनेकों की प्रतिलिपियां स्वंय युवानच्वांग ने की थी। जैन ग्रंथ सूत्रकृतांग में नालंदा के हस्तियान नामक सुंदर बाग का वर्णन है। अफसोस! देश में हुये महाविनाशकारी आक्रमणकारी बख्तियार ख़िलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को पूरी तरह जला कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था और ज्ञान के महाप्रणेता शिक्षक और शिक्षार्थियों को मौत के घाट उतार कर अपनी क्रूरता का परिचय दिया था। उस आक्रमणकारी ने हमारे देश का साहित्य मिटाकर देश को कभी न भरने वाला जख्म दिया। क्योंकि सचमुच ज्ञानवर्धक पुस्तक के साहित्य से कीमती खजाना कोई दूसरा नहीं। हमें हमारे देश के महान साहित्यिक की रक्षा हेतु स्वंय जागना होगा और कुशल प्रयास करने होगें तभी साहित्य संरक्षित होगा। अतैव विश्व पुस्तक व कॉपीराइट दिवस हम सभी को पुस्तकों के रूप में हमारी कला, सभ्यता व संस्कृति के संरक्षण और उसके प्रति समर्पण महाआयोजन और महापर्व है। मित्रों! हम पूरी उम्मीद और यकीन के साथ कह सकते हैं कि गौरतलब होगा देखना कि जब भी हम सभी देश हमारी कड़वाहटें भूलकर विश्व मंच पर एक होगें तो उसके पीछे यही कला और साहित्य की अद्भुद प्रेरणा ही निहित होगी।

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